तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas Biography in Hindi

भक्ति काल के कवि तुलसीदास का जीवन परिचय (जन्म, बचपन, राम भक्ति, रचनाएँ ) | Poet Tulsidas Biography, Birth, Early life, Ram Bhakti and Poetry(Rachana) in Hindi

हिंदी साहित्य के अंतर्गत कबीर, असुर, तुलसी, देव, घनानंद, बिहारी आदि अनेक कवियों का अध्ययन किया है. आधुनिक कवि प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी और दिनकर का भी अध्ययन किया किंतु भक्त कवि तुलसीदास ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया तुलसी के काव्य के समक्ष में सदैव नतमस्तक होता रहा हूं. उनकी भक्ति भावना, समन्वयात्मक दृष्टिकोण ने मुझे स्वाभाविक रूप से आकृष्ट किया है.

राम छोड़कर और की जिसने करी ना आस,
राम चरित्र मानस- कमल, जय हो तुलसीदास -जयशंकर प्रसाद

तुलसीदास के जन्म और पृष्ठभूमि (Tulsidas Birth and Early Life)

लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास के जन्म को लेकर विद्वानों में आज भी मतभेद है. इतिहासकारों के अनुसार स्वामी तुलसीदास का जन्म 1551 में शुकर क्षेत्र वर्तमान में कासगंज उत्तर प्रदेश हुआ था. कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म राजापुर वर्तमान में चित्रकूट, मध्य प्रदेश में माना जाता है.

तुलसीदास का जन्म ऐसी विषम परिस्थितियों में हुआ जब हिंदू समाज अशक्त हो चुका था. हिंदू समाज की संस्कृति और सभ्यता प्रायः विनाश हो चुकी थी तथा कहीं कोई आदर्श नहीं रह गया था. इस काल में मंदिरों का विध्वंस हो रहा था, ग्रामीण तथा नगरों का विनाश हुआ वहीं संस्कारों की वरिष्ठता भी चरम सीमा पर थी. चारों और धार्मिक विषमताओं का तांडव नृत्य हो रहा था. तब ऐसे समय में गोस्वामी तुलसीदास में अंधकार के गर्त में डूबी हुई जनता के सामने भगवान राम का लोक मंगलकारी रूप प्रस्तुत किया. इससे जनता में आशा और शक्ति का संचार हुआ. युग दृष्टा गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न मतों, संप्रदायों तथा धाराओं का समन्वय किया. उन्होंने उस युग को नवीन दिशा, नई गति तथा नवीन प्रेरणा प्रदान की. उन्होंने सच्चे लोकनायक के रूप में सामान्य मनुष्य की चौड़ी खाई को भरने का सफल प्रयास किया.

तुलसीदास एक लोकनायक के रूप में

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार “लोकनायक वही हो सकता हैं जो समन्वय कर सके क्योंकि भारतीय समाज में नाना प्रकार की विरोधिनी संस्कृतियाँ, साधनाएँ, जातियां, आचार-निष्ठा और विचार पद्धतियाँ प्रचलित हैं. भगवान बुद्ध समन्वयकारी थे, ‘गीता’ ने समन्वय की चेष्टा की और तुलसीदास समन्वयकारी थे.”

तुलसी के राम

भक्त कवि तुलसीदास राम के उपासक थे जो सच्चिदानंद परब्रह्म हैं, जिन्होंने भूमि का भार उठाने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था. तुलसीदास ने अपने काव्य मे सभी देवी-देवताओं की स्तुति की हैं.

तुलसीदास की समन्वय भावना

तुलसी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता उसमे निहित समन्वय की प्रवति हैं. इस प्रवत्ति के कारण ही वे वास्तविक अर्थों में लोकनायक कहलाएं.

तुलसी के दार्शनिक विचार (Tulasidas Philosophical thinking)

तुलसी ने किसी विशेष वाद को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने वैष्णव धर्म को इतना व्यापक रूप प्रदान किया कि उसके अंतर्गत शैव, शाक्त और पुष्टिमार्गी भी सरलता से समाविष्ट हो गए. वस्तुतः तुलसीदास भक्त हैं और इसी आधार पर वह अपना व्यवहार निश्चित करते हैं. उनकी भक्ति सेवक-सेव्य भाव की हैं. वे स्वयं को राम का सेवक मानते हैं और राम को अपना स्वामी.

तुलसीकृत रचनाएँ (Tulasidas Poetry)

तुलसी के बारह ग्रन्थ प्रमाणिक माने जाते हैं. ये ग्रन्थ हैं- श्रीरामचरितमानस, विनय-पत्रिका, गीतावली, कवितावली, दोहावली, राम्लालानहछू, पार्वतीमंगल, जानकीमंगल, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, श्रीकृष्णगीतावली तथा रामाज्ञाप्रश्नावली. तुलसीदास की ये रचनाएँ विश्व साहित्य की अनुपम और अमूल्य निधि हैं.

तुलसी ने अपने युग और भविष्य, स्वदेश और विश्व तथा व्यक्ति और समाज आदि सभी के लिए महत्वपूर्ण सामग्री दी थी. तुलसी को आधुनिक दृष्टी ही नहीं, प्रत्येक युग की दृष्टी मूल्यवान मानेगी क्योंकि मणि की चमक अन्दर से आती हैं बाहर से नहीं. वस्तुतः तुलसीदास हिंदी साहित्य के सर्वाधिक प्रतिभासंपन्न तथा युग को नवीन दिशा प्रदान करने वाले महान कवि थे.

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