भूतभावन भगवान महादेव को देवो के देव कहा जाता है. कोई भी विपत्ति या कष्ट होने पर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है तो समस्त कष्टों से छुटकारा मिल जाता है. ऐसा माना जाता भगवान शिव को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है, इसीलिए भगवान शिव भक्त से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं भी पूरी कर देते हैं. किन्तु भोलेनाथ जितनी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं क्रोध आने पर उन्हें मनाना उतना ही मुश्किल काम है. पौराणिक कथा के अनुसार जब माता सती की मृत्यु हो जाती है तो भगवान भोलेनाथ क्रोधित हो जाते है तब माँ पार्वती ने बड़ी ही मुश्किल से भोलेनाथ के क्रोध को शांत किया और उन्हें मनाया. माँ पार्वती ने इसके लिए कठिन नियमों का पालन किया, तब वे भोलेनाथ के क्रोध को शांत कर पाई थी. क्रोध आने पर भोलेनाथ तांडव करने लगते है उनके तांडव से सभी देवता गण भी घबरा जाते है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करना हो तो उनके शिवलिंग पर भांग-धतूरा, दूध, चंदन, बिलपत्र और भस्म चढ़ाया जाता है. किन्तु इसके साथ ही शिव पुराण में कुछ ऐसी चीजों का उल्लेख भी है जिनको शिवलिंग पर नही चढ़ाना चाहिए यदि इन चीजों को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तो इससे भगवान शिव रूष्ट होते हैं.
आइये जानते है शिवलिंग पर किन चीजों को नहीं चढ़ाना चाहिए….
1. केतकी के फूल :- केतकी के फुल शिवजी पर नही चढ़ाये जाते है इसके पीछे एक घटना है. उस घटना का पूरा वृतांत इस प्रकार है कि एक बार की बात हैं ब्रह्माजी व विष्णु जी में विवाद हो गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है, ब्रह्माजी अपने आप को सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे. उसी समय वहां पर एक विराट लिंग प्रकट हुआ. तभी दोनों देवताओं ने अपनी सहमति से यह निश्चय किया कि जो भी इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा. अतः दोनों देवता शिवलिंग का छोर ढूढंने निकल गये. किन्तु छोर नही मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए. छोर ढूंढने में ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से यह कहा कि वे छोर तक पहुंच गए थे. और ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया. ब्रह्मा जी के असत्य वचन सुनकर पर स्वयं शिवजी वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को भी श्राप दे दिया कि पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का उपयोग नहीं होगा और न ही ब्रह्माजी की पूजा की जाएगी. और इसी कारण से ब्रह्माजी की पूजा नही की जाती है.
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2. तुलसी :- शिवलिंग पर तुलसी पत्र नहीं चढ़ाई जाती हैं इसके पीछे भी पौराणिक मान्यता है. पुराणों के अनुसार एक असुर था जिसका नाम जालंधर था, जिसे पत्नी की पवित्रता और विष्णु जी के कवच के कारण से अमर होने का वरदान मिला हुआ था. इस वरदान का लाभ उठा कर वह दुनिया भर में आतंक मचा रहा था. उसके आतंक को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु और भगवान शिव ने उसे मारने की योजना बनाई. सर्वप्रथम भगवान विष्णु से जालंधर से अपना कवच मांगा और कवच के बाद भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी की पवित्रता भंग की. इसके कारण ही भगवान शिव को जालंधर को मारने का अवसर प्राप्त हुआ. जब वृंदा को अपने पति जालंधर की मृत्यु का पता चला तो उसे बहुत दुःख हुआ. वृंदा में गुस्से में आकर भगवान शिव को श्राप दे दिया कि उन पर तुलसी की पत्ती कभी नहीं चढ़ाई जाएंगी. इसी कारण से शिव जी की किसी भी पूजा में तुलसी की पत्ती नहीं चढ़ाई जाती है.
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3. नारियल पानी :- शिव जी की पूजा नारियल से होती है किन्तु नारियल पानी से नहीं. भगवान शिव को पूरा नारियल अर्पण किया जा सकता है, शिवजी को नारियल चढ़ाते समय उसे कभी भी फोड़ते नही है. क्योंकि शिवलिंग पर चढ़ाई जाने वाली सारी चीज़ें निर्मल होनी चाहिए अर्थात जिसका सेवन नही किया जाए. नारियल पानी अथवा नारियल फोड़ने पर उसे देवताओं को चढ़ाए जाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है इसीलिए शिवलिंग पर नारियल पानी नहीं चढ़ाया जाता है.
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4. हल्दी :- भगवान शिव के शिवलिंग पर हल्दी भी कभी नहीं चढ़ाई जाती है क्योंकि हल्दी महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाने के लिए उपयोग होती है और शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है. अतः हल्दी को शिव जी पर नही चढ़ाया जाता है.
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5. कुमकुम :- भगवान शिव को विध्वंसक के रूप में जाना जाता है. भगवान शिव को क्रोध आने पर वे सम्पूर्ण विनाश कर देते है. और चूँकि सिंदूर या कुमकुम को हिंदू महिलाएं अपनी मांग में लगाती है इसके पीछे यह धारणा है की सिंदूर या कुमकुम लगाने से पति की उम्र लम्बी होती है. इसलिए शिवलिंग पर कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है.