सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुडी रोचक जानकारी | Snakes and Ladders Game (Saap Sidi Ka Khel) History and Interesting Facts in Hindi
सांप सीढ़ी बहुत पुराने खेलों में से एक हैं. आपने कभी न कभी तो इस खेल का आनंद लिया ही होगा. इस खेल को पश्चिम देशों की उपज माना जाता हैं लेकिन आपको पता हैं यह खेल विदेशी नहीं बल्कि प्राचीन भारत के समय से खेला जा रहा हैं.
भारत ही इस खेल का जनक हैं. आइए जानते इस खेल से जुड़े प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में.
सांप सीढ़ी का इतिहास- Saap Sidi Ka Itihas (Snakes and Ladders History)
सांप सीढ़ी के खेल को हम आज बड़े ही आनंद से खेलते हैं लेकिन इसकी जड़े जुड़ी हैं प्राचीन भारत के अध्यात्म से. प्राचीन भारत में यह खेल “मोक्ष पटम” के नाम से जाना जाता था. महाराष्ट्र के ज्ञानदेव जी ने 13 वीं सदी में मोक्ष पटम से लोगों को धर्म का पाठ पढाने का जरिया बनाया था. संत ज्ञानदेव के द्वारा बनाएँ गए सांप सीढ़ी को “कैलाशा पटम” कहा जाता था. उन्होंने जैन धर्म से प्रेरणा लेकर इस खेल में वैदिक सनातन हिन्दू मूल्यों को डाला और इसका प्रचार ग्रामीण भारत में किया. इस तरह ये खेल पूरे उपमहाद्वीप में फैल गया.
आप अगर इस खेल के आखरी पायदान 100 पर पहुँच गए तो मतलब आप कैलाश पहुँच गए. इस सांप सीढ़ी के बोर्ड पर आपको कई दोष और गुणों का उल्लेख मिलेगा. उदाहरण के लिए एक वर्ग(square) पर लिखा हैं पाप जहां पर तीन सिर वाला साँप हैं. यदि आप बुरे कर्म करेंगे तो सीधे नीचे महापाताल में आ जाते हैं. इस प्रकार की सीख बच्चों को इस खेल के जरिये सिखाई जाती थी.
सांप सीढ़ी के इस धार्मिक खेल को एक नया रूप मिला 16 वीं सदी में. जैन धर्म के लोगो ने इसे “ज्ञानबाजी” का नाम देकर इसे जीवन की शिक्षा देने का जरिया बनाया. इस खेल का उद्देश्य यह था कि आप यह खेल खेलते हुए आप अपने दैनिक कार्यो के परिणाम के बारे सोचे.
मित्रों यह था सांप का छोटा सा इतिहास आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके अवश्य बताएं.
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