GOOGLE भी कर रहा है इस प्रथम महिला शिक्षक को याद…

सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था. सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका के रूप में प्रतिष्ठित हैं. हर समाज, वर्ग और धर्म के लिये उन्होंने काम किया. जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे. उनके 186वें जन्मदिन पर GOOGLE ने आज डूडल के जरिए भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले को श्रद्धांजलि दी है. डूडल ने सावित्रीबाई को इस तरह से दिखाया है की जैसे वे अपने आंचल में महिलाओं को समेट रही है. सावित्रीबाई ने महिलाओं के विकास के बारे में उस समय सोचा, जब भारत में अंग्रेजों का राज था. जब भारत पर अंग्रेजी शासन था.

9 साल की उम्र में हो गई थी शादी

सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी. सावित्रीबाई फुले दलित परिवार से संबंध रखती थी. उस समय फूले की कोई शिक्षा नहीं हुई थी. समाज में व्याप्त कुरीतियां और महिलाओं की हालत देख सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए कार्य करने का प्राण लिया. सावित्रीबाई फुले अपने काम के प्रति इतनी समर्पित थी की उन्होंने बिना किसी आर्थिक मदद के लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल दिए थे. उस दौर में ऐसा सोच पाना भी आसान नहीं था लेकिन सावित्रीबाई फुले ने ऐसा करके दिखाया. उन्होंने छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया.

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सावित्री बाई फुले ने 1848 में खोला था पहला स्कूल

सन1848 के समय महिलाओं को पढ़ने की आजादी नहीं थी, लेकिन फुले ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था. इसके बाद उन्होंने कई महिला स्कूल खोले और उन्हें शिक्षित किया.

स्कूल जाते समय एक साड़ी रख लेती थीं साथ

सावित्री बाई फुले के बारे कहा जाता है कि जब वह स्कूल जाती थीं तो महिला शिक्षा के विरोधी लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंक देते थे. महिलाओं का पढ़ना उस समय पाप माना जाता था. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं.

प्लेग की बीमारी के कारण हुई थी इनकी मौत

एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो गई, जिसके कारण उनकी 10 मार्च 1897 को मौत हो गई.
श्री मति सावित्रीबाई फुले अपने सामाजिक कार्यों से सदा समाज में अमर रहेगी. जिस वंचित शोषित समाज के मानवीय अधिकारों के लिए उन्होने जीवन पर्यन्त संघर्ष किया वही समाज उनके प्रति अपना आभार, सम्मान, और उनके योगदान को चिन्हित करने के लिए पिछले दो-तीन दशकों से दिल्ली से लेकर पूरे भारत में सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन 3 जनवरी को “भारतीय शिक्षा दिवस” और उनके परिनिर्वाण 10 मार्च को “भारतीय महिला दिवस” के रुप में मनाता आ रहा है.