राम भक्त तुलसीदास और भगवान जगन्नाथ (राम रूप में) की कहानी | Story of Tulsidas and Lord Jagannath in Hindi | Tulsidas se Judi Kahani
तुलसीदास जी के इष्टदेव भगवान जगन्नाथ है. एक बार की बात है जब तुलसीदास जी अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी गये थे. जगन्नाथ मंदिर में भक्तों की भीड़ बहुत थी यह देखकर तुलसीदासजी प्रसन्न मन से मन्दिर में गए. तुलसीदास जी ने जैसे ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन किए वे निराश हो गये. और उन्होंने विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव कदापि हमारा इष्ट नहीं हो सकता है. और वे मन्दिर से तुरंत बाहर निकल गए और मन्दिर से थोड़ी ही दूर एक वृक्ष के निचे जाकर बैठ गये. तुलसीदासजी अपने मन में विचार करने लगे की मेरा इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ. वे सोचते है की क्या गोलाकार नेत्रों वाला तथा हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं. रात्रि हो गयी थी, वे उसी वृक्ष के नीचे थके-माँदे, भूखे-प्यासे बैठे रहे, भूख से उनका अंग टूट रहा था. अचानक ही एक आहट हुई. तो उनका ध्यान उधर गया और उसे सुनने लगे.
तभी उन्होंने देखा एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था – अरे बाबा ! तुलसीदास कौन है?
तभी तुलसीदास जी उठते हुए बोले –हाँ भाई ! मैं ही हूँ तुलसीदास’ बताइए क्या काम है.
बालक ने कहा, अरे ! आप यहाँ हैं. मैं बहुत देर से आपको ही खोज रहा हूँ. अपने हाथ को आगे बढ़ाते हुए ‘बालक ने कहा -‘लीजिए, मैं जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है.
तुलसीदास बोले – कृपया करके आप इसे वापस ले जाएँ.
बालक ने कहा, कि यह तो आश्चर्य की बात है, जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ’ और ओर आप इसे अस्वीकार कर रहे है. और वह भी जब स्वयं महाप्रभु ने भेजा. इसका क्या कारण है?
तुलसीदासजी ने कहा, अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्टदेव को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता हु. और फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्टदेव को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे लिए किस काम का है?
तभी बालक ने मुस्कराते हुए कहा, बाबा ! यह प्रसाद आपके इष्ट ने ही भेजा है. तो आप इसे ग्रहण कर सकते है.
तुलसीदास ने बालक से कहा – यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता है यह मेरे राम कभी नही हो कसते है.
बालक ने तुलसीदासजी से कहा कि श्रीरामचरितमानस में तो आपने अपने इष्टदेव के इसी रूप का वर्णन किया है—
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना
आनन रहित सकल रस भोगी
बिनु बानी बकता बड़ जोगी
बालक के ऐसा जवाब देने के बाद तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी. उनके नेत्रों में अश्रु-बिन्दु थे, और मुख से कुछ भी शब्द नहीं निकल रहे थे. बालक ने थाल रखा और यह कहकर अदृश्य हो गया कि मैं ही राम हूँ. मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमानजी का पहरा हर समय रहता है. और प्रतिदिन विभीषण मेरे दर्शन को आता है. कल प्रातः तुम भी आकर मेरे दर्शन कर लेना.
बालक अर्थात रामजी के जाने के बाद तुलसीदास जी ने बड़े प्रेम से वह प्रसाद ग्रहण किया. और प्रातःकाल उठकर मन्दिर गये. मंदिर में उन्होंने जगन्नाथजी, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए. और दर्शन करते ही वे भाव-विभोर हो गए. इस प्रकार तुलसीदासजी को श्री राम के दर्शन हुए और भगवान ने एक भक्त की इच्छा को पूरी किया.
तुलसीदास जी जिस स्थान पर वह रात्रि व्यतीत की थी, उस स्थान को आज ‘तुलसी चौरा’ नाम से जाना जाता है. वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ ‘बड़छता मठ’ के रूप में प्रतिष्ठित की गई है. जगन्नाथजी के दर्शन करने वाला हर व्यक्ति तुलसी चौरा के दर्शन भी करता है.
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