गुरु नानक देव का जीवन परिचय | Guru Nanak Dev History in Hindi

गुरु गुरुनानक का जीवन परिचय (जन्म, मृत्यु, परिवार) और इतिहास | Guru Nanak History (Birth, Family, Death) and History in Hindi

गुरुनानक देव सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे और इन्होनें आध्यात्मिक शिक्षाओं की नींव रखी जिस पर सिख धर्म का गठन हुआ था. इन्हें एक धार्मिक नवप्रवर्तनक माना जाता है, गुरु नानक ने अपनी शिक्षाओं को फैलाने के लिए दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में यात्रा की. उन्होंने एक भगवान के अस्तित्व की वकालत की और अपने अनुयायियों को सिखाया कि हर इंसान ध्यान और अन्य पवित्र प्रथाओं के माध्यम से भगवान तक पहुंच सकता है. गुरु नानक ने मठवासी वाद का समर्थन नहीं किया और अपने अनुयायियों से ईमानदार गृहस्थ के जीवन का नेतृत्व करने के लिए कहा. उनकी शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया था, जिसे सिख धर्म के पवित्र पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता हैं.

बिंदु(Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)गुरु नानक
जन्म (Birth Date)15 अप्रैल, 1469
जन्म स्थान (Birth Place)राय भोई की तलवंडी (वर्तमान में पंजाब, पाकिस्तान)
मृत्यु की तिथि (Date of Death)22 सितंबर, 1539
मौत का स्थान (Death Place)करतारपुर (वर्तमान में पाकिस्तान)
पिता (Father Name)कल्याण चाँद और मेहता कालू
मां (Mother Name)तृप्ता देवी
बहन (Sister Name)नानकी
पत्नी (Wife Name)सुलाखनी
बच्चे (Childrens)श्री चंद और लखमी दास
उत्तराधिकारी (Successor)गुरु अंगद
प्रसिद्ध (Known For)सिख धर्मं के संस्थापक
विश्राम स्थान (Vishram Sthan)गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर, पाकिस्तान

गुरु नानक का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Guru Nanak’s Birth and Early Life)

गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक गांव में एक खत्री कुल में हुआ था. इनकी जन्म तिथि को लेकर आज भी इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार इनकी जन्म तिथि 15 अप्रैल 1470 है परंतु वर्तमान समय में उनकी जन्म तिथि कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. गुरु नानक देव के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. इनकी एक बड़ी बहन नानकी थी. अपने बचपन में गुरु नानक देव ने कई प्रादेशिक भाषाएं जैसे फारसी और अरबी आदि का अध्ययन किया.

नानक जब 5 वर्ष के थे तब उनके पिता ने उन्हें हिंदी भाषा और वैदिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्हें पंडित गोपाल दास पांडे के यहां भेजा. नानक बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के थे. पंडित गोपाल दास बालक नानक की बुद्धिमत्ता और योग्यता से काफी प्रसन्न थे. एक दिन जब वे अभ्यास के दौरान नानक से ओम शब्द का उच्चारण करवा रहे थे. तो बालक नानक ने उनसे ओम शब्द का अर्थ पूछ लिया. पंडित गोपालदास पांडे ने नानक को कहा की ओम सर्व रक्षक परमात्मा का नाम है. बालक नानक ने गोपालदास पांडे से कहा कि पंडित जी मेरी मां ने परमात्मा का नाम “सत करतार” बताया है. इस पर पंडित जी ने बालक नानक को कहा कि परमात्मा को हम अनेक नामों से पहचानते हैं. इन दोनों शब्दों का अर्थ एक ही है.

पंडित गोपाल दास पांडे ने मेहता कालू से कहा कि आपका पुत्र बहुत ही मेधावी है अब मेरे पास उसे देने के लिए कोई भी ज्ञान शेष नहीं है.

पंडित जी की यह बात सुनकर मेहता कालू राय ने अपने पुत्र नानक को फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुतुबुद्दीन मौलवी के पास भेजा.

एक दिन जब मौलवी नानक से अलिफ शब्द बोलने के लिए कह रहे थे. तब बालक नानक ने मौलवी से पूछा कि आलिफ शब्द का अर्थ क्या है. फारसी भाषा में एक अल्लाह या खुदा को अलिफ कहा जाता है. नानक की हाजिर जवाबी के कारण मौलवी ने मेहता कालू राय से कहा कि तेरा बेटा खुदा का रूप है. मैं इसे क्या पढ़ाउंगा यह तो सारी दुनिया को पढ़ा सकता है. नानक देव का विवाह वर्ष 1487 में गुरदासपुर जिले के रहने वाले मूला की कन्या सुलाखनी से हुआ था. जिनसे इनके 2 पुत्र श्री चंद और लखमी दास हुए.

गुरु नानक द्वारा यज्ञोपवित संस्कार का विरोध

हिंदू धर्म में बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ धारण का कार्यक्रम किया जाता है. नानक के घर भी कार्यक्रम तय हुआ. कालू मेहता ने अपने सभी रिश्तेदारों को न्योता देकर इस कार्यक्रम के लिए बुलाया था. यज्ञोपवित संस्कार वाले दिन नानक ने जनेऊ पहनने से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा मुझे इन धागों पर विश्वास नहीं है. नानक ने भरी सभा में कहा कि गले में धागा डालने से मन पवित्र नहीं होता. मन पवित्र करने के लिए अच्छे आचरण की जरूरत होती है. बालक की वाकपटुता और दृढ़ता देख कर सभी लोग चकित रह गए. गुरु नानक देव ने हिंदू धर्म में प्रचलित कई कुरीतियों का भी विरोध किया.

गुरु नानक देव की मृत्यु (Guru Nanak’s Death)

अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, गुरु नानक हिंदुओं और मुस्लिम दोनों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए थे. उनके आदर्श ऐसे थे कि दोनों समुदायों ने इसे आदर्श माना. अपने जीवन के अंतिम दिनों में गुरु नानक बहुत लोकप्रिय हो गए थे. गुरु नानक ने करतारपुर नामक नगर बसाया था और वहां एक धर्मशाला (गुरुद्वारा) बनवाया था. 22 सितंबर 1540 में गुरु नानक देव का निधन हो गया. अपनी मृत्यु के पहले उन्होंने अपने परम भक्त और शिष्य लहंगा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से प्रसिद्ध हुए.

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