Mahaviracharya Biography, History, Ganit Sar Sangrah, Major Works in Mathematics in Hindi| महान गणितज्ञ महावीराचार्य का जीवन परिचय, गणित में योगदान और रचनाएँ
भारत के इतिहास को देखने पर हमें यह मिलता है, कि इस देश में ऐसे विद्वानों ने जन्म लिया है जिन्होंने न सिर्फ भारत का गौरव बढ़ाया है, अपितु पूरे देश को ऐसे अमूल्य ज्ञान से परिचित कराया, जो अज्ञात था. महावीराचार्य उन्हीं विद्वानों में से एक हैं. इनका पूरा जीवन गणित के ज्ञान को समझने और नई खोजों को समर्पित था. इनके लिए गणित सिर्फ रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग वाला ज्ञान नहीं था, इन्होंने गणित की महानता को एक श्लोक के माध्यम से बताया है.
“”बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचराचरे। यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥
बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है. उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता.
महावीराचार्य परिचय (Mahaviracharya Biography)
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम(Name) | महावीराचार्य |
जन्म वर्ष (Birth) | 9वीं सदी |
धर्म (Religion) | जैन |
निवासी (Hometown) | गुलबर्ग |
कार्य (Profession) | गणितज्ञ ,ज्योतिषविद |
प्रमुख रचना (Books) | गणितसार , ज्योतिषपटल, शतत्रिशक |
महावीराचार्य 9 वीं सदी के एक भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिषी विद थे. ये जैन धर्म का अनुसरण करते थे. वह गुलबर्ग के निवासी थे. इन्होंने गणित इतिहास की एक विशिष्ट कृति “गणित सार” की रचना की गई थी, जिसका रचनाकाल 850 ई. के आसपास माना जाता है. अब तक मिले उनके द्वारा लिखे ग्रंथों से यह अनुमान लगाया जाता है कि वह राष्ट्रकूट वंश के महान नरेश अमोघवर्ष नृपतुंग के समकालीन थे. इनके जन्म स्थान, माता-पिता, गुरु, शिक्षा आदि के बारे में इतिहास पुर्णतः मौन दिखाई पड़ता है.
महावीराचार्य का गणित में योगदान (Mahaviracharya Contribution in Mathematics)
गणितसार (Ganit Sar Sangrah of Mahaviracharya)
यह इनकी सर्वमान और सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना है. दक्षिण भारत में प्राचीन काल में ‘गणित सार’ पाठ्य पुस्तक के रूप में उपयोग की जाती थी. इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद सर्वप्रथम 1912 में एक रंगाचार्य के द्वारा किया गया. इसको मद्रास सरकार ने प्रकाशित किया था.
1963 मे प्रोफेसर लक्ष्मीचंद ने अंग्रेजी अनुवाद को आधार मानकर इसको हिंदी में अनुवादित किया. यह ग्रंथ मूल्यतः 8 अध्यायो में वर्णित था, लेकिन जब इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ तो मूल रचना को प्रथम अध्याय ‘परिकर्मव्यवहार’ को दो अध्यायों में बदल दिया गया. ‘परिकर्म व्यवहार शीर्षक’ और ‘संज्ञा अधिकार’ में बदल दिया गया. इस प्रकार अध्यायों की संख्या बढ़कर 9 हो गई .
मूल रचना के 8 अध्यायो, संज्ञा अधिकार, परिकर्म व्यवहार, कला सवर्ण व्यवहार, प्रकीर्णक व्यवहार, त्रैयशिकव्यवहार, मिश्रक व्यवहार, खात व्यवहार एवं छाया व्यवहार है. इन 8 अध्यायों के माध्यम से उन्होंने उस वक्त तक के ज्ञान गणितीय विषयो को बहुत ही रोचक एवं सरल रूप में उल्लेखित किया है.
उल्लेखनीय कार्य (Major Works of Mahaviracharya)
धन धनर्णयोर्वर्गों मूले स्वर्णे तयो क्रमात्
ऋणं स्वरूपतोऽवर्गो यतस्तस्मान्न तत्पदम्
- महावीराचार्य ने इस श्लोक के माध्यम से ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल ज्ञात करने की विधि बताई हैं. उन्होंने कहा कि राशि ऋणात्मक हो या धनात्मक दोनों का ही वर्ग धनात्मक होता है. पर किसी भी ऋणात्मक राशि का वर्गमूल नहीं हो सकता जो की वस्तुओं के स्वभाव के वजह से होता है. वस्तुएं कभी भी ऋणात्मक नहीं हो सकती.
- गणित सार के एक अध्याय क्षेत्र गणित में इन्होंने त्रिभुज, चतुर्भुज वृत के क्षेत्रफल निकालने की विधियां बताई है. इसके अलावा समद्विबाहु, विषमबाहु, आयत विषमकोण, पंचमुख, तीन एवं चार संस्पर्थी वृतो से घिरा क्षेत्र आदि का वर्णन भारतीय गणित मे पहली बार किया है.
- बीजगणित के क्षेत्र में इन्होंने एक अज्ञात राशि के एक घातीय, द्विघातीय एवं उच्चघातीय समीकरण के साथ दो अज्ञात राशि के एक एवं द्विघातघतीय समीकरणों को हल करने की बहुत व्यावहारिक विधियाँ बताई है. इसके अलावा उन्होंने अज्ञात राशि के समीकरण को हल करने के बारे में भी बताया है.
- उन्होंने ब्याज, क्रय-विक्रय आदि की भी व्याख्या की है. इसे इन्होंने उदाहरण के द्वारा समझाया है.
- इन्होंने समान्तर श्रेणी, गुणोत्तर श्रेणी के साथ ही मिश्रित श्रेणी का भी अध्ययन किया है. इसका अध्ययन सरल होने के साथ ही व्यापक है.
- क्रमचय- संचय के क्षेत्र में महावीराचार्य ने महत्वपूर्ण कार्य किया है.
- असमान हर वाली भिन्नो को जोड़ने से संबंधित अनेक नियम इनके ग्रंथ में दिए गए है. इन्होंने बताया कि असमान हर वाली भिन्न को जोड़ने के लिए हर का लघुत्तम समापवर्तक ज्ञात करना होता है.
- यह बात गौर करने वाली है यूरोप में लघुत्तम निकलने की विधि 15 वी सदी में खोजी गई थी, जबकि महावीराचार्य इसका बखान 850 ई. में ही कर दिया था.
- किसी भी पूर्णांक अथवा भिन्न को 1 अंश वाली भिन्नो के रूप में व्यक्त करने के अनेक नियम इन्होंने दिए है. ये पहले भारतीय गणितज्ञ है, जिन्होंने इस विषय पर शोध किया है. 13वीं सदी में नारायण पंडित इसका व्यापक अध्ययन किया है.
- महावीराचार्य का भारतीय गणित में नही बल्कि विश्व गणित में अभूतपूर्व योगदान है. इनके अन्य ग्रंथो के व्यापक अध्ययन भी अब आवश्यकता है, ताकि हमारे देश की गौरवपूर्ण खोज और इतिहास के बारे में जान पाए.
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आपकी इस पोस्ट की जितनी तारीफ की जाए कम है। बहुत ही अच्छी और उपयोगी पोस्ट साझा की है आपने।
Sailana