[nextpage title=”Next Page”]प्राचीन समय से पश्चिमी देशों में रहने वाली महिलाएं हिन्दू संस्कृति से प्रभावित रही है, कुछ तो उच्च प्रशासनिक पदों पर रही तो कुछ साध्वी और गुरु बन गयी. समय गवाह है हजारों लाखों पश्चिमी महिलाएं शाकाहारी भोजन अपना चुकी है. यूरोप की सड़कों पर उद्यानों में अब महिलाएं योग और प्राणायाम करती दिखाई देती है.
इन्ही के बीच से एक महिला है जिनका नाम है मीरा अल्फासा. जन्म 21 फ़रवरी 1878 को पेरिस, फ्रांस में हुआ और मृत्यु 17 नवम्बर 1973 को पांडेचेरी में हुई. मीरा का जन्म तो यहूदी धर्म में हुआ परन्तु बाद में वे जीवन पर्यंत हिन्दू रही. लोग उन्हें माँ के नाम से जानते थे. भारत में वे महान आध्यात्मिक गुरु और संत बन कर उभरी. और ऋषि अरविंदो की पढाई गीता और वेद की व्याख्या भी की.
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[nextpage title=”Next Page”]अपने एक लेख “How a Proselytised Secular Jew Became a Hindu Spiritual Leader” में शेलोमो अल्फासा (एक दूर की रिश्तेदार) कहती है कि 1904 में 26 वर्ष की उम्र में मीरा एक सपना देखती है जिसमे वह कहती है कि उसने एक काले एशियाई पुरुष की आकृति दिखती है उसे वह कृष्णा कहती है.
वह कहती है कि कृष्णा मेरी अंतर मन की यात्रा को दिशा देते है. उनकी कृष्णा में निहित आस्था थी और वह आशा करती थी कि एक दिन वह वास्तविकता जीवन में उनके दर्शन करेगी.
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[nextpage title=”Next Page”]वह फ्रांस गयी और वहां पर कई हिन्दू ग्रंथो का विस्तार से अध्ययन किया और बाद में पूरा जीवन इसी अध्ययन में लगा दिया. वह यहूदी धर्म के बारे में कहती है कि भगवान को मूल रूप से एक न्यायधीश के रूप में वर्णित किया है परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं है.
इसके अलावा उन्होंने पांडेचेरी में ओरोविल की रचना की जहाँ प्राचीन हिन्दू धर्म और संस्कृति के बारे में शिक्षा दी जाती थी.
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