प्रेरक कहानी – चार कीमती रत्न
यह प्रेरक कहानी एक वृद्ध संत के बारे में है. इस संत ने अपने जीवन के अंतिम समय को नज़दीक से देखकर अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, और मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है कि तुम इन कीमती रत्नों को सम्भाल कर रखोगे. और अपनी पूरी ज़िन्दगी को इन्ही रत्नों से आनंदमय तथा श्रेष्ठ बनाओगे. और फिर महात्मा ने अपने बच्चो को उन चारों रत्नों के बारे में बताया.
जानिए क्या थे वे चार रत्न–
1. पहला रत्न है- “माफी”
संत ने अपने बच्चो से कहा की तुम्हारे लिए कोई कुछ भी कहे, लेकिन तुम उसकी बात को कभी अपने मन में मत बिठाना, और ना ही कभी उसके प्रति बदले की भावना मन में रखना, और उसे माफ़ कर देना.
2. दूसरा रत्न है- “भूल जाना”
संत ने अपने बच्चो से दुसरो पर किए गये उपकार को भूल जाने की बात कही है. उन्होंने कहा कि अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना चाहिए, और कभी भी उसके बदले कुछ मिलने की उम्मीद मन में नही रखना चाहिए.
3. तीसरा रत्न है- “विश्वास”
मनुष्य जीवन में सबसे बड़ा रत्न होता है “विश्वास”. वृद्ध संत ने कहा की तुम हमेशा अपनी महेनत और परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना. क्योंकि कोई भी व्यक्ति उस सृष्टि के नियंता के विधान में जो लिखा गया है वही कर सकता है. परमात्मा पर किया गया विश्वास ही तुम्हें जीवन में आने वाली हर समस्या से बचाएगा और हा कार्य में सफल करेगा.
4. चौथा रत्न है- “वैराग्य”
अंत में संत ने अपने बच्चो को वैराग्य के बारे में बताते हुए कहा है कि यह बात हमेशा याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ है तो हमारा मरण भी निशिचत है. और इसलिए हमे किसी भी व्यक्ति और वस्तु के प्रति मन में लोभ-मोह नही रखना चाहिए.
संत ने बच्चो से कहा की जब तक तुम इन चार रत्नों को अपने पास सम्भालकर रखोगे, तुम अपने जीवन में खुश और प्रसन्न रहोगे. आने वाली समस्त बाधाओं को पार कर उन्नति के पथ पर अग्रसर होंगे.