प्रसिद्ध बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया की जीवनी, संगीत शिक्षा और करियर | Hariprasad Chaurasia Biography, Music Training and Career
भारत के विश्वविख्यात बांसुरी वादक श्री हरिप्रसाद चौरसिया ने पूरे विश्व में भारतीय संगीत को अपने बांसुरी वादन से लोकप्रिय किया हैं. इनकी गिनती विश्व के बेहतरीन बांसुरी वादक में होती हैं.
हरिप्रसाद चौरसिया का निजी जीवन(Hariprasad Chaurasia Personal Life)
हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 1 जुलाई 1938 को इलाहबाद में हुआ था. इनके पिताजी पहलवान थे व उनका पान का व्यवसाय था. वे अक्सर उन्हें भी अपने साथ अखाड़े ले जाते थे. जब वे पांच वर्ष के थे तभी उनकी माता जी का निधन हो गया था. हरिप्रसाद जी ने अपने पिताजी के बताये बगैर संगीत सीखना शुरू कर दिया था क्योंकि कुश्ती की प्रति उनका लगाव नहीं था. वे सिर्फ अपने पिताजी के डर से अखाड़े जाते थे. पंडित जी का बचपन वाराणसी के नदियों के किनारे बिता. हरिप्रसाद चौरसिया जी ने वर्ष 1957 में कमला से विवाह किया था, जिनसे उनके दो पुत्र विनय और अजय चौरसिया थे. वर्ष 1958 में उन्होंने दूसरा विवाह अनुराधा से किया था, जिनसे उनके एक पुत्र राजीव चौरसिया थे.
संगीत की शिक्षा(Hariprasad Chaurasia and Music)
पंडित की शुरुआत तबला वादक के रूप में हुई. संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने अपने पडोसी पंडित राजाराम से प्राप्त की. वाराणसी के शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित भोलानाथ प्रसाना से 15 वर्ष ही उम्र में बांसुरी सीखना शुरू किया. संगीत सिखने के बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो कटक और उड़ीसा से अनुबंध कर वहाँ काफी समय तक संगीतकार और कलाकार के रूप में कार्य किया. संगीत में श्रेष्ठता प्राप्त करने की चाह, उन्हें अन्नपूर्णा देवी जी की शरण में ले गयी. अन्नपूर्णा देवी प्रसिद्ध संगीतकार बाबा अलाउदीन खां की सुयोग्य पुत्री व पंडित रविशंकर की पहली पत्नी थी.
अन्नपूर्णा जी ने पंडित जी से संगीत सिखने के लिए दो शर्त रखी. सबसे पहली यह की अब तक जो सिखा हैं, उसे भूलना होगा और दूसरी यह कि वह बाएं हाथ से बांसुरी बजाते थे, उन्हें अब दाएं हाथ से बांसुरी बजाना होगी. उन्होंने ही पंडित जी को रागों और रचनाओ के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया. अन्नपूर्णा देवी के सानिध्य में पंडित जी की प्रतिभा में ओर निखर आ गया.
इसे भी पढ़े : घर बैठे बने प्रोफेशनल सिंगर |
पंडित का कार्य क्षेत्र(Hariprasad Chaurasia Career)
भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने का कार्य पंडित जी ने अपनी बांसुरी से किया. इन्होने कई भारतीय फिल्मो में संतूर वादक पंडित शिवशंकर शर्मा के साथ मिलकर मधुर संगीत बनाये हैं. संगीत की दुनिया में इनकी जोड़ी को “शिव-हरि” के नाम से जाना जाता हैं. इस जोड़ी ने चांदनी, डर, लम्हे, सिलसिला, फासले, विजय, साहिबान और 16 दिन अफगान के जैसी फिल्मो में संगीत दिया हैं. पंडित जी ने बॉलीवुड के प्रसिद्ध संगीतकार आर.डी. बर्मन और एस.डी. बर्मन के साथ भी काम किया.
पंडित जी ने कई विदेशी संगीतज्ञो के साथ काम किया है, जिनमे जॉन मैकलहैलीन(john mclaughlin), जेन गरबारेक (jan garbarek) और केन लाबर (kane lauber) शामिल थे. पंडित जी ने विश्व मे कई जगह बांसुरी की प्रस्तुति दी हैं. इन्होने नीदरर्लैंड में स्थित राटरम म्यूजिक के संगीत विभाग के निर्देशक के रूप में काम किया. पंडित जी ने मुंबई और उड़ीसा में वृंदावन गुरुकुल की स्थापना कि जहां गुरु-शिष्य परंपरा अनुसार बांसुरी का प्रशिक्षण दिया जाता हैं. इस गुरुकुल में शिष्य और गुरु एक साथ रहते हैं. इस गुरुकुल के प्रति समर्पित और प्रतिभावान छात्र सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भारतीय संगीत को फैला रहे हैं.
इसे भी पढ़े : मुगलों की जिद की वजह से हुई थी भारत के महान संगीतज्ञ तानसेन की मृत्यु