परिश्रम का महत्व पर निबंध | Parishram Ka Mahatva Essay in Hindi

परिश्रम का महत्व पर निबंध | Essay on Parishram Ka Mahatva (Benefits of Hard Work) for all class in Hindi | Parishram Ka Mahatva Par Nibandh

भर्तृहरि ने आलस्य को मानव शरीर का सबसे बड़ा शत्रु बताया है. किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए उद्यम की आवश्यकता होती है, यह केवल चिंतन अथवा मनोरथ करने से पूर्ण नहीं होता. सोते हुए सिंह के मुख में हिरण स्वयं ही प्रवेश नहीं करता उसके लिए सिंह को प्रयास करना पड़ता है.

दैव दैव आलसी पुकारा- यह पूरी तरह सत्य है. अकर्मण्य तथा आलसी व्यक्ति ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. केवल ईश्वर की कृपा से कार्य की सिद्धि चाहते हैं. जबकि सत्यता यह है कि ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं. परिश्रमी तथा लगनशील व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं तथा सफलता उनके चरण चुमती है. धरती के कायाकल्प के पीछे संकल्प की शक्ति कार्य करती है. यह धरती उन्हीं की है जो इनका अमृत मंथन करते हैं, जो रेत की छाती फाड़ कर और पर्वत का कलेजा चीर कर जल्द से धरती के सूखे अंचल को हरा-भरा कर देते हैं.

दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है जो कि भयंकर प्रलोभन से हमें बचाता है और डावाडोल होने से हमारी रक्षा करता है.

~राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

कर्म ही श्रेष्ठ है विनोबा भावे ने कर्म की महत्ता बताते हुए कहा था.

कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और हिंसक बनाता है.

जहां ध्येय हैं, वहां कर्म भी है. उससे कोई मुक्त नहीं है. समय उन्हीं के साथ होता है जो कर्मण्य है और जो भाग्य के भरोसे बैठना अपने पोरुष का अपमान समझते हैं. हमारा इतिहास साक्षी है कि कर्म पथ पर चलने वाले व्यक्तियों ने ही इतिहास का निर्माण किया है और समय पर शासन किया है. भगवान श्री कृष्ण, नादिर शाह, प्रेमचंद, शेरशाह सूरी, लाल बहादुर शास्त्री आदि ने जो कुछ भी पाया वह सब हमें दृढ़ शक्ति, साहस, धैर्य, अपने ध्येय में अटल विश्वास तथा कर्मशौर्य के कारण ही पाया.

उद्यम और परिश्रम आवश्यक है- उद्यम ही सफलता की कुंजी है. परिश्रम ही हमारा देवता है. बिना उद्यम के थाली की रोटी भी अपने मुख में नहीं आती है. इस प्रकार परिश्रम के बिना हमारी उन्नति नहीं हो सकती. उद्यमी पुरुष सिंह के समान होता है. लक्ष्मी भी उसका वरण करती हैं और उसी को सफलता प्राप्त होती हैं जो परिश्रम करता है.

आलसी मत बनो

आलस्य को अपना शत्रु मानने वाला कर्तव्य परायण व्यक्ति ही समय और परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लेता है. आलस्य वह बीमारी है इसका कोई उपचार नहीं है. आलस्य सभी गुणों की जड़ है. आलस्य में लिप्त व्यक्ति कायर होते हैं. वह महान पुरुषों के वचनों का सहारा लेकर कर्तव्य कर्म से बचते रहते हैं. संत मूलकदास का यही दोहा इनका मूल मंत्र है-

अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम.

भाग्य के भरोसे मत रहो

भाग्यवादी लोगों के अनुसार शुभ सफलता अनायास ही भाग्य के सहारे मिल सकती है. जबकि कर्म के आधार पर मिलने वाली सफलता स्थाई होती है दुष्कर्म करने पर सफलता अवश्य मिलेगी. तुलसीदास जी ने कहा है-

सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाही.

कर्म पथ पर चलते रहो

वेदों में कहा गया है कि इस पृथ्वी पर कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला जीने का अधिकारी है. जो कर्म निष्ठा को छोड़कर भोग वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी होता है. कर्म करते हुए दृढ़ संकल्प का सहारा लेकर साहस के साथ कार्य करने पर सफलता अवश्य मिलती है.

परिश्रम का महत्व

परिश्रम का जीवन में सबसे बड़ा महत्व है. कर्म करते रहने पर एक न एक दिन अवश्य सफलता मिलती है. प्रकृति भी भाग्य के बल से नहीं व्यक्ति के पुरुषार्थ के बल से झुकती है. राष्ट्रकवि दिनकर के अनुसार-

प्रकृति नहीं डरकर झुकती है, कभी भाग्य के बल से.
सदा हारती वह मनुष्य के उद्यम से, श्रम-जल से.

परिश्रम द्वारा शिवाजी को सफलता मिली जबकि आलस्य के कारण उनका पुत्र संभाजी असफल रहा. झांसी की रानी की सफलता का श्रेय भी परिश्रमशिलता को जाता है.

विद्यार्थियों के लिए परिश्रम का महत्व

विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का महत्व सबसे अधिक है. विद्यार्थी जीवन भावी जीवन की भूमिका है. जो विद्यार्थी इस समय जितना परिश्रम करेगा उसका भविष्य उतना ही सुखी होगा. परिश्रम की यात्रा के आधार पर उसकी सफलता की मात्रा आधारित है. महान वैज्ञानिक एडिसन से उसकी सफलता का रहस्य जानना चाहा कि उसकी सफलता का रहस्य क्या है. तो एडिसन ने हंसकर उत्तर दिया-

प्रतिभा क्या है, एक औंस बुद्धि और एक टन परिश्रम.

उपसंहार

हमें आलस्य त्यागकर कर्म में लग जाना चाहिए. भाग्य के भरोसे बैठकर हम प्रगति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते. आलसी व्यक्ति ही भाग्य को पुकारते हैं किन्तु कर्मयोगी व्यक्ति तो अपने कर्म तथा परिश्रम से भाग्य को ही बदल देते हैं. परिश्रमी व्यक्ति के लिए कुछ भी असाध्य नहीं हैं, असंभव नहीं हैं, वह तो अपने परिश्रम के बल पर सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं.

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