भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा (चन्द्र देव) के विराजित होने की कहानी | Story of Lord Shiva and Moon (Chandra dev) in Hindi
हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवता है उन सभी देवी– देवताओ में भोलेनाथ की वेशभुसा सबसे अलग और रहस्मयी भी है. भगवान शंकर की वेशभूषा के पीछ अत्यन्त गहरे अर्थ छिपे हुए है. शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर के वेश-भूषा से जुड़े प्रतिको के रहस्यों को जान लेने मात्र से ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान शंकर की वेशभूषा ऐसी है की प्रत्येक धर्म का व्यक्ति उनमे अपना प्रतीक ढूढ़ सकता है.
शास्त्रों के अनुसार चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ. इनमे चंद्र एवं रोहिणी बहुत सुन्दर थीं. इसी कारण चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह था. यह देख शेष कन्याओं ने अपना दु:ख दक्ष प्रजापति के समक्ष प्रकट किया.
दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने जब अपनी कन्याओ के दुःख को सुना तो वे क्रोधित हो गये ओर क्रोध में आकर उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे. और दक्ष के श्राप के फलस्वरूप चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी सभी कलाएं धीरे-धीरे क्षीण होना प्रारंभ हो गईं. नारदजी ने चंद्र देव को मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने के लिए कहा, उसके बाद उन्होंने भगवान आशुतोष की आराधना की.
चंद्रदेव जब अपनी अंतिम सांसें गिन रहे थे. तब भगवान शिव प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर चंद्र की अंतिम एकधारी को अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्यु तुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए. यह सब शिवजी के मस्तक पर धारण करने के कारण हुआ है. पुन: धीरे-धीरे चंद्रदेव स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हो गये.
चंद्र जब क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे. और भगवान शिव ने ही उस दोष का निवारण किया और उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिवजी की आराधना करनी चाहिए. क्योकि उन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था. अतः वे किसी भी मनुष्य का उद्धार कर सकते है.
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