हमारी सृष्टि की रचना भगवान ब्रह्मा जी ने की थी. जब ब्रह्माजी द्वारा रचित मानसिक सृष्टि विस्तार नही हो पाया, तो ब्रह्माजी को बहुत दुःख हुआ. जब ब्रह्माजी विलाप कर रहे थे तभी आकाशवाणी हुई कि- ब्रह्मन्! अब मैथुनी सृष्टि की रचना करो. इस आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि रचने का निश्चय किया इस प्रकार का निश्चय तो कर लिया, लेकिन उस समय तक ब्रह्मांड में नारियों की उत्पत्ति नही होने के कारण वे अपने निश्चय में सफल नहीं हो सके.
ब्रह्माजी ने अपने निश्चय में लगातार विफल होने के बाद सोचा कि भगवान शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि की रचना संभव नहीं हो सकती है. अतः ब्रह्माजी शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या में लीन हो गए. कई दिनों तक ब्रह्माजी अपने हृदय में भगवान शिव का प्रेमपूर्वक ध्यान करते रहे. ब्रह्माजी के तप से प्रसन्न होकर भगवान उमा-महेश्वर ने ब्रह्माजी को अर्द्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिया. और महेश्वर शिव ने कहा कि- पुत्र ब्रह्मा! तुमने प्रजा की वृद्धि के लिए जो कठिन तपस्या की है, मैं उससे परम प्रसन्न हूं. और मैं तुम्हारी इच्छा को अवश्य पूरी करूंगा. महेश्वर शिव ने ऐसा वचन व्यक्त करने के बाद अपने शरीर के आधे भाग से उमा देवी को अलग कर दिया.
ब्रह्मा बोले— हे परमेश्वर मैं एक उचित सृष्टि निर्मित करने में अभी तक असफल रहा हूं. अब मैं स्त्री-पुरुष के समागम से प्रजा को उत्पन्न कर सृष्टि की रचना और उसका विस्तार करना चाहता हूं.
ब्रह्माजी के वचन सुनकर भगवान शिव ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान कांतिमती एक शक्ति प्रकट की. बह शक्ति सृष्टि निर्माण के लिए ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार दक्ष की पुत्री हो गई. इस शक्ति को देकर ब्रह्माजी को उपकृत कर तथा अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेव जी के शरीर में प्रविष्ट हो गईं, और पुनः भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर के रूप में आ गये थे. अर्द्धनारीश्वर शिव का रहस्य यही है और भगवान शिव के कारण ही ब्रह्माजी द्वारा रचित सृष्टि का संचालन हो पाया.