रोजगार के लिए भारत में कई युवा परेशान घूम रहे है, किसी के पास नौकरी तो है लेकिन वह किसी अच्छी नौकरी के तलाश में है. बड़े शहरों में युवा स्टार्ट अप तैयार करने में लगे है जिसमे पैसा तो है लेकिन उसके लिए लम्बा इंतज़ार करना पड़ता है. कई युवा इस बीच अपना धैर्य खो बैठते है. लेकिन यदि काम को मेहनत और लगन के साथ किया जाए तो एक दिन सफलता अवश्य मिलती है. आज हम एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताने वाले है जिसने अपनी प्रतिभा के बल पर एक इंडस्ट्री खोल दी और पुरे गाँव को उस कार्य में लगा दिया.
हम बात कर रहे है एनएच 28 पर बस्ती से 55 किलोमीटर दुरी पर बसे गाँव केसवापुर की. जहाँ पूरा गाँव सिरका बेचकर सिरकेवाला गाँव कहा जाने लगा है. केसवापुर के रहने वाले सभापति शुक्ला की कहानी बेहद रोचक है. सभापति सिरका बेचकर करोड़ो की कमाई करने वाले एक व्यापारी बन गए है. और पूरा गाँव सिरका बेचने के काम में लग गया है.
आखिर क्या है पूरी कहानी:
एक बार सभापति शुक्ला की पत्नी ने घर में उपयोग के लिए 50 लीटर सिरका तैयार किया, सिरका ज्यादा बन जाने के कारण सभापति शुक्ला ने उस सिरके को अपने दोस्तों व आस पड़ोसियों में बांट दिया. घर में बने सिरके का स्वाद सभी को इतना पसंद आया कि लोग फिर से डिमांड करने लगे. अब सभापति शुक्ला को यहीं से एक बिजनेस आइडिया आया. और उन्होंने सिरके को पैक करके बेचना शुरू कर दिया. अब उनका पूरा परिवार सिरके के व्यापार में लग गया है.
गांव केसवापुर कभी अपने दुर्दशा पर आंसू बहा रहा था, यहां के लोग रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की तरफ रोजी रोटी की तलाश करने जाते थे, लेकिन एक नई सोच ने पूरे गांव के लोगों के लिए तरक्की का रास्ता खोल दिया, आज हालात ये हैं कि गांव के लोग सिरका व्यवसाय से जुड़ कर गांव में ही रोजगार पैदा कर अपनी आजीविका चला रहे हैं, यह सब सभापति की मेहनत का नतीजा है कि अब केसवापुर गांव देश के कई प्रदेशों उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों में सप्लाई किया जाने लगा है. हालांकि इस पूरी कहानी में 15 साल का समय जरूर लगा, लेकिन अब इस गांव का कोई भी युवा बेरोजगार नहीं है.
सभापति ने फैजाबाद से इस व्यवसाय की शुरुआत की. इस व्यवसाय से जुड़े तो उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, आज वह लाखों लीटर सिरके का निर्माण कर करोड़ों रुपए का सालाना टर्न ओवर कमा रहे हैं, युवा वर्ग अब अपने गांव में ही रोजगार कर रहे है, सरकार की ओर से किसी सहायता के बगैर शुरू की गई इस सिरका इंडस्ट्री में महिलाएं भी बराबर की हिस्सेदारी निभा रही है, सभापति के अनुसार 200 लीटर सिरका निर्माण में दो हजार रुपए की लागत आती है, 2 हजार रुपए प्रति ड्रम बचत होती है. अकेले शुक्ला जी के यहां 40 से 50 महिलाएं रोजगार में लगी हुई हैं.
एक आईडिया ज़िन्दगी बदल कर रख सकता है आप ही की नहीं आपसे जुड़े हर व्यक्ति की. मेहनत करते रहे और हर पल किसी नए अवसर का इंतज़ार करें और उसे भुनाने का प्रयास करें.