[nextpage title=”nextpage”]आप सभी ने बहुत से विवाह को देखा होगा. कई विवाह में सम्मिलित भी हुए होंगे. और आपने विवाह के कार्ड अथवा पत्रिका देखि होगी जिस पर हमेशा ही लडके के नाम के आगे चिरंजीव तथा लडकी के नाम के आगे आयुष्मती लिखा होता है. आइये आज हम आपको इसके लिखने के पीछे के कहानी के वृतांत बताते है.
चिरंजीव:—
एक ब्राह्मण के कोई संतान नही थी, उसने देवी महामाया की तपस्या की और फलस्वरूप माता जी तपस्या से प्रसन्न हो गए और ब्राह्मण से बरदान माँगने को कहा– ब्राह्मण ने वरदान में पुत्र माँगा. माता महामाया ने कहा की मेरे पास दो तरह के पुत्र हैं. पहला जो दस हजार वर्ष तक जियेगा किन्तु महा मूर्ख होगा. तथा दूसरा वह जिसकी आयु पन्द्रह वर्ष (अल्पायु ) है वह महा विद्वान होगा. महामाया ने ब्राह्मण से पूछा की तुम्हे किस तरह का पुत्र चहिए. ब्राह्मण बोला माता मुझे दूसरा वाला पुत्र दे दो. माता ने तथास्तु ! कहा.
महामाया के आशीर्वाद से कुछ दिन बाद ब्राह्मणी ने एक अतिसुन्दर पुत्र को जन्म दिया और उन्होंने उसका लालन- पालन किया धीरे-धीरे वह बालक पाँच वर्ष का हो गया. माता का वह वरदान याद करके ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा पांच वर्ष बीत गये हैं, मेरा पुत्र अल्पायु है जिन आँखों ने लाल को बढते हुए देखा है, जिन आँखों में लाल की छवि बसी हुई है अथाह प्रेम है वह आँखे लाल की मृत्यु कैसे देख पायेंगी कुछ भी करके मेरे लाल को बचालो. माता का करूण ह्रदय तडपता रहा. किन्तु कुछ उपाय नही मिला.
ब्राह्मण ने अपने पुत्र को विद्या अध्ययन करने के लिए काशी भेज दिया. और ब्राह्मण और उसकी पत्नी दोनों दिन-रात पुत्र के वियोग में दुखी रहने लगे. धीरे-धीरे समय बीतता चला गया और पुत्र के मृत्यु का समय निकट आया. काशी के एक सेंठ ने अपनी पुत्री के साथ उस ब्राह्मण पुत्र का विवाह कर दिया. जब विवाह के पश्चात उन दोनों पति-पत्नी के मिलन की रात आई वही रत उसकी मृत्यु की रात थी. यमराज नाग रूप धारण कर उसके प्राण हरने के लिए आये. नाग ने उसके पती को डस लिया पर पत्नी ने नाग को पकड के कमंडल में बंदकर दिया. तब तक उसके पती की मृत्यु हो गयी.
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ब्राह्मण की पत्नी महामाया की बहुत बडी भक्त थी वह अपने पती को जीवित करने के लिए माँ की आराधना करने लगी. उसको आराधना करते-करते एक माह बीत गया था. उस पत्नी के सतीत्व के आगे श्रृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई. यमराज के कमंडल में बंद होने के कारण यम लोक की सारी गतविधियाँ रूक गईं. सभी देवों ने माता से अनुरोध किया और कहा की -हे माता हम लोंगो ने यमराज को छुडाने की बहुत कोशिश की लेकिन छुडा नही पाये. हे! जगदम्बा अब तुम्ही यमराज को छुडा सकती हो.
तभी माता जगदम्बा ब्राह्मण की पत्नी के समक्ष प्रगटी और बोली :– हे! बेटी तुमने जिस नाग को कमंडल में बंद किया है वह स्वयं यम लोक के राजा यमराज हैं उनके बिना यम लोक के सारे कार्य रुक गये हैं. हे पुत्री यमराज को आजाद कर दे. माता महामाया के आदेश का पालन करते हुए ब्राह्मण की पत्नी ने दुल्हन ने कमंडल से यमराज को आजाद कर दिया. कमंडल से आजाद होकर यमराज बाहर आये. तो उन्होंने माता को तथा दुल्हन के सतीत्व को प्रणाम किया. माता की आज्ञा से यमराज ने उसके पति के प्राण वापस कर दिये. तथा चिरंजीवी रहने का वरदान दिया, और स्वयं यमराज ने उसे चिरंजीव कहके पुकारा. तब से लडके के नाम के आगे चिरंजीव लिखने की पृथा चली.
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आयुषमती:—
यह कहानी राजा आकाश धर की है. राजा आकाश धर को कोई सन्तान नही थी. उन्होंने सन्तान प्राप्ति के लिए कई उपाय किये थे. एक बार नारद जी ने उन्हें कहा की वह सोने के हल से धरती का दोहन करके उस भूमि पर यज्ञ करो तो इसके फलस्वरूप तुम्हे सन्तान जरूर प्राप्त होगी. राजा ने सोने के हल से पृथ्वी जोती, और जोतते समय ही उन्हें भूमि से कन्या प्राप्त हुई.
उस कन्या को राजा महल लेकर आये. तभी राजा ने देखा की महल में एक शेर खडा है जो कन्या को खाना चाहता है, और उसी डर के कारण राजा के हाथ से कन्या छूट गई. और कन्या को शेर ने मुख में पकड़ लिया, कन्या को मुख में पकड़ते ही शेर कमल पुष्प में परिवर्तित हो गया, और उसी समय विष्णु जी प्रगटे और जैसे ही विष्णु जी ने कमल को अपने हाथ से स्पर्स किया तो स्पर्श करते ही कमल पुष्प यमराज बनकर प्रगट हुआ,और वो कन्या पच्चीस वर्ष की युवती हो गई.
ततपश्चात राजा ने उस कन्या का विवाह भगवान विष्णु जी से कर दिया. और यमराज ने उसे आयुषमती कहके पुकारा और आयुषमती का वरदान दिया. तब से विवाह मे पत्र पर कन्या के नाम के आगे आयुषमती लिखा जाने लगा.
साभार – डा.अजय दीक्षित[/nextpage]