सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधा बनते है ये कारण जानिए..

ऐसे बहुत से लोग होंगे जो अपनी ताकत को लेकर आशंकित रहते होंगे. ऐसा इस कारण होता है क्योकि जब हम अपने आप पर, अपनी शक्ति पर शंका करने लग जाते हैं तो यहीं शंका हमारी असफलता के लिए उत्तरदायी होती है. और यही सी हमारी असफलता की शुरुआत हो जाती है. चूँकि “विजय हमेशा आत्मविश्वास से हासिल होती है” इसका अर्थ यह है की जब हमारे अंदर आत्मविश्वास है तो हमे आधी सफलता तो हमारे आत्मविश्वास से ही मिल जाती है. और अगर हमें खुद पर विश्वास नहीं हो और यही हम छोटी-छोटी समस्याओं से ही घबरा जाएंगे तो कभी जीत हासिल नहीं कर पाएंगे.

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इस बात को श्रीरामचरित मानस के एक प्रसंग से जोड़ कर समझ सकते हैं…

श्रीरामचरित मानस के एक प्रसंग में जब रावण माता सीता का हरण करके लंका ले गया था और श्री राम लंका को खोजते हुए समुद्र के किनारे तक चल्ले गये थे. तब सब यह विचार कर रहे थे कि समुद्र को कैसे पार किया जाए. उसी समय लंका में भी श्री राम के साथ होने वाले युद्ध को लेकर चर्चा चल रही थी. जब रावण ने युद्ध के संबंध में अपने मंत्रियों से राय मांगी तो लगभग सभी मंत्रियों ने कहा कि जब हमने देवताओं और दानवों को जीतने में कोई खास मेहनत नहीं कि थी तो फिर हमे मनुष्यों और वानरों से क्या डरना. पर इन सभी मंत्रियों में रावण के छोटे भाई विभीषण ने कहा था की हमें श्री राम से युद्ध नही करना चाहिए.

विभीषण ने रावण को बहुत समझाया कि श्रीराम से युद्ध करके जीत नही सकते है अतः हमें संधि कर लेनी चाहिए और माता सीता को आदर के साथ भगवान श्रीराम को लौटा देना चाहिए. इस तरह हम होने वाले भयानक युद्ध से बच सकते है. और विभीषण का यह मानना था कि श्रीराम से युद्ध करने पर सम्पूर्ण राक्षस कुल का विनाश हो जाएगा. लेकिन रावण ने विभीषण की बात नही मानी और क्रोधित होकर रावण ने विभीषण को लात मारकर लंका से निकाल दिया था. लंका से विभीषण सीधे भगवान श्रीराम की शरण में पहुंचे थे.

जब विभीषण श्री राम के पास आये तो उन्हें देखकर पूरी वानर सेना घबरा गई और उसमे खलबली मच गई. और सुग्रीव ने श्रीराम से कहा कि विभीषण लंकाधिपति रावण का छोटा भाई है, इसलिए हमें इसे बंदी बना लेना चाहिए. आगे शंका के आधार पर सुग्रीव ने कहा कि हो सकता है, विभीषण हमारी सेना का भेद लेने आया हो. और फिर वह लंका जाकर पूरा भेद रावण को बता देगा. इस बात पर श्रीराम ने सुग्रीव को जवाब दिया कि ऐसा कुछ नही होगा क्योकि हमें अपनी ताकत और सामर्थ्य पर पूरा भरोसा है.

विभीषण भेद लेने के लिए नही बल्कि शरण लेने आया है, इसलिए उसे बंदी बनाना उचित नहीं होगा. क्योकि उसे बंदी बना लिया तो ऐसा होगा की हमे अपने सामर्थ्य और ताकत पर भरोसा नही रहेगा. और यदि वह भेद लेने भी आया है, तो भी हमें किसी बात की चिंता नही है. क्योकि वह हमारी सेना का भेद लेकर भी वह कुछ नहीं कर सकेगा. क्योकि उसके भेद ले जाने के बाद भी हमारा मनोबल कम नहीं होगा. क्योकि पूरी दुनिया में जितने राक्षस हैं, उन सब को अकेले लक्ष्मण ही क्षण भर में समाप्त कर सकते हैं. इसलिए हमें विभीषण से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उससे बात करके यह पता लगाना चाहिए की वह किस उद्देश्य से आया है. और हमे सिर्फ अपनी ही ताकत पर भरोसा रखे रहना चाहिए. अपनी शक्ति पर भरोसा रखना बहुत जरूरी है क्योकि हम इसी से युद्ध में सफल हो सकते है.

इस प्रसंग के आहार पर यही बताया जा रहा है की व्यक्ति को अपने सामर्थ्य पर भरोसा होना चाहिए. अपने सामर्थ्य के बल पर ही हम जीत सकते है और विजय श्री हासिल कर सकते है.