जानिए आखिर क्या है श्राद्ध? क्या है इसके पौराणिक व ज्योतिषीय महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्ति की कामना लिए अपने परिजनों के निकट रहते है। श्राद्ध में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा को मिले इसलिए श्राद्ध किया जाता है और उनसे हमारे जीवन की खुशहाली व समृद्धि के लिए आशीर्वाद की कामना की जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जिस तिथि में माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों का निधन होता है ठीक उन्ही तिथि अनुसार इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध किया जाता है व श्रेष्ठ माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी तिथि में जब उनके पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। हमारे पितरों की आत्मा की शांति के लिए ‘श्रीमद भागवत् गीता’ या ‘भागवत पुराण’ का पाठ अति उत्तम माना जाता है।

ज्योतिष-विज्ञान में नवग्रहों में सूर्य को पिता व चंद्रमा को मां का पर्याय माना गया है। जिस तरह सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण लगने पर कोई भी शुभ कार्य का शुभारंभ वर्जित होता है, वैसे ही पितृ पक्ष में भी माता-पिता, दादा-दादी के श्राद्ध-पक्ष के कारण शुभ कार्य शुरू करने को बुरा अर्थात अशुभ माना गया है, जैसे-विवाह, मकान, वाहन या कपड़ो की खरीदारी इत्यादि।
shradh kya hai or iske mahatv
हिंदू धर्म की मान्यताओ के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है, यानी कि 12 माह के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है। इससे महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि नवरात्र 9 दिन के होते है, गणेश भी 7-9 दिन विराजित होते है किन्तु श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है जो तिथियों पर मनाये जाने के लिए है|

सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है। उपरोक्त ज्योतिषीय पारंपरिक गणना का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि आपको सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी यानी (Backbone) का मजूबत होना बहुत आवश्यक है, जो शरीर के मध्य भाग में स्थित है और जिसके चलते ही हमारे शरीर को एक पहचान मिलती है।

उसी तरह हम सभी उन पूर्वजों के अंश हैं अर्थात हमारी जो पहचान है यानी हमारी रीढ़ की हड्डी है जो मजबूत बनी रहे उसके लिए हर वर्ष के मध्य में अपने पूर्वजों को अवश्य याद करें और हमें सामाजिक और पारिवारिक पहचान देने के लिए श्राद्ध कर्म के रूप में अपना धन्यवाद अर्थात अपनी श्रद्धाजंलि दें।