उत्पन्ना एकादशी (2023) की पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा | Utpanna Ekadashi Puja Vidhi, Mahatva Shubh Muhurat, Aarti and Story in Hindi
एकादशी हिन्दू पंचांग की महत्वपूर्ण तिथि हैं. एकादशी का दिन हिन्दू धर्मं में बेहद ही पवित्र बताया गया हैं. एकादशी के फल के अनुसार अलग-अलग नाम और महत्व हैं. एक वर्ष में कुल 24 एकादशी आती हैं. मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी रूप में जाना जाता हैं. मार्गशीर्ष माह भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय माह हैं. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं. इस तिथि को भगवान विष्णु से माता एकादशी का जन्म हुआ था. इसी कारण इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता हैं. एकादशी माता के जन्म के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें इस व्रत और पूजा विधि की महत्ता के बारे में बताया था. तब से ही एकादशी को मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई.
उत्पन्ना एकादशी की तिथि और समय (Utpanna Ekadashi Dates and Timings)
यह एकादशी को सभी एकादशी के जन्म स्वरुप माना जाता हैं. भगवान विष्णु के दिए हुए आशीर्वाद के कारण इसे अत्यंत पवित्र दिन और मोक्ष प्रदान करने वाला उपवास माना जाता हैं. उत्पन्ना एकादशी देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग तिथि को मनाई जाती हैं. उत्तर भारत के लोग इसे मार्गशीर्ष माह में मानते हैं जबकि दक्षिण भारत में इसे कार्तिक माह की एकादशी को मनाया जाता हैं. मलयालम पंचांग में वृश्चिका मास (या थुलम) में आती है, तमिल पंचांग के अनुसार कर्थिगाई मास (या ऐप्पसी) में आती है.
तारीख (Date) | 8 दिसंबर 2023 |
वार (Day) | शुक्रवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) | 8 दिसंबर की सुबह 05:06 |
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) | 9 दिसंबर की सुबह 06:31 |
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) | 9 दिसंबर को 12:58 PM से 03:06 PM |
उत्पन्ना एकादशी का महत्व (Utpanna Ekadashi Significance)
उत्पन्ना एकादशी का हिन्दू धर्मं में विशेष महत्व हैं शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा पाठ करने से मनुष्य के सभी दोष और पाप नष्ट हो जाते हैं. मान्यता है कि एकादशी व्रत से मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या व दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते है यदि कोई मनुष्य एकादशी के व्रत करने का नियम बनाना चाहता हैं तो इससे पुण्य तिथि और कोई सी नहीं हैं. ऐसी कथा भी प्रचलित हैं कि मुरसुरा नामक राक्षस के वध के बाद एकादशी का व्रत प्रथम बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी ने पूरे विधि विधान से किया था.
उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि (Utpanna Ekadashi Puja Vidhi)
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के लिए रखा जाता हैं. इस दिन की पूजा विधि आसान हैं.
- मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी से एक दिन पूर्व से ही एकादशी के व्रत की सभी तैयारी कर ले. एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व से ही शुरू हो जाता हैं और द्वादशी के सूर्योदय तक रहता हैं. यह संभव हो तो दशमी के दिन सात्विक भोजन करें.
- एकादशी के दिन सुबह प्रातः काल जल्द उठाकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे और पूरे घर में गंगाजल छिडके.
- इस दिन खाने में चावल, ज्यों का सेवन करना वर्जित होता हैं.
- स्नान के बाद, पूजा की सर्वप्रथम शुरुआत श्री गणेश के साथ करे. उन्हें तुलसी की मंजरियां अर्पित करें.
- गणेश जी की पूजा करने के बाद धुप, दीप, नैवेध आदि पूजा की 16 सामग्रियों से भगवान कृष्ण (या विष्णु) की पूजा करे.
- पूजा पाठ करने के बाद व्रत-कथा सुननी चाहिए. इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें.
- इस एकादशी के दिन निर्जला और फलाहार भोजन किया जा सकता हैं. केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही निर्जला उपवास करना चाहिए.
- इस दिन रात को जागरण करने का भी विशेष महत्व हैं. इस दिन भगवान श्री कृष्ण के भजन के साथ जागरण करना चाहिए और किये गए पापों की क्षमा मांगना चाहिए.
- व्रत एकदशी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए.
- द्वादशी के दिन पंडितों को भोजन कराकर विदा करना चाहिए.
उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Katha)
एक समय पांडु पुत्र युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से पूछते हैं “हे केशव! मार्गशीर्ष माह की एकादशी की क्या विशेषता हैं और इस एकादशी पर कैसे पूजन किया जाता हैं.” भगवान श्रीकृष्ण ने कहा “हे युधिष्ठिर! मार्गशीर्ष माह की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं इस दिन की महत्व कथा मैं तुझे बताता हूँ ध्यान से सुन.”
सतयुग में चंद्रावती नगरी में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज किया करते थे. उनका एक पुत्र मुर था जो कि अत्यंत बलशाली दैत्य था. उसके बल और पराक्रम के सामने इन्द्रदेव, अग्निदेव या वायुदेव कोई भी नहीं टिक सका और उनसे मृत्युलोक से स्वर्गलोक तक अपना राज्य फैला लिया. स्वर्गलोक छीने जाने से परेशान इन्द्र भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पहुँचते हैं. कैलाश में इन्द्र शिवाजी को राक्षस मुर और उसके आतंक के बारे में बताते हैं. भगवान शिव इन्द्र को सलाह देते हैं कि “इन्द्र! इस समस्या का निदान विष्णु कर सकते हैं. तुम्हे विष्णु के पास वैकुण्ठ धाम जाना चाहिए.”
भगवान शिव की बात सुनकर इन्द्र तुरंत वैकुण्ठ पहुँचते हैं. वैकुण्ठ में विष्णु जी निद्रा में लीन रहते हैं. इन्द्र उनसे निंद्रा तोड़ समस्या का निदान करने की याचना करते हैं. इन्द्र की बात सुनकर विष्णु आंखे खोलते हैं और इन्द्र से पूछते हैं इस संसार में ऐसा कौन बलशाली हैं जिसके सामने सभी देवता हार गए. इन्द्र ने विष्णु जी की में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग के पुत्र मुर के बारे में विस्तार से बताया और मुर से बचाने की याचना की.
इन्द्र की पूरी समस्या सुनने के बाद विष्णु उन्हें आश्वस्त करते हैं कि वह उन्हें स्वर्गलोक वापस लौटाएंगे और मृत्यु लोक को मुर के आतंक से मुक्ति दिलवाएंगे. जिसके बाद भगवान विष्णु मुर से युद्ध करने के लिए उसकी नगरी चन्द्रावती पहंचते हैं. दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ होता हैं युद्ध में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र का इस्तेमाल किया जाता हैं. यह युद्ध वर्षों तक इसी प्रकार बिना किसी परिणाम के चलता रहता हैं. युद्ध की थकान के कारण भगवान विष्णु को नींद आने लगती हैं. निद्रा पूरी करने के लिए वह बद्रीकाश्रम स्थित बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा पहुँचते हैं. मुर भी भगवान विष्णु के पीछे-पीछे चुपके से गुफा में पहुँच जाता हैं, जैसे ही भगवान निद्रा में लीन होते हैं मुर उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ता हैं. तभी भगवान विष्णु के अन्दर से एक सुन्दर कन्या प्रकट होती हैं और वह मुर से युद्ध करने लगती हैं. कन्या की शक्ति के सामने मुर पराजित हो जाता हैं और मूर्छित हो जाता हैं बाद में उसका मस्तक धड से अलग कर दिया जाता हैं. मुर के मरते ही राक्षस सेना बिखर जाती हैं और दैत्यों को स्वर्गलोक छोड़ना पड़ता हैं.
विष्णु की जब निंद्रा टूटती हैं तब वह सब देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं. छोटी सी कन्या उन्हें पूरा वृतांत विस्तार से बताती हैं जिसे सुनकर विष्णु बहुत ही प्रसन्न होते हैं और कन्या से कुछ वरदान मांगने को कहते हैं. कन्या कहती हैं जो भी मुझे याद करे मेरा पूजन करे भगवन उसके सभी पाप नष्ट हो जाये. भगवान विष्णु तथास्तु कहते हुए बताते हैं कन्या तुम्हारा जन्म एकादशी के दिन हुआ हैं इसीलिए आज से तुम्हे सभी एकादशी माता के रूप में जानेगे जो भी इस दिन तुम्हारा पूजन और व्रत रखेगा उसके सभी पाप नष्ट हो जायेगे और मोक्ष की प्राप्ति होगी. यह कहकर भगवान विष्णु वैकुण्ठ की और प्रस्थान करते हैं.
इसी कारण मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. क्योंकि इस दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था.
उत्पन्ना एकादशी की आरती (Utpanna Ekadashi Aarti)
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
वर्ष में आने वाली अन्य एकादशी की सूची और महत्व:
सफला एकादशी | पुत्रदा एकादशी | षट्तिला एकादशी | जया एकादशी |
विजया एकादशी | आमलकी एकादशी | पापमोचनी एकादशी | कामदा एकादशी |
वरूथिनी एकादशी | मोहिनी एकादशी | अपरा एकादशी | निर्जला एकादशी |
योगिनी एकादशी | देवशयनी एकादशी | कामिका एकादशी | पुत्रदा एकादशी |
अजा एकादशी | पद्मा एकादशी | इंदिरा एकादशी | पापांकुशा एकादशी |
रमा एकादशी | देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी | उत्पन्ना एकादशी | मोक्षदा एकादशी |