चुनाव में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही (इंक) का इतिहास और रोचक जानकारी | Election Ink History & brife information about color changing in Hindi
भारत में जब कभी भी लोकसभा, विधानसभा और पंचायत आदि के चुनाव होते हैं तो आपने देखा होगा कि मतदाता को अपना मत डालने के बाद उसकी उंगली पर एक स्याही से निशान लगाया जाता है. यह स्याही अमिट होती है. अपनी कुछ विशेषताओं की वजह से ही इस स्याही का उपयोग चुनाव के दौरान किया जाता है. इसका उपयोग फर्जी मतदान रोकने के लिए किया जाता है ताकि एक व्यक्ति दोबारा किसी और का वोट नहीं डाल पाए.
स्याही का इतिहास (Election Ink History)
चुनाव के दौरान उपयोग की जाने वाली स्याही सर्वप्रथम मैसूर के राजा कृष्णराज वाडियार ने 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनवाई थी. परंतु इस स्याही का उपयोग चुनाव में पहली बार 1962 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. वर्तमान में इस कंपनी को मैसूर पेंट्स एंड वाॅर्निश लिमिटेड के नाम से जाना जाता है. कर्नाटक राज्य में स्थित यह कंपनी अभी भी भारत में होने वाले हर चुनाव के लिए यह स्याही बनाने का कार्य करती है. यह स्याही सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि थाईलैंड, सिंगापुर, नाइजीरिया, मलेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी इसका निर्यात किया जाता है. कुछ देशों में मतदाता की पूरी उंगली को स्याही में डुबाया जाता है. स्याही को बनाने का फार्मूला गोपनीय रखा जाता है इसे नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री ऑफ इंडिया के रासायनिक फार्मूले का इस्तेमाल करके तैयार किया जाता है.
क्यों बदल जाता है स्याही का रंग (Why Election Ink Colour Changes)
चुनाव के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली स्याही में सिलवर नाइट्रेट(AgNO3)तो यह धात्विक सिल्वर में बदल जाता है. यह धात्विक सिल्वर पानी में घुलनशील नहीं होता मतलब इससे पानी से नहीं मिटाया जा सकता है. इस स्याही का निशान लगभग 20 दिनों तक उंगली पर रहता है. यह स्याही को उंगली पर लगाने के 60 सेकंड के भीतर सूख जाती है.
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