इस्लाम धर्म में बकरीद के त्यौहार पर होने वाली कुर्बानी की कहानी और इतिहास | Bakrid Festival Mahtva, History, Qurbani Importance In Hindi
इस्लाम धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है ईद, ईद दो प्रकार की होती है एक ईद-उल-जुहा और एक ईद-उल-फितर. ईद-उल-फितर मीठी ईद होती है इसे रमजान की समाप्ति पर मनाया जाता है और ईद-उल-जुहा को बकरीद भी कहते है और इसे हज की समाप्ति पर मनाया जाता है. इस ईद को कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है इसके लिए अपनी अजीज चीज की कुर्बानी देनी होती है. हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर या मुल्क में रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस देश, समाज, परिवार की हिफाजत के लिए हर कुर्बानी देने के लिए तैयार रहे. इसिलिये इस ईद को महत्वपूर्ण माना जाता है इसे बड़ी ईद भी कहा जाता है.
इस दिन इस्लाम से जुड़े हर शख्स को कुर्बानी देना होती है इस कुर्बानी के लिए बकरे का प्रचलन है. इस दिन अपने सबसे करीबी को कुर्बान करना पड़ता है. क्योकि इस दिन को कुर्बानी के रूप में मनाया जाता है. कुर्बानी का यह त्यौहार रमजान के दो महीने बाद आता है. इस्लाम के पांच फर्ज माने गए हैं, हज उनमें से आखिरी फर्ज माना जाता है. मुसलमानों के लिए जिंदगी में एक बार हज करना जरूरी है. हज होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है। यह बलिदान का त्योहार भी है.
खुदा ने हजरत मोहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया था की वे हजरत से तभी प्रसन्न होंगे जब वे अपने सबसे अजीज को खुदा के सामने कुर्बान कर देंगे. तब हजरत इब्राहीम ने कुर्बानी देने का फैसला किया तब हर शख्स सोचने लगा की अब हजरत साहब किसकी कुर्बानी देंगे. जब सबको पता चला की उनके लिए उनका बेटा सबसे अजीज है इस बात का पता लगने पर वे सुन्न हो गये. पर अपने बेटे की कुर्बानी देना हजरत इब्राहीम के लिए आसान नही था. इसी कारण उन्होंने अपनी आँख पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की कुर्बानी दी थी. उनके इस जज्बे को सलाम करने का त्योहार है ईद-उल-जुहा.
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ईद के इस दिन इन्हें इस प्रकार की कुर्बानी देना होती है जो इनको अधिक प्रिय हो, इनके साथ उसका भावनात्मक संबंध हो. इस कुर्बानी को इस्लाम धर्म में जरुरी बताया है यह इनके धर्म का हिस्सा है जो इन्हें पूरा करना पड़ता है. इसिलिये ये एक बकरे को पालते है दिन रात उसका ख्याल रखते है इस कारण से उस बकरे से इनकी भावनाए जुड़ जाती है तथा उस बकरे का इनके साथ एक गहरा नाता जुड़ जाता है फिर ईद-उल-जुहा अर्थात बकरीद के दिन उसकी कुर्बानी दी जाती है.
ईद-उल-जुहा में भी गरीबों और मजलूमों का खास ख्याल रखा जाता है. इसी मकसद से ईद-दल-जुहा के सामान यानी कि कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं. एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है, बाकी दो हिस्से समाज में जरूरतमंदों में बांटने के लिए होते हैं, जिसे तुरंत बांट दिया जाता है. इस्लाम में प्रत्येक व्यक्ति को हज जाना अनिवार्य है हज उनकी जिन्दगी का सबसे जरुरी भाग माना गया है. क्योकि बकरीद की कुर्बानी को हज की समाप्ति पर दी जाती है. हज पर जाने के लिए सभी कर्ज उतारना पड़ता है. इस्लाम व्यक्ति को अपने परिवार, अपने समाज के सभी दायित्वों को पूरी तरह निभाने पर जोर देता है.