सीताष्टमी या सीता अष्टमी का महत्व, पूजा विधि और कथा | Sita Ashtami ka Mahatva (Signifiance), Puja Vidhi aur Story in Hindi
सीताष्टमी एक हिन्दू पर्व हैं जिसे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता हैं ऐसा माना जाता हैं इसी तिथि पर माता सीता का जन्म हुआ था. इस पर्व को जानकी जयंती और सीताजी का प्राकट्य दिवस नाम से भी जाना जाता हैं. सीता जी को साक्षात देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं. इस वर्ष सीता अष्टमी का पर्व 26 फरवरी को मंगलवार के दिन मनाया जायेगा.
सीताष्टमी तिथि और समय (Sita Ashtami 2019 Date and Timings)
दिनांक (Date) | 26 फरवरी |
वार (Day) | मंगलवार |
अष्टमी तिथि-शुरुआत (Ashtami Tithi Begins) | 26 फरवरी 2019 की सुबह 04:46 बजे से |
अष्टमी तिथि-समाप्त (Ashtami Tithi Ends) | 27 फरवरी 2019 की सुबह 05:20 बजे तक |
सीताष्टमी का महत्व (Significance of Sita Ashtami)
सीता जी का जन्म धरती के गर्भ से हुआ था इसीलिए वह माँ अन्नपूर्णा नाम से भी जानी जाती हैं उनकी कृपा वंदना न केवल मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि की लाती हैं बल्कि उन्हें जीवन को कल्याण की और अग्रसर करती हैं. सीताष्टमी का व्रत मुख्यतः सुहागिन महिलाएं ही करती हैं ताकि इस व्रत से उन्हें माता सीता जैसे ही गुणों की प्राप्ति हो और उनका दांपत्य जीवन में सुख का संचार हो.
ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन 8 सुहागिन महिलाओं को सौभाग्य की वस्तुएं और लाल रंग के वस्त्र दान करना अतिशुभ होता हैं. जो इस दिन व्रत रखता हैं और भगवान श्री राम और सीता माता की विधि विधान से पूजन करता हैं उसे सभी तीर्थो के सामान पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं. नव दम्पति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं.
सीताष्टमी पूजा विधि (Sita Ashtami Puja Vidhi)
इस दिन माता सीता के लिए सुहागिन महिलाओं की और से व्रत रख जाता हैं. इस व्रत की पूजन विधि कुछ इस प्रकार हैं.
- सुबह स्नान करने और सभी काम निवृत्त होने के पश्चात् माता सीता और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की हल्दी, चन्दन, कंकू से पूजन करे.
- उनकी मूर्ति या तस्वीर पर श्रृंगार की वस्तुएँ चढ़ाएं.
- दूध और गुड़ से बने हुए व्यंजनों का प्रसाद चढ़ाएं और दान करे.
- संध्या होने पर और पूजा करने के बाद दूध और गुड़ से बने हुए व्यंजन से ही अपना व्रत खोले.
सीताष्टमी व्रत कथा (Sita Ashtami Vrat Katha)
मिथिला राज्य के राजा जनक के राज्य में एक बार अकाल पड़ने लगा. शुभ फल की प्राप्ति के लिए वह स्वयं खेत पहुँचकर हल जोतने लगे. यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि को जोत रहे थे उसी समय हल एक पेटी पर अटक गया. उस पेटी को जब खोलकर देखा गया तो उसमे उन्हें बालिका को पाया. मिथिला राजा ने बालिका को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया और हल के फलस्वरुप प्राप्त हुई बालिका का “सीता” नाम रखा. मैथिली भाषा मे हल को ‘सीत’ कहा जाता हैं. राजा जनक की ज्येष्ठ लाडली पुत्री होने के कारण सीता को जानकी भी कहा जाता हैं. सीता को भूमिजा भी कहते हैं क्योंकि राजा जनक ने उन्हें भूमि से प्राप्त किया था
सीताष्टमी की तारीख (Sita Ashtami Dates from 2020 to 2027)
वर्ष (Year) | दिनांक (Date) |
2020 | 16 फरवरी, रविवार |
2021 | 6 मार्च, शनिवार |
2022 | 24 फ़रवरी, गुरूवार |
2023 | 14 फरवरी, मंगलवार |
2024 | 4 मार्च, सोमवार |
2025 | 21 फरवरी, शुक्रवार |
2026 | 9 फरवरी, सोमवार |
2027 | 17 फरवरी, गुरूवार |
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