MIRZA GHALIB KI SHAYARI IN HINDI
मिर्जा ग़ालिब (MIRZA GHALIB) एक ऐसा नाम हैं जिसका जिक्र शायरी के ऊपर चर्चा में सबसे पहले लिया जाता हैं. मिर्ज़ा ग़ालिब का शायरी में योगदान कुछ लाइनों में समझाना संभव नहीं हैं. मिर्ज़ा का पूरा जीवन ही शायरियों में रमा हुआ हैं. उनके द्वारा लिखी गयी शायरियाँ आज भी चरितार्थ हैं और आज भी सुनाई जाती हैं.
जैसा की हमने आपको बताया कि मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा जीवन ही शायारिओं से भरा था तो आप सोच सकते होंगे उनका जीवन कितना दिलचस्प रहा होगा.मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म आज से लगभग सवा दो सौ साल पहले आगरा के तुर्की कुलीन वंश में हुआ था. मिर्ज़ा ग़ालिब भारत के अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह जफ़र के दरबार के कवि थे. उन्होंने अपने पुरे जीवन काल में ऐसी हजारों शायरियाँ लिखी जो आज तक आप सुनी सुनाई होगी. आज हम आपको उन हजारों में से चंद बतलाने जा रहे हैं. Mirza Ghalib Quotes and Shayari Hindi
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
Best Shayari of Mirza Ghalib
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं
छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइज़* बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
ख़ंदा-हा-ए-गुल = फूलों की हंसी
Mirza Ghalib ki Shayari
इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है
उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
Mirza Ghalib Sad Poetry
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
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दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
Mirza Ghalib Poetry in Hindi
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था
two line shayari of ghalib
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हाए उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ‘ग़ालिब’
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबाँ होना
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
प्रसिद्ध शायरों की शायरियों का विशाल संग्रह
प्रसिद्ध शायरों की ग़ज़लों का विशाल संग्रह
हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता
Selected Poetry of Ghalib
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के
आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न मांग
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