वेदवती की कहानी (रामायण) | The Story of Vedvati in Ramayana in Hindi

जानिए रामचरित्रमानस के अनुसार रामायण में वेदवती कौन थी और उनकी कहानी | The Story of Vedvati Devi in Ramayana in Hindi

तुलसीदास की रामचरित्रमानस के अनुसार

एक कन्या थी जिसका नाम वेदवती था जो भगवान विष्णु की तपस्या कर रही थी. रावण जबरन वेदवती अपनी पत्नी बनाना चाहता था. वेदवती ने योग क्रिया द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया और रावण को श्राप दिया मेरे ही द्वारा तेरा संहार होगा. तुझे मारने के लिए मेरा अवतार होगा. अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन में समाहित कर लिया था.

एक दिन पंचवटी में मारीच नामक राक्षस का वध करने के लिए भगवान राम आश्रम से बाहर चले गये. सीता जी के कठोर वचन सुनके लक्ष्मण जी भी राम जी के पीछे पीछे चले गये.

लक्ष्मण के जाने के बाद राक्षस राज रावण सीता को हरण करने के लिए आश्रम के समीप आया , उस समय अग्नि देव भगवान राम के अग्नि होत्र-गृह में विद्यमान थे. अग्नि देव ने दुष्ट रावण की चेष्टा जान ली और असली सीता को अपने साथ में लेकर पाताल लोक में अपनी पत्नी स्वाहा के पास चले गये और सीता जी को स्वाहा की देख रेख में छोड़ आये थे.

The Story of Vedvati Devi in Ramayana in Hindi

उसके बाद अग्नि देव ने वेदवती की आत्मा को अपने तन से अलग करके उससे सीता के समान रूप वाली बना दिया. और पर्णशाला में सीता जी के स्थान पर उसे बिठा दिया. रावण उसी का अपहरण करके लंका में ले गया था. तदन्तर रावण वध के बाद अग्नि परीक्षा के समय उसी वेदवती ने अग्नि में प्रवेश किया. उस समय अग्नि देव ने स्वाहा के समीप छोडकर आये जनकनंदनी सीतारूपा लक्ष्मी को सुरक्षित लाकर पुन: श्री राम जी को सौंप दिया और वेदवती रूपी छाया सीता के अपने तन में समाहित कर लिया.

और तब ही माता सीता ने भगवान राम से वेदवती के लिए कहा कि :— प्रभु ! इस वेदवती ने बडे दुख सहे हैं. ये आप को पति रूप में पाना चाहती है इस लिए आप इसे अंगीकार कीजिए.
प्रतिउत्तर में भगवान राम ने कहा ! समय आने पर मै इसे पत्नी रूप में जरूर स्वीकार करूँगा.

समय बीता :— राजा आकाश राज यज्ञ करने के लिए आरणी नदी के किनारे भूमि का शोधन कराया. सोने के हल से पृथ्वी जोती जाने लगी तब बीज की मुट्ठी बिखेरते समय राजा ने देखा, पृथ्वी से एक कन्या प्रकट हुई है, जो कमल की शय्या पर सोई हुई है. और सोने की पुतली सी शोभा पा रही है. राजा ने उसे गोद में उठा लिया और ‘ यह मेरी पुत्री है ‘ ऐसा बार – बार कहते हुए महल की ओर चल दिये.

तभी आकाश वाणी हुई :— राजन ! वास्तव में ये तुम्हारी ही पुत्री है. इस कन्या का तुम पालन-पोषण करो.

यह कन्या वही वेदवती है जिसे रावण अपने साथ लंका ले गया था. राजा के कुलगुरू ने इस कन्या का नाम पदमावती रखा. धीरे-धीरे समय बीता कन्या युवा हुई. कन्या का विवाह वेंकटाचल निवासी श्री हरि से हुआ.

यह वही वेदवती छाया रूपी सीता है जिसे आज संसार :– पद्मिनी, पदमावती, पद्मालया के नाम से जानते हैं.

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