नवरात्री की पूजा विधि, महत्व, तिथि और नवदुर्गा के 9 रूप की कथा | Navratri 2021 Date, Significance, Puja Vidhi in Hindi (Navdurga Ke 9 Roop)
हिन्दू धर्म दुर्गा पूजा और नवरात्री का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. पूरे भारत देश में ही इस उत्सव को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं. नवरात्री शब्द का अर्थ हैं नौ रात्रि. इन नौ दिन तक शक्ति के नौ रूप अर्थात माता दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता हैं. प्रति वर्ष नवरात्री चार बार आती हैं. हिन्दू पंचाग के अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन माह की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती हैं. जिनमे से पौष और आषाढ़ माह की नवरात्री को गुप्त नवरात्री कहा जाता हैं. पूरे भारत वर्ष में चैत्र और अश्विन माह की नवरात्री को बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ बनाया जाता हैं.
1. चैत्र नवरात्री (बड़ी नवरात्रि)
यह नवरात्री विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक बनाया जाता हैं. नवमी तिथि को राम नवमी के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ भी होता हैं. यह नवरात्री प्रतिवर्ष मार्च अप्रैल के समय आती है.
2. अश्विन नवरात्री (छोटी नवरात्रि)
यह नवरात्री हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती हैं और नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना की जाती हैं और दशमी तिथि को दशहरा का त्यौहार आता हैं. इस नवरात्री को शारदीय नवरात्री भी कहा जाता हैं. यह नवरात्री अक्टूबर और नवम्बर माह में आती हैं. दशहरे के बीस दिनों बाद दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है.
वर्ष 2022 में अश्विन माह में (शारदीय) नवरात्रि 26 सितम्बर 2022 से शुरू हो रही है. तो चलिए जानते है किस दिन है अष्टमी है और पूजा विधि और कथा के बारे में.
2022 में नवरात्री की तिथि (Dates of Navratri in 2022)
26 सितम्बर (सोमवार), 2022 | घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा (एकम) |
27 सितम्बर (मंगलवार), 2022 | मां ब्रह्मचारिणी की पूजा (दूज) |
28 सितम्बर (बुधवार), 2022 | माँ चंद्रघंटा पूजा (तीज) |
29 सितम्बर (गुरुवार), 2022 | माँ कुष्मांडा पूजा (चौथ) |
30 सितम्बर (शुक्रवार), 2022 | माँ स्कंदमाता पूजा (पंचमी) |
1 अक्टूबर (शनिवार), 2022 | माँ कात्यायनी पूजा (षष्ठी)) |
2 अक्टूबर (रविवार), 2022 | माँ कालरात्रि पूजा (सप्तमी) |
3 अक्टूबर (सोमवार), 2022 | माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी |
4 अक्टूबर (मंगलवार), 2022 | नवरात्री पारण, महानवमी |
5 अक्टूबर (बुधवार), 2022 | दुर्गा विसर्जन |
अष्टमी तिथि शुभ मुहूर्त
इस वर्ष अष्टमी तिथि 3 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार को पड़ रही है. इस दिन महगौरी माता का पूजन किया जाएगा.
अष्टमी तिथि आरंभ | 2 अक्टूबर 2022 को शाम 06:47 से |
अष्टमी तिथि समाप्त | 3 अक्टूबर 2022 को दोपहर 4:37 तक |
नवरात्री पूजन विधि (Navratri Puja Vidhi in Hindi)
नवरात्री के दौरान देवी दुर्गा के पूजन में बहुत महतवपूर्ण होता हैं. बहुत सावधानी पूर्वक और नियमों के अनुसार माता का पूजन किया जाता हैं. पंडितों द्वारा विधिवत मंत्रोउच्चार किया जाता हैं और नौ दिनों तक अखंड ज्योत जलायी जाती है.
दुर्गा अष्टमी पूजन विधि
- दुर्गा अष्टमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ़ और स्वच्छ पीले रंग के कपड़े पहने.
- इसके बाद पूजन करते वक्त मातारानी के समक्ष दीपक जलाएं .
- अब मातारानी को कंकू-चावल, सफ़ेद फुल और फल आदि अर्पित करें.
- अब एक उपले के अंगारे का लोंग, देशी घी, कपूर आदि से अग्यारी करें .
- परिवार के सभी सदस्यों द्वारा विधिवत पूजा हो जाने के बाद मातारानी की आरती उतारें और कुछ देर वहीं बैठकर मां का ध्यान करते हुए मंत्र जाप करें.
- यदि आपने पूर्ण नवरात्री व्रत रखा हो तो आपको अष्टमी पर हवन जरुर करवाना चाहिए.
3. पौष नवरात्री और आषाढ़ नवरात्री (गुप्त नवरात्रि)
पौष माह और आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्री को गुप्त नवरात्री भी कहा जाता हैं. आषाढ़ नवरात्री जून-जुलाई के महीने में आती हैं. जबकि पौष माह की नवरात्री दिसम्बर-जनवरी के महीने में आती हैं.
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नवरात्रि का महत्व और कथा (Navratri Significance and Story)
नवरात्री का त्यौहार पूरे भारत का एक राष्ट्रीय उत्सव हैं. भारत के अलग-अलग राज्यों में अपने-अपने तरीकों से यह उत्सव बनाया जाता हैं. परन्तु सभी जगह नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती हैं.
एक कथा के अनुसार महिषासुर की कठोर तपस्या से सभी देवताओं ने खुश होकर उसे अजेय होने का वरदान दिया था. वरदान पाकर महिषासुर को अभिमान हो गया था. जिसके कारण वह उसका दुरूपयोग करने लगा और स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया था. महिषासुर के कारण सभी देवताओं को पृथ्वी पर अपना जीवन-यापन करना पड़ा था. देवताओं की रक्षा और पुनः उन्हें स्वर्ग में अपना अधिपत्य वापस दिलाने के लिए नौ दिनों तक देवी दुर्गा ने महिषासुर से संग्राम किया और महिषासुर का संहार किया. महिषासुर के वध के कारण माता दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता हैं. इसलिए बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में नवरात्री मनाई जाती हैं.
एक कथा के अनुसार लंका युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए ब्रम्हा जी ने श्रीराम को देवी दुर्गा का यज्ञ करने को कहा था. विधिवत पूजन के अनुसार प्रभु श्रीराम को दुर्लभ 108 नीलकमल माता को अर्पित करने थे. ठीक उसी समय रावण ने भी माता दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर दी थी. रावण को जब यह बात पता चली की प्रभु श्रीराम भी देवी दुर्गा का यज्ञ कर रहे हैं तो रावण ने यज्ञ में विघ्न डालने के लिए हवन सामग्री में से एक नीलकमल छलपूर्वक गायब करा दिया. नील कमल के बिना यज्ञ संभव नहीं हो सकता था इसलिए प्रभु श्रीराम में यज्ञ पूर्ण करने के लियें अपना नयन को नीलकमल की जगह अर्पित करने के लियें जैसे अपने नेत्र को निकालने लगे तभी वहा देवी दुर्गा प्रकट हुई और कहा कि वे उनकी भक्ति से प्रसन्न हुई और उन्हें अजेय होने आशीर्वाद दिया.
देवी दुर्गा के नौ रूप (Nine names of Devi in Hindi)
माता शैलपुत्री
देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक माता शैलपुत्री हैं. नवरात्री के प्रथम दिन माता शैलपुत्री का पूजन किया जाया हैं. माता शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के यहाँ हुआ था इसलिए इन्हें शैलपुत्री और हैमवती भी कहा जाता हैं. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ हैं.
माता ब्रह्मचारिणी
माता दुर्गा का दूसरा रूप माता ब्रह्मचारिणी का हैं, नवरात्री के दुसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं. माता ब्रह्मचारिणी में अपने कठोर ताप से सभी को अचंभित और अभिभूत कर दिया. माता ने तीन हजार वर्षों तक निर्जला और निराहार रहकर कठोर तप किया था. जिससे सम्पूर्ण पृथ्वी पर त्राहिमाम हो गया था फिर ब्रह्मा जी माता का अभिवादन किया जिसके कारण देवी दुर्गा के इस रूप को माता ब्रह्मचारिणी कहा जाता हैं. देवी दुर्गा का यह रूप तीन नेत्रों से युक्त हैं.
माता चंद्रघंटा
माता दुर्गा का तीसरा स्वरुप देवी चंद्रघंटा हैं. नवरात्री के तीसरे दिन इन्ही की पूजा की जाती हैं. माता चंद्रघंटा का वाहन बाघ हैं. मस्तक पर घंटे के आकर का चन्द्र होने के कारण देवी दुर्गा का यह रूप माता चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध हैं.
माता कुष्मांडा
माता दुर्गा का चौथा स्वरुप कुष्मांडा के नाम से प्रसिद्ध हैं, नवरात्री के चौथे दिन देवी दुर्गा के इस रूप का पूजन किया जाता हैं. माता कुष्मांडा के मस्तक पर अर्ध चन्द्र विराजमान हैं और माता अष्ट भुजाओं से सुशोभित हैं. माता कुष्मांडा का वाहन बाघ हैं.
माता स्कंद
देवी दुर्गा का पाँचवा स्वरुप माता स्कंद हैं. नवरात्र के पाँचवे दिन माता स्कंद की पूजा की जाती हैं. माता स्कंद के दोनों हाथों में पुष्प सुशोभित हैं. स्कंद माता के पुत्र कार्तिकेय हैं. माता स्कंद से पूजन के साथ कार्तिकेय की पूजा भी स्वयमेव हो जाती हैं.
माता कात्यायनी
माता दुर्गा का छटा रूप कात्यायनी के नाम से विख्यात हैं. नवरात्र के छटे दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती हैं. देवी दुर्गा के यह स्वरुप ने ही महिषासुर का वध किया था. माता कात्यायनी की सवारी सिंह हैं. देवी कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री भी हैं.
माता कालरात्री
देवी दुर्गा का सातंवा रूप कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हैं. नवरात्र के सांतवे दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती हैं. माता का यह रूप अर्ध चन्द्र और तीन नेत्रों से युक्त हैं. माता कालरात्रि का वाहन गधा हैं. माता अपने वाहन पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं. माता कालरात्रि को ‘शुभंकरी’ नाम से भी जाना जाता हैं. माता कालरात्रि ने ही रक्तबीज दानव का संहार किया था.
माता महागौरी
माता दुर्गा का आँठवा रूप माता महागौरी हैं. नवरात्र के आंठवे दिन देवी दुर्गा के इस स्वरूप का पूजन किया जाता हैं. माता महागौरी का वाहन वृषभ हैं. माता का यह रूप भी अपनी सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं.
माता सिद्धिदात्री
देवी दुर्गा का नौवा रूप माता महागौरी हैं. नवरात्र के नौवे दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं. अष्ट सिद्धियाँ! अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व तथा वशित्व होती हैं, समस्त सिद्धियाँ इन्हीं द्वारा प्रदान की जाती हैं. माता सिद्धिदात्री कमल तथा सिंह के आसान पर विराजमान हैं.
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