भाषा और भूषा से हम लोगों की पहचान करते है नीचे दिया गया विडियो लन्दन के सेंट जेम्स स्कूल का है जहाँ बच्चे संस्कृत भाषा का तल्लीनता से अभ्यास कर रहे है परन्तु ऐसा नजारा भारत में देखने को कम ही मिलता है. भाषा और भूषा से व्यक्ति की पहचान कर पाना संभवतः कुछ समय बाद मुश्किल हो जायेगा. क्योंकि भारतीय व्यक्ति अपनी भाषा संस्कृत से बहुत दूर होता जा रहा है.
भारत में विरले ही व्यक्ति है जो संस्कृत बोलते है और जो बोलते है उन्हें कोई तवज्जो भी नहीं देता. संस्कृत भाषा के विकास की यदि बात की जाये तो जर्मनी, इजरायल और ब्रिटेन में कई विश्वविद्यालय ऐसे है जहाँ संस्कृत उनके सिलेबस की मुख्य भाषा है. समय रहते यदि संस्कृत का प्रचार प्रसार नहीं किया गया तो हम अपनी अमूल्य भाषा से हाथ धो बैठेंगे. शायद ये दिन भी देखने को मिले कि विदेशों में संस्कृत भाषा पर पेटेंट लिए जा रहे होंगे.