जब भी हम किसी मन्दिर में जाते है तो वहा पूजा होने के बाद आरती की जाती है और आरती के तुरंत बाद ही कुछ प्रमुख मंत्रो का उच्चारण सामूहिक रूप से किया जाता है. अधिकतर लोग घर में भी आरती के बाद मंत्रो का उच्चारण करते है. ये मंत्र सभी देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग होते हैं, किन्तु एक विशेष मंत्र होता है जिसे अवश्य ही बोला जाता है. यह मंत्र आरती के तुरंत बाद बोला जाता है-
कर्पूरगौरं मंत्र–
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
इस मंत्र का अर्थ कुछ इस प्रकार है
इस मंत्र से भगवान शिव की आराधना की जाती है इसमें भगवान शिव के सौन्दर्य का वर्णन किया गाय है. इस मंत्र के प्रत्येक शब्द का संधि विच्छेद करके हम इसका व्यापक अर्थ जानते है.
कर्पूरगौरं- जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले है.
करुणावतारं- जो करुणा के साक्षात् अवतार हैं.
संसारसारं- जो समस्त सृष्टि के सार हैं.
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ यह है कि जिन्होंने सांप को हार के रूप में अपने गले में धारण किया हैं.
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ यह है कि जो भगवान शिव और माता पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा सादर नमन है.
उपर्युक्त मंत्र का एक साथ पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, जो करुणा के अवतार हैं, जो समस्त संसार के सार हैं और भुजंगों अर्थात सांप का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव और माता भवानी मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा सादर नमन है.
यही मंत्र क्यों उच्चारित किया जाता है–
किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं….मंत्र ही क्यों बोला जाता है, यह सवाल बहुत से लोगो के मन में आते होंगे या फिर आरती के बाद मंत्रो का उच्चारण क्यों किया जाता है. किन्तु इसके पीछे बहुत ही गहरे अर्थ छिपे हुए हैं. ऐसा माना जाता है की भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान विष्णु के द्वारा गाई हुई है. कई लोगो के मन में यह धारणा बनी हुई होगी कि शिव तो शमशान वासी हैं, और उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है. किन्तु, यह स्तुति बताती है कि शिव का स्वरुप बहुत ही दिव्य है. भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, और वे मृत्युलोक के देवता हैं, भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ यह होता है कि संसार के सभी जीवो (मनुष्य सहित) पर उनका आधिपत्य है. इस स्तुति को गए जाने का कारण यह है कि इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे. अर्थात शिव हमारे ह्रदय में निवास करे. शिव को श्मशान वासी माना जाता है, जो मृत्यु के भय को भी दूर करते हैं. अतः हमारे मन में शिव वास करें, और हम सदैव मृत्यु का भय से दूर हो.