भालचंद्र तारे का जीवन परिचय | Bhalchandra Tare Biography in Hindi
यह उन दिनों की बात है जब संघ के मंदसौर जिला प्रचारक तपन जी भौमिक हुआ करते थे और प्रभाकर जी केलकर विभाग प्रचारक हुआ करते थे उस समय गोपाल जी तारे (भालचंद्र तारे के पिता जी) कचनारा फ्लैग में डॉक्टर के नाते सेवा देते थे और अपने निजी जीवन में से समय निकालकर संघ की शाखा लगाने आस-पास के गांव में जाया करते थे और कचनारा रहते थे उस समय भालचंद्र तारे के पिताजी डॉक्टरी किया करते थे. तारे परिवार मूलतः नाहरगढ़ का रहने वाला है.
सन् 1989 और 1992 मे आपके पिताजी दोनो बार कारसेवक होने के नाते से अयोध्याजी गए और संघ कार्य करते करते कई बार कृष्ण जन्मभूमि(कारावास) की यात्राएं भी की. आपके परिवार की बात की जाए तो आपके दादाजी नाहरगढ़ में शासकीय विद्यालय में प्रधानाचार्य रहते हुए विद्यार्थियों में राष्ट्रवादी विचारधारा के भाव का जागरण किया करते थे, छोटे दादाजी श्री राम जी तारे संघ के प्रचारक दत्तोपंत जी ठेंगढी के साथ भारतीय मजदुर संघ की स्थापना करते समय कंधे से कंधा मिलाकर साथ खडे रहे, आज भी जबलपुर में तारे परिवार की एक और शाखा संघ के सक्रीय परिवार के नाते जाना जाता हैं और गोपाल जी तारे के सगे मामा जी श्री दत्तात्रेय राव जी मांदले रतलाम एवं उनके सुपुत्र श्री अनिल दत्तात्रेय राव मांदले दोनों मीसा बंदी रहते हुए 19महीने तक आपातकाल के दौरान कारावास में रहे और पूरे परिवार ने यातना भोगी.
भालचंद्र तारे के सगे मौसाजी श्री गोविंद वामन वैशंपायन लंबे समय तक मंदसौर के मा.संघचालक रहे और भालचंद्र तारे के सगे बड़े पापा डॉ. पांडुरंग तारे का परिवार जावरा में संघ का सक्रिय परिवार माना जाता है. भालचंद्र तारे के बड़े भाई श्री प्रशांत तारे ने 1992 में प्रतिबंध के दौरान मुश्किल परिस्थितियों में किसान संघ के प्रशिक्षण वर्ग के नाम से संघ का प्रशिक्षण सीतामऊ के समीप लदुना में पूरा किया था. और भाई भालचंद्र तारे को बनाहरगढ़ के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में ए.बी.वी.पी. जिंदाबाद के नारे दीवाल पर लिखने के आरोप में विद्यालय से निष्काषित किया गया किंतु पुनः सत्य की जीत हुई और भालचंद्र तारे न केवल विद्यालय में आए अपितु विद्यालय मैं छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीते और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का परचम फहराया.
विपरीत परिस्थितियों में भी एम.ए. तक का अध्ययन पूरा किया उस समय के सभी वरिष्ठ अधिकारी भालचंद्र तारे के परिवार को बहुत अच्छे से जानते है. विपरीत समय में तारे परिवार संघ के साथ खड़ा रहा इसी कारण विधर्मियो ने भालचंद्र तारे के पिता श्री डॉ. गोपाल जी तारे के साथ कई बार मारपीट भी की फिर भी उन्होंने सतत संघ कार्य किया और एक दिन विधर्मियो ने उन पर चाकु से प्राणघातक हमला करवा दिया जिससे उन्हे कई गम्भीर चोटे आई और वह कई महिनो तक काम नही कर सके और परिवार की आर्थिक हालत कमजोर होने लगी और तब भाई भालचंद्र तारे को कुछ समय होटल मे वेटर की नौकरी करना पडी और परिवार का पालन पोषण करना पड़ा और साथ ही अपनी पढाई भी जारी रखी. जब भाई भालचंद्र तारे भी संघ का सक्रिय रुप से कार्य करने लगे तो विधर्मियों ने उन्हें भी डराया और जान से मारने की धमकियां दी और कई बार मारपीट करने का प्रयास भी किया जिसमें विधर्मी कभी भी सफल नहीं हो सके क्योंकि भालचंद्र तारे जिन परिस्थितियों में बड़े हुए हैं थे उन्हें इन सारी परिस्थितियों का सामना करना भलीभांति आता था, संघ का कार्य करते समय लोग भालचंद्र तारे का उपहास उड़ाते थे कि पूरा परिवार बर्बाद हो गया फिर भी संघ का कार्य कर रहा है.
अंततोगत्वा 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय अयोध्या जी के ऊपर आया तो डॉ. गोपाल तारे अत्यधिक प्रसन्न हुए और अपने अभावग्रस्त जीवन के बावजूद उन्होंने अपनी क्षमता अनुसार मिठाई बाटी और खुशी-खुशी में अचानक उनको मस्तिष्क घात हो गया और वहां परमात्मा में लीन हो गए क्योंकि वह दोनों बार की कारसेवक यात्रा में अयोध्या जी गए थे और यह विषय उनके दिल से जुड़ा हुआ था. भालचंद्र तारे भी पिताजी के आदर्शो पर चल निकल पडते हे समाज सेवा के लिए
“तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित” ध्येय वाक्य को अपने जीवन मे उतारकर समाजसेवा के लिए अपना जीवन उस उम्र में जिस उम्र मे युवा पैसा ईकठ्ठा करने की सोचता हे एक सुन्दर कन्या से विवाह करने की सोचता हे परिवार बसाने की सोचता हे उसी समय भाई भालचंद्र तारे संघ के प्रचारक के रूप मे निकल जाते हे भारत माता की सेवा करने के लिए….
इसे भी पढ़ें: स्वास्थ्य बीमा क्या है? और क्या है इसके फायदे, बीमा कराते समय किन बातों का ध्यान रखें
इसे भी पढ़ें: चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय