बर्बरीक (खाटूश्यामजी) की कहानी, महाभारत युद्ध में महत्व और प्राप्त वरदान | Barbarik (Khatushyam ji) Story, Role in Mahabharat and Vardhan in Hindi
महाभारत के युद्ध को हिंदू पौराणिक कथाओं के सबसे लंबे महाकाव्य के रूप में माना जाता है. महाकाव्य में ऐसे कई पात्र होते हैं जिनका कई विशाल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान होता है. इसमें कई असंगत नायक भी शामिल हैं जिन्होंने कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ऐसा एक योद्धा जो अत्यधिक शक्ति से आशीर्वादित था और यदि कामना करता तो एक मिनट में कुरुक्षेत्र का सबसे लंबा युद्ध समाप्त हो सकता था. वह बर्बरीक या बरबरिका थे. जिन्हें खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता हैं. बर्बरीक भीम के पोते थे और बचपन से ही एक महान योद्धा माने जाते थे. आज की अवधि में, उन्हें कल्यागी भगवान के रूप में भी सम्मानित किया जाता है. इनका मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित हैं. यह मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं. कुछ लोग इन्हें भगवान कृष्ण का अवतार भी मानते हैं.
खाटूश्याम के वरदान (Khatu Shyam Ke Vardan)
बर्बरीक (खाटूश्याम) घटोत्कच के पुत्र और भीम के पोते थे. बर्बरीक भगवान शिव के एक बड़े भक्त थे. तपस्या और भक्ति की लंबी अवधि के बाद भगवान् शिव ने तीन अचूक बाण बर्बरीक को वरदान के रूप में दिए थे. प्रत्येक तीर की अपनी विशिष्टता और विशेषता थी.
- पहला बाण दुश्मनों को चिह्नित करता है जिन्हें वह नष्ट करना चाहता है.
- दूसरे बाण उन लोगों को चिह्नित करते हैं जिन्हें वह बचाना चाहता है.
- तीसरा पहला तीर से चिह्नित सभी चीजों को नष्ट कर देगा और अपने तुणीर में लौट जाएगा.
उनके वरदान की एकमात्र शर्त यह थी कि वह अपने निजी प्रतिशोध के लिए अपने तीरों का उपयोग नहीं कर सकता था और उसे हमेशा युद्ध क्षेत्र में कमजोर पक्ष की मदद के लिए उनका उपयोग करना पड़ेगा.
खाटूश्याम की कहानी (Story of Khatu Shyam)
महाभारत के दौरान, जब भगवान कृष्ण ने सभी योद्धाओं से पूछा कि उन्हें युद्ध समाप्त करने के लिए कितने दिन लगेंगे, तो सभी का उत्तर औसत 15-20 था. किन्तु बर्बरीक ने जवाब दिया कि वह अपने 3 तीरों के साथ एक मिनट में युद्ध समाप्त कर देंगे.
अपने तीरों की शक्तियों को देखने के बाद, भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह कुरुक्षेत्र में किस तरफ से लड़ेंगे. बर्बरीक ने जवाब दिया कि वह पांडव की ओर लड़ेंगे क्योंकि वे कमज़ोर पक्ष थे. कृष्ण ने जवाब दिया कि क्या वह पांडव का समर्थन करते हैं. जिससे वे मजबूत हो जाएंगे और उनकी वरदान की स्थिति को पूरा करने के लिए उन्हें कौरवों का समर्थन करना होगा. इसने एक ऐसी स्थिति बनाई जहां बरबरिका को कौरवों में जाना होगा और पांडवों को नष्ट करना होगा.
पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए बर्बरीक के वरदान को व्यर्थ करना था. भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेष धारण कर बर्बरीक के मार्ग में आ गए. और श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का उपहास बनाया कि वह तीन बाण से कैसे युद्ध समाप्त कर देगा. तब बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण हैं और अपने बाणों से सभी शत्रुओं को समाप्त कर युद्ध का अंत कर देगा. ब्राह्मण के वेश में श्रीकृष्ण ने कहा की हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं उसे अपने बाणों से सभी पत्तों पर निशाना लगाना है तो मैं मन जाऊँगा कि तुम एक बाण से युद्ध समाप्त कर सकते हो. बर्बरीक ने ब्राह्मण की इस चुनौती को स्वीकार कर, अपने आराध्य शिव को स्मरण कर अपने बाण को चला दिया. पेड़ पर लगे सभी पत्तों और नीचे गिरे पत्तों में छेद हो गया. परन्तु एक बाण ब्राह्मण के पैर के चारों ओर घूमने लगा. बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा कि वे अपना पैर उस पत्ते पर से हटा ले अन्यथा बाण उनका पैर चोटिल कर देगा.
इसके बाद ब्राह्मण ने बर्बरीक से दान माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया. ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने वरदान में बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया. बर्बरीक समझ गए की दान में शीश को मांगने वाला कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं. बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तविक परिचय का आग्रह किया. तब श्रीकृष्ण ने अपने विशाल स्वरुप के दर्शन दिए. सत्य जानने के बाद बर्बरीक ने अपना शीश श्रीकृष्ण को सौपने को तैयार हो गए और बर्बरीक ने इच्छा रखी कि वह इस पूरे युद्ध को देखना चाहता है. भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का शीश अलग कर उसे अमृत्त्व देकर एक पर्वत पर स्थापित कर दिया. इस प्रकार बर्बरीक ने मानव जाति के कल्याण के लिए खुद को सिर से मारकर अपना जीवन त्याग दिया और महाभारत युद्ध का साक्षी बन गया.
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