जन आन्दोलन क्या होता हैं और इसका भारतीय राजनीति में क्या महत्व हैं जानिए | Jan Andolan History and its importance democracy in hindi
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमे जनता सर्वोच्च हैं. यहाँ जनता के बीच से ही, जनता के द्वारा चुने गए लोगो के हाथों में शासन व्यवस्था के सुचारू रूप से क्रियान्वयन की जिम्मेदारी होती हैं, लेकिन जब इन चुने हुए लोगो के द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से नही होता, तो एक जनाक्रोश जन्म लेता हैं.
इस जनाक्रोश का एकत्रित होकर अपना विरोध प्रदर्शन करना “जन-आंदोलन” कहलाता हैं.
जन आंदोलन एक सामूहिक संघर्ष हैं, जो एक उद्देश्य की प्राप्ति से प्रेरित होता हैं. एक मजबूत लोकतंत्र के निर्माण में जन आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं.
सामाजिक, नागरिक या व्यक्तिगत स्तर पर कोई विशेष प्रकार का सिद्धान्त एवं व्यवहार का पालन ही राजनीति (पॉलिटिक्स) कहलाती है.
इस हिसाब से देखे तो जन आंदोलन की राजनीति एक स्वस्थ प्रथा है, समाज, शासन में परिवर्तन लाने का.
जन आंदोलनों में निहित शक्ति बड़े से बड़े शासन व्यवस्था को हिलाने का समर्थ रखती हैं.
यदि हम आजादी की लड़ाई की तरफ देखे तो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम एक जन आंदोलन का ही रूप था, लेकिन एक स्पष्ट नीति , योग्य नेता का अभाव, इस आंदोलन के असफलता का प्रमुख कारण बना. तत्पश्चात महात्मा गांधी के रूप में देख को एक ऐसा नेता मिला जिसने आंदोलनों में निहित शक्ति का सबको आभास कराया.
गांधी जी के जन आंदोलनों से सबसे बड़ा प्रभाव यह देखने को मिला कि देश के हर नागरिक के अंदर यह भावना जन्म ले चुकी थी कि वो भी देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा हैं, और खुद को एक महत्वपूर्ण घटक मानने लगा. इसका असर यह हुआ ही आजादी की लड़ाई में केंद्रीय भूमिका में जनता आ गई.
इस आपार जन शक्ति के कारण ही असहयोग आंदोलन, नागरिक अवज्ञा आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, आदि सफल आंदोलन साबित हुए, और ब्रिटिश शासन को यह आभास कराने में कामयाब रहे कि अब देश की जनता और गुलामी नही सह सकती. इनका आत्म सम्मान जाग चुका हैं.
आंदोलनों के भी कई स्वरूप होते हैं.जिसमे कुछ आंदोलनों में समाज सुधार की भावना निहित होती हैं. डॉ भीमराव अंबेडकर का शक्तिशाली आंदोलन आजाद भारत मे समाज सुधार से जुड़ा एक बड़ा और सफल आंदोलन हैं, जिसका उद्देश्य समाज के हर एक वर्ग, जाति को समान अधिकार दिलाना था.
1970 के दशक में हुआ JP आंदोलन सामूहिक जन चेतना की शक्ति का स्पष्ट उदाहरण हैं. देश की जनता जब भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, देश की दिनों दिन होती बदहाल हालात से परेशान थी, तब बिहार के जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन का आगाज किया. यह छात्र आंदोलन बहुत जल्द ही पूरे देश मे फैल गया, तो सम्पूर्ण क्रांति के नाम से जाना जाता हैं. भारतीय समाज को एक नही दिशा देंने में इस आंदोलन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
इन आंदोलनो में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु है जो एक समान थे.
1. इन सभी आंदोलनों के उद्देश्य बहुत व्यापक थे.
2. इनमे से हर आंदोलन का एक लीडर था, जो एक मजबूत शख्सियत था. जिस पर जनता भरोसा करती थी.
3. इनमे से कोई भी आंदोलन स्वार्थ शिद्धि के लिए नही थे.
4. जनता का पूरा साथ मिला.
यदि आज के परिवेश के आंदोलनों की बात करें तो कही न कही ये कहा जा सकता हैं, कि हमारे नैतिक मूल्यों का पतन हुआ हैं, जिस कारण आज देश स्वार्थ सिद्धि के लिए ही सड़को पर उतरता दिखाई दे रहा हैं. आज देश मे जन आंदोलन की परिभाषा, दिशा सब बदल गई हैं. आज के आंदोलन देशव्यापी न होकर सामुदायिक हो गये हैं. जैसे गुजरात का पाटीदार आंदोलन हो या महाराष्ट्र में मराठा समाज का आंदोलन हो. जहाँ पर उद्देश्य सिर्फ अपने समाज की भलाई रह गईं हैं.
इन सब के अलावा आज के आंदोलनों में सबसे बड़ा अभाव एक अच्छे नेता का दिख रहा हैं, जिसके नैतिक मूल्य उच्च हो. आज के आंदोलन समाज पर कोई गहरी छाप नही छोड़ पा रहे हैं, जिसका एक कारण कही न कही स्पष्ट लक्ष्य का अभाव हैं.
अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के द्वारा काला धन के लिए किया आंदोलन वर्तमान का एक यादगार आंदोलन होता यदि वह सफल होता, पर एक लक्ष्य के लिए अलग अलग रास्ते पर चलने के निर्णय ने इस आंदोलन को लक्ष्य से वंचित कर दिया.
इस समय हमें व्यापक स्तर पर सोचने की जरूरत है कि क्या देश से बड़े आज हमारे निजी स्वार्थ हो गए हैं?
क्या हमारे नैतिक मूल्य इतने गिर गए जो हमे समाज के बेहतर के लिए एकजुट होने के लिए प्रेरित नही कर पा रहे हैं? और इस आंदोलन की राजनीति में हम कहाँ हैं?
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जन आंदोलन का अर्थ