आंवला नवमी 2023 तिथि, पूजा मुहूर्त, कथा और महत्त्व |
Amla Navami 2023 date, puja muhurt, katha, Significance in Hindi
आंवला नवमी (Akshay Navami 2023) हिंदू कैलेंडर में कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी पर मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार इसी दिन सत्य युग या ‘स्वर्ण युग’ की शुरुआत हुई थी. सत्य युग हिंदू धर्म में चार युगों में से पहला और सबसे महत्वपूर्ण युग है. इस वर्ष आंवला नवमी 21 नवंबर, 2023, मंगलवार के दिन आ रही है. आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जानते हैं. इस दिन लो लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया जाने वाले दान का पुण्य अगले जन्म में भी मिलता है. अक्षय नवमी समाज में वंचितों के लिए दान और देखभाल से जुड़ी है. जो लोग इस दिन को मनाते हैं उनका मानना है कि इस दिन दान के उद्देश्य से की गई गतिविधियां व्यक्ति को खुश और समृद्ध बनाती हैं. अक्षय नवमी पर, जगधात्री पूजा देश के पूर्वी हिस्से, विशेषकर पश्चिम बंगाल में मनाई जाती है. चलिए जानते है आंवला नवमी शुभ मुहूर्त और पूजा विधि और उसके महत्त्व के बारे में.
आंवला नवमी तिथि और शुभ मुहूर्त (Amla Navami 2023 Date )
आंवला नवमी तिथि | मंगलवार, 21 नवंबर, 2023 |
आंवला नवमी 2023 शुभ मुहूर्त | सुबह 06 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 07 मिनट |
आंवला नवमी तिथि प्रारंभ | 21 नवंबर, 2023 को प्रातः 03 बजकर 16 मिनट से |
आंवला नवमी तिथि समाप्त | 22 नवंबर को रात्रि 01 बजकर 09 मिनट तक |
आंवला नवमी पूजा विधि
- इस नवमी पर आंवला के पेड़ की पूजा का बहुत महत्त्व है, इसलिए इस दिन वृक्ष की पूजा की जाती है.
- पूजा करते समय सबसे पहले हल्दी कुम-कुम वृक्ष को चढ़ाए.
- उसके बाद पेड़ को कच्चा दूध व जल चढ़ाएँ.
- फिर पेड़ को कच्चा सूत का धागा बांध कर, पढ़े की परिक्रमा करें.
- पेड़ के तने से धागा आंठ बार लपेटे.
- पूजा करने के बाद व्रत कथा पढ़े या सुने.
आंवला नवमी का महत्त्व (Amla Navami Significance)
देव उठानी एकादशी से ठीक पहले आंवला नवमी मनाई जाती है, जो एक और महत्वपूर्ण दिन है, जिसका महत्त्व भी उतना ही है. भक्त इस दिनआंवला के पेड़ (भारतीय आंवले) की पूजा करते हैं और भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं. भक्तों के लिए आंवला के पेड़ की पूजा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि उनका मानना है कि यह औषधीय पौधा अच्छा स्वास्थ्य और भलाई लाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से दरिद्रता दूर होती है. शास्त्र कहते हैं, देवी लक्ष्मी ने आंवला नवमी पर आंवला के पेड़ के नीचे भोजन करने की प्रथा शुरू की थी.
भारत के पूर्वी भाग में, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, अक्षय नवमी पर जगधात्री पूजा की जाती है. देवी जगधात्री या जगत धात्री देवी दुर्गा या शक्ति का अवतार हैं. देवी जगद्दात्री को जगत की माता माना जाता है. जगधात्री पूजा कई मायनों में दुर्गा पूजा के समान है और इसे चार दिनों तक मनाया जाता है लेकिन मुख्य दिन आंवला नवमी तिथि को होता है. जो लोग इस दिन को मनाते हैं उनका मानना है कि इस दिन दान के उद्देश्य से की गई गतिविधियां व्यक्ति को खुश और समृद्ध बनाती हैं.
आंवला नवमी कथा (Amla Navami 2023 Story)
भारत के दक्षिण में विष्णुकांची राज्य में जयसेन नाम के राजा हुआ करते थे. उनका एक पुत्र था जिसका नाम मुकुंद था. एक बार राजकुमार मुकुंद जंगल में शिकार करने गये, वहाँ उनकी नजर एक स्त्री पर पड़ी जो कनकाधिप नाम के व्यापारी की पुत्री थी. राजकुमार उसे देखते ही रह गये और उस स्त्री की तरफ अकार्षित हो गये, उन्होंने उससे विवाह करने का मन बना लिया. उन्होंने उस युवती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा.
इस प्रस्ताव को सुनते ही, व्यापारी की पुत्री ने राजकुमार को बताया कि उसके भाग्य में पति का सुख नहीं है. उसने आगे बताया कि उसे ज्योतिष ने कहा है अगर उसने शादी की तो विवाह मंडप में ही उसके वर की बिजली गिरने से तत्काल मृत्यु हो जाएगी. लेकिन राजकुमार मुकुंद ने विवाह करने की ठान ली थी, इसलिए उन्होंने अपने आराध्य देव सूर्य और व्यापारी की पुत्री ने भगवान शंकर की पूजा की. भगवान शिव ने भी किशोरी को सूर्य देव की आराधना करने के लिए कहा.
उन दोनों ने गंगा के तट किनारे पर सूर्य आराधना की. उसी दौरान विलोपी नाम का दानव किशोरी की तरफ आगे बढ़ा. ये देख सूर्य देव ने उसे वहीं भस्म कर दिया. व्यापारी की पुत्री की अराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव खुद प्रकट हुए और उन्होंने किशोरी से कहा कि कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो. तुम्हारे पति को कुछ नहीं होगा.
जैसा भगवान सूर्य ने कहा था, दोनों ने वेसा ही किया, उन्होंने आंवले के वृक्ष के निचे अपना मंडप बनाया और शादी शुरू की. आसमान में अचानक बादल आ गये बिजली कड़कने लगी, बिजली मंडप पर भी गिरी पर उसे आंवले के वृक्ष ने रौक लिया और उनकी सकुशल शादी संपन्न हुई. और इसी दिन से आंवले के वृक्ष की पूजा की जाने लगी.
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