गोगामेड़ी में स्थित गोगाजी और गुरु गोरखनाथ मंदिर का इतिहास, कहानी और मेले से जुडी जानकारी | Gogaji and Guru Gorakhnath (Gogamedi) mandir in Hindi
राजस्थान के गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में देश का एक अनूठा मंदिर गोगाजी और गुरु गोरखनाथ मंदिर स्थित हैं. इस मंदिर में प्याज और दाल चढाने की अनोखी परंपरा हैं देश में इस मंदिर के अलावा अन्य कोई मंदिर नहीं मिलेगा जहाँ दान और प्रसाद में प्याज स्वीकारा जाता हो. वर्षभर मंदिर में प्याज का ढेर लगा हुआ रहता हैं. दान में आये प्याज को बेचकर गौशाला और भंडारे का आयोजन किया जाता हैं. इस मंदिर में हिन्दू और मुसलमान दोनों दर्शन करने के लिए पहुँचते हैं.
गोगाजी मंदिर का इतिहास (Gogaji Temple History)
गोगाजी को राजस्थान का लोक देवता माना जाता हैं. जिसकी जन्म स्थली चुरू जिले के ददरेवा गाँव थी. उनका जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से हुआ. गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिष्य थे.
एक हजार वर्ष पहले गोगाजी और आक्रमणकारी महमूद गजनवी के बीच युद्ध हुआ था. युद्ध में गोगाजी ने आस-पास के इलाकों से सेना बुलाई थी. लड़ाई के लिए आये सैनिक अपने साथ रसद में दाल और प्याज भरके लाये. इस युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए. उनकी मृत्यु के बाद वापसी के दौरान उनकी समाधी पर सैनिकों ने प्याज और दाल चढ़ा दिए. जिसके बाद से यह परंपरा चली आ रही हैं. गोगा के कोई पुत्र जीवित न होने से उसके भाई बैरसी या उसके पुत्र उदयराज ददरेवा के राणा बने.
सभी धर्मं के लोग यहाँ पर दूर-दूर से मत्था टेकने के लिए आते हैं और दिल खोलकर चढ़ावा चढ़ाते हैं. इस मंदिर में दाल और प्याज को छोड़कर खील, बताशे भी प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है. कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं. इस तरह वह एक धर्मंनिरपेक्ष देवता के रूप में यहाँ विराजमान हैं.
एक मान्यता के अनुसार ददरेवा में आने वाले हर भक्त को सबसे पहले गोरख गंगा में स्नान करके उसी पानी से खीर बना के खाना चाहिए. जिसके बाद भक्त को गोरख टीला पर जाकर मंदिर में प्याज का प्रसाद चढ़ाना चाहिए.
गोगाजी मंदिर का मेला (Gogaji Temple Fair)
गोगाजी और गुरु गोरखनाथ मंदिर यहाँ लगाने वाले मेले के कारण भी मशहूर हैं. यहाँ पर 15 दिन का मेला हर साल लगता हैं. जो कि रक्षाबंधन के दुसरे दिन से शुरू होता हैं. इसमें सर्वाधिक भीड़ कृष्ण पक्ष की छठ, सप्तमी और अष्टमी तथा शुक्ल पक्ष की छठ, सप्तमी और अष्टमी को लगती है.
स्थानीय निवासियों के अनुसार हर साल यहाँ 20-30 लाख श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने पहुँचते हैं. जिसमे से ज्यादातर उत्तरप्रदेश और बिहार से आते हैं. शुक्ल पक्ष में पंजाब से ज्यादा श्रद्धालु यहां आते हैं. यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार खील, प्याज और दाल चढाते हैं.
यहां कैसे पहुंचे? (Transportation To Reach)
सड़क मार्ग- सड़क मार्ग से यहाँ पहुँचाना बेहद ही आसान हैं जयपुर शहर देश के सभी राष्ट्रीय मार्ग से जुड़ा हुआ हैं. जयपुर से सादलपुर और सादलपुर से 15 किमी दूर स्थित दत्तखेड़ा बस या किसी टैक्सी के पहुंचा जा सकता हैं.
रेल मार्ग- जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर तक ट्रेन द्वारा जाया जा सकता है. जिसके बाद आपको बस या टैक्सी की सहायता लेनी होगी.
वायु मार्ग- गोगा देव जन्म स्थान के सबसे निकटतम हवाई अड्डा 250 किलोमीटर दूर जयपुर में स्थित है.
दोस्तों दुनिया में ऐसी बहुत सारी प्रथा है जो कि इंसान को काफी हैरान कर देती है. फिर भी उसमे कही न कहीं कुछ सच्चाई जरूर छिपी रहती है. मुझे उम्मीद है ये पोस्ट आपको जरूर अच्छी लगी होगी. इसी तरह और नए अप्डेट्स पाने के लिए आज ही हमे फॉलो करें.
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