क्रिकेट में क्या होता हैं डीआरएस, प्रकिया, तकनीक और इसके नियम | What is DRS (Need, Full Form, Process, Techniques and Rules) in Hindi
क्रिकेट की दुनिया में हाल ही के कुछ सालों में एक नया नियम आया हैं. जिसके बारे में आप मैचों में देख और सुन रहे होंगे. आज हम आपको बताएँगे कि इस नियम की आखिर क्यों जरुरत पड़ी और इसको इस्तेमाल करने के क्या-क्या नियम हैं यदि आपने इसे सही से नहीं समझा तो इसके फल उल्टा हो सकता हैं.
डीआरएस की जरुरत क्यों पड़ी (Need of DRS)
क्रिकेट को कई देशों में धर्म की तरह माना जाता हैं क्रिकेट के दौरान हर किसी की आँखे टीवी पर जम जाती हैं. यदि मैच बहुत बड़ा होता हैं तो इस दौरान इसका उत्साह दुगना रहता हैं. मैच के दौरान अंपायर से यदि गलती हो जाती हैं. तो इसका खामियाजा दूसरी टीम को मैच गंवाकर चुकाना पड़ सकता हैं. इसके बाद अंपायर को बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ता हैं. इसको ही ध्यान में रखते हुए आईसीसी ने एक नया नियम बनाया हैं जिससे कोई भी टीम अंपायर के फैसले को चुनौती दे सकती है.
डीआरएस पूरा नाम (Full Form of DRS)
डीआरएस (DRS) का पूरा नाम डिसीजन रिव्यू सिस्टम है. इसके अलावा इसको कभी-कभी यूडीआरएस भी कहा जाता है. जिसका अर्थ होता हैं अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम (Umpire Decision Review System)
डीआरएस की प्रक्रिया (Process of DRS)
जब भी किसी टीम को यह लगता है कि अंपायर ने जो निर्णय लिया हैं वह गलत हैं. तो वह अंपायर की ओर हाथों से T निशान बनाकर डीआरएस पद्धति का इस्तेमाल कर सकता हैं. लेकिन खिलाडी को यह डिसिशन 10 सेकंड के भीतर ही लेना पड़ता हैं वरना वह इसका फायदा उठाने से वंछित रह सकता हैं. वही यह रिव्यू सिस्टम लेने के बाद थर्ड अंपायर फैसले की समीक्षा करता है. अगर समीक्षा के दौरान थर्ड अंपायर को लगता है कि खिलाड़ी आउट नहीं है. तो ऐसी स्थिति में थर्ड अंपायर फैसले को बदल देता है. वहीं पहले अंपायर का फैसला अगर समीक्षा के दौरान सही पाया जाता है, तो उनके फैसले को कायम रखा जाता है.
कितनी बार इस्तेमाल किया जा सकता हैं (how many time a team use DRS)
आईसीसी के नियम के अनुसार प्रत्येक टीम डिसीजन रिव्यू सिस्टम का केवल दो बार इस्तेमाल कर सकती हैं. और अंपायर्स कॉल होने पर टीम को अपना डीआरएस वापस मिल जाता हैं.
किस-किस फॉर्मेट में इस्तेमाल होता हैं (DRS used in which format)
एक साल पहले तक डीआरएस का इस्तेमाल केवल टेस्ट मैच तक सीमित था. लेकिन 2017 में आईसीसी ने इसे टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच में भी लागू कर दिया. इसके साथ ही गेंद-ट्रैकिंग और अल्ट्रा एज-डिटेक्शन तकनीक का प्रयोग करना अनिवार्य हो गया है.
डीआरएस तकनीक (which technique use in DRS)
आपने मैच के दौरान देखा होगा थर्ड अंपायर कोई भी डिसिशन को देने से पहले रीप्ले का सहारा सहारा लेता हैं. इसका इस्तेमाल करके ही थर्ड अंपायर इस नतीजे पर पहुँचता हैं कि अंपायर का फैसला सही हैं या गलत. लेकिन आपको क्या यह पता हैं इस फैसले के अन्दर अंपायर तीन तकनीक का इस्तेमाल करता हैं. कौन सी तकनीक है वह, चाहिए जानते हैं.
हॉक आई तकनीक (what is Hawkeye technique in cricket)
इस तकनीक का इस्तेमाल एल.बी.डब्ल्यू. अपील के दौरान किया जाता हैं. इस तकनीक में बॉल ट्रेकिंग की मदद से देखा जाता है कि बॉल विकेटो पर लग रही है की नहीं.
हॉट स्पॉट तकनीक (what is hotspot technique in cricket)
इस तकनीक इंफ्रा-रेड इमेजिंग सिस्टम की मदद ली जाती हैं. इस तकनीक में यह देखा जाता हैं कि गेंद बल्ले से लगी है की नहीं. इस तकनीक में जिस जगह पर गेंद टकराती है वो जगह सफेद हो जाती है. जबकि बाकी तस्वीर काली रहती है.
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स्निकोमीटर तकनीक (what is snickometer technique in cricket)
इस तकनीक में गेंद की आवाज को सुनकर फैसला लिया जाता है कि गेंद बल्लेबाज के बैट या फिर पैड में लगी है की नहीं. अगर गेंद बल्ले या फिर पैड से लगती है तो आवाज सुनाई देती है और आवाज की मदद से फैसला लिया जाता है. इस तकनीक में माइक्रोफोन का प्रयोग किया जाता है. आजकल सभी मैचों में इसका इस्तेमाल देखा जा सकता हैं.
अंपायर कॉल क्या होता हैं (what is umpires call)
हाल ही में डिसीजन रिव्यू सिस्टम कुछ अहम् बदलाव किये गए थे. जिसमे सबसे महत्वपूर्ण है ‘अंपायर कॉल’. डीआरएस के नये नियमों के तहत अब आउट करार दिये खिलाड़ी पर आए फैसले को पलटने के लिये अब आधी गेंद के पैड से टकराने के साथ साथ स्टम्प के नीचे वाले ऑफ और लेग स्टम्प के बीच से बदलकर ऑफ और लेग स्टम्प के बाहरी किनारों से घिरे गिल्ली के नीचे वाले हिस्सों को कर दिया गया है. बदलाव के मुताबिक तीसरा अंपायर अगर एल बी डब्ल्यू में ‘अंपायर कॉल’ का फैसला लेता है, तो ऐसी स्थिति में रिव्यू लेने वाली टीम का रिव्यू बर्बाद नहीं जाएगा.
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