मानव जीवन में हम बहुत सी चीजो को जानते है. और जानने की इच्छा भी रखते है. इसी कड़ी में आज हम आपको मनुष्य जीवन की शुरुआत के बारे में बताते है. जब मनुष्य का जन्म होता है तो जन्म होने से पूर्व मानव शरीर का सम्पूर्ण विकास माता के गर्भ में कई चरणों में पूरा होता है. ये चरण सभी अंगो के निर्माण को पूरा करते है. और हमारा शरीर माता के गर्भ से क्या लेकर आता है आप इसके बारे में भी जानेंगे.
आइये जानते है कैसे बनता है गर्भ में शरीर-
सहवास के बाद एक रात्रि मे शुक्रशोणित के संयोग से ‘कलल’ बनता है.
सात रात में ‘बुद्बुद’बनता है.
पन्द्रह दिन में ‘ पिण्ड’ बनता है.
एक महीने मे पिण्ड कठोर होता है.
दूसरे महीने में सिर बनता है.
तीसरे महीने मे पैर बनते हैं.
चौथे महीने में पैर की घुट्टियाँ ,पेट,तथा कटिप्रदेश बनता है.
पाँचवे महीने पीठ की रीढ बनती है.
छठे महीने मुख,नासिका,नेत्र और कान बनते हैं.
सातवें महीने जीव से युक्त होता है.
आठवें महीने सब लक्षणों से युक्त है जाता है.
नवें महीने उसे पूर्व जन्मों का स्मरण होता है और तभी ईश्वर से प्रार्थना करता है. हे प्रभु ! मुझे गर्भ से बाहर करिये मेरी सारी गलतियों को क्षमा कीजिये. आप का ही नाम जपूँगा ,सतपथ पे चलूँगा.
लेकिन
गर्भ से बाहर आते ही वैष्णवी वायु ( माया ) के स्पर्श से वह अपने पिछले जन्म और मृत्युओं को भूल जाता है. और शुभाशुभ कर्म भी उसके सामने से हट जाते हैं.
गर्भ से हमारा शरीर साथ मे क्या लाता है-
तीन प्रकार की अग्नियाँ साथ मे रहती हैं.
आहवनीय अग्नि मुख मे रहता है.
गार्हपत्य अग्नि उदर मे रहता है.
दक्षिणाग्नि ह्रदय में रहता है.
आत्मा यजमान है.
मन ब्रह्मा है.
लोभादि पशु हैं.
धैर्य सन्तोष दीक्षाएं हैं.
ज्ञानेन्द्रियाँ यज्ञ के पात्र है.
कर्मेंद्रियाँ होम करने की सामग्री हैं.
सिर कपाल है केश दर्भ है.
मुख अन्तर्वेदिका है सिर चतुष्कपाल है.
पार्श्व की दन्त पंक्तियॉ षोडश कमल हैं.
एक सौ सात मर्म स्थान हैं.
एक सौ अस्सी संधियॉ हैं.
एक सौ नौ स्नायु हैं.
सात सौ सिरायें हैं.
पाँच सौ मज्जायें हैं.
तीन सौ साठ अस्थियाँ हैं.
साढे चार करोड रोम हैं.
आठ तोला ह्रदय है.
बारह तोला की जुबान है.
एक सेर पित्त है.
ढाई सेर कफ है.
पाव भर शुक्र है.
दो सेर मेद है.
इसके अतिरिक्त शरीर मे आहार के परिमाण से मल मूत्र का परिमाण अनियमित होता है.
यही सब वस्तुयें माता के शरीर अपने साथ लाता है.
साभार- डॉ. अजय दीक्षित