ज़िन्दगी कौन नहीं जीना चाहता, हर किसी के सपने होते है और हर कोई जीवन में नए आयामों को छूना चाहता है. हम इक्कीसवीं सदी में है जहाँ मनुष्य ने अपनी बुद्धि के बल पर कई आविष्कार किये है, जिनसे जीवन काफी सहज हो गया है. परन्तु इन अनेक उपलब्धियों के बावजूद हमने कुछ खोया भी है और वह खोयी हुई चीज़ कोई वस्तु नहीं अपितु मनुष्य का सुख है.
मनुष्य धन तो अर्जित कर लेता है परन्तु सुख अर्जित नहीं कर पाता. दिन की शुरुआत से लेकर दिन के अंत तक उसका मात्र एक ही ध्येय होता है धन अर्जित करना. मनुष्य इस भ्रम में पूरी ज़िन्दगी निकाल देता है कि धन कमाने से उसे सुख मिल जाएगा परन्तु ऐसा होता नहीं है. जीवन के अंतिम क्षणों में उसे सिर्फ पछतावा ही होता है.
मुंबई-वाराणसी एक्सप्रेस एक ऐसे ही विषय पर बनी शोर्ट फिल्म है जिसे आरती छाबरिया ने निर्देशित किया है. एक सज्जन जो की बहुत ही बड़ी कंपनी के मालिक है. उन्हें उनके एक डॉ. मित्र बड़े ही दुःख के साथ कहते है कि आपको कैंसर है और आप अब दो महीने से अधिक नहीं जी सकते. बस यही वह मोड़ है जहाँ वह सज्जन व्यक्ति सोचने पर विवश हो जाता है कि मैंने अपनी पूरी उम्र पैसा कमाने में निकाल दी लेकिन ज़िन्दगी को जी नहीं पाया. उसके बाद वे अपने बच्चों व परिवार वालों को एक पत्र लिख कर निकल पड़ते हैं ज़िन्दगी जीनें के लिए…. आइये देखते है इस शोर्ट फिल्म के माध्यम से.. फिर क्या हुआ: