महांकाल : मोक्षदायिनी भस्म आरती की भस्म कैसे तैयार होती है जानिए..

उज्जैन मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन नगर है जो की क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है. प्राचीन समय में इसे उज्जयिनी कहा जाता था. जैसा की महाभारत ग्रन्थ में वर्णित है उज्जयिनिं नगर अवन्ती राज्य की राजधानी था. यहा पर भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक तथा अति पावन श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विद्यमान है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा दक्षिणमुखी शिवलिंग है, जो तंत्र-मंत्र की दृष्टि से भी खास महत्वपूर्ण माना गया है. यहाँ पर होने वाली भस्म आरती की बहुत ही मान्यता है. इसके दूर दराज से भी लोग आते है. भस्म की आरती सुबह – भस्म आरती एक रहस्यमयी व असामान्य अनुष्ठान है, जो विश्वभर में सिर्फ उज्जैन के महाकाल मंदिर में किया जाता है. महाकाल मंदिर में आयोजित होने वाले विभिन्न दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान भस्म आरती होती है. यह भस्म आरती पुरे देश में विख्यात है.

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भस्म आरती को लेकर ऐसी मान्यता हैं कि भगवान शिव को जगाने व उनका श्रृंगार करने के लिए सुबह 4 बजे यह आरती की जाती है. जब भस्म आरती होती है तब महिलाओं का वहां रहना वर्जित है. पुराण-महाभारत में मिलता है वर्णन- पुराणों, महाभारत व कई रचनाओं में भी इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है. माना जाता है कि इनके दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है. उज्जैन में महाकाल को ही राजा माना जाता है, इसलिए महाकाल की इस नगरी में और कोई भी राजा कभी रात में यहां नहीं ठहरता है.

भस्म आरती क्यों की जाती है

शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है. हम सभी को एक दिन भी इसी तरह भस्म में विलीन हो जाना है. एक दिन पूरी सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित होनी है. सृष्टि के सार भस्म को भगवान शिव सदैव धारण किए रहते हैं. इसका अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जाएगी.

कैसे तैयार होता है महांकाल के लिए भस्म

भुतभावन भगवान महांकाल की भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकडि़कों को एक साथ जलाया जाता है. इस दौरान उचित मंत्रोच्चार भी किए जाते हैं. इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है. इस प्रकार, तैयार की गई भस्म भगवान शिव को अर्पित की जाती है।.

प्राचीन काल में महाकाल का श्रृंगार शमशान घाट से लाई गयी मुरदे की भस्मी से किया जाता था परंतु अब इसमें बदलाव कर दिया गया है.