फुलेरा दूज त्यौहार का महत्व और इसे कैसे मनाया जाता हैं तिथि और मुहूर्त | Phulera Dooj Ka Mahatva Aur Kaise Manaya Jata hai (Celebration Process) in Hindi
यह एक प्रतिष्ठित त्यौहार है जो भगवान कृष्ण को समर्पित है और इसे होली से जुड़े अनुष्ठान के रूप में भी जाना जाता है. हिंदी में फूल शब्द जिसमें से फुलेरा शब्द निकला है. यह त्यौहार ज्यादातर भारत के उत्तर में मनाया जाता है. फुलेरा दूज एक त्यौहार है जहां लोग फूलों के साथ खेलते हैं. यह विशेष त्यौहार होली से पहले फरवरी और मार्च के महीनों में वसंत पंचमी और होली के त्यौहार के बीच मनाया जाता है.
कब मनाई जाती हैं फुलेरादूज? (Phulera Dooj Festival 2019 Date)
हिन्दू पंचाग के अनुसार यह त्यौहार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को फूलेरा दूज मनाई जाती हैं. वर्ष 2019 में यह फुलेरा दूज 8 मार्च शुक्रवार को हैं.
फुलेरादूज का महत्व (Phulera Dooj Mahatva)
खगोलीय गणना के अनुसार, फुलेरा दूज का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि इसका हर पल सभी ‘दोष’ या दोषों से मुक्त होता है और इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ के रूप में जाना जाता है. इसलिए शादी जैसे किसी भी समारोह को किसी भी ‘मुहूर्त’ या फुलेरा दूज पर आयोजित किया जा सकता है. इस दिन किसी भी पंडित या ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक नहीं है. उत्तर भारत में, ज्यादातर शादियाँ इसी खास दिन से शुरू होती हैं. यदि कोई व्यक्ति एक नया व्यापार उद्यम शुरू करने की योजना बना रहा है, तो फुलेरा दूज से बेहतर कोई दिन नहीं हो सकता है. संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि फुलेरा दूज का त्यौहार इस बात का प्रतीक है कि भगवान कृष्ण अपने भक्तों से जो स्नेह और प्यार प्राप्त करते हैं वह कैसे वापस मिलता है.
फुलेरा दूज कैसे मनाये (Phulera Dooj Festival Celebrate Process)
मंदिरों में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भगवान कृष्ण के भक्त भी भाग लेते हैं. वे भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन (भक्ति गीत) गाते हुए दिन बिताते हैं. होली का स्वागत करने के संकेत के रूप में कुछ रंगों को भगवान कृष्ण की मूर्तियों पर भी लगाया जाता है. कार्यक्रम के अंत में मंदिर के पुजारी मंदिर में इकट्ठे होते हुए सभी भक्तों पर रंग या ‘गुलाल’ छिड़कते हैं. खासकर मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में ये उत्सव देखने लायक होते हैं. फुलेरा दूज का त्यौहार भगवान कृष्ण को समर्पित है. भक्त पूरी श्रद्धा के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और समृद्धि और खुशियों का जीवन जीने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं. इस दिन लोग अपने घरों में भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सुशोभित करते हैं. इस दिन उनके देवता के साथ फूलों से होली खेलने की रस्म होती है.
भगवान कृष्ण के लगभग सभी मंदिरों में, विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में जहां भगवान ने अपने जीवनकाल में सबसे अधिक समय बिताया है, फुलेरा डोज के पावन दिन पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. मंदिरों को सुंदर ढंग से सजाया गया है और दूर-दूर से भक्त यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं. इस दिन श्रीकृष्ण की मूर्ति को सफ़ेद रंग की पोशाक के साथ सजाया जाता हैं और एक रंगीन कपडे और फूलों से सजे मंडप के नीचे बैठाया जाता है. होली की तैयारी के लिए देवता की कमर पर गुलाल के साथ एक कपड़ा भी बांधा जाता है. रात में ‘शयन भोग’ के बाद रंग हटा दिया जाता है.
इस दिन विशेष ‘भोग’ तैयार किया जाता है जिसमें ‘पोहा’ और अन्य विशेष व्यंजन शामिल होते हैं. भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाने के बाद इस’भोग’ को भक्तों में ‘प्रसाद’ के रूप में वितरित किया जाता है.’संध्या आरती’ और ‘समाज मे रसिया’ दिन के प्रमुख अनुष्ठान हैं.
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