सत्संगति पर निबंध (अर्थ, लाभ, प्रभाव और उपसंहार) | Satsangati Essay (Meaning, Impact, Benefits & Conclusion) in Hindi | Satsangati Par Nibandh
मानव जीवन अपने आसपास के वातावरण से प्रभावित होता है. मूल तो मानव के विचारों और कार्यों के उसके संस्कार, वंश- परंपराएं ही दिशा दे सकती हैं. यदि उससे अच्छा वातावरण मिला है, तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है, यदि वह दूषित वातावरण में रहता है, तो उसके कार्य भी उससे प्रभावित हो जाते हैं.
सत्संगति का अर्थ
सत्संगति का अर्थ है- “अच्छी संगति”. वास्तव में सत्संगति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘सत्’ और ‘संगति’ अर्थात अच्छी संगति. अच्छी संगति का अर्थ है- ऐसे सत्पुरुषों के साथ निवास, जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाए.
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन.
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन.
उत्तम प्रकृति के मनुष्य के साथ उठना बैठना ही सत्संगति है. मानव को समाज में जीवित रहने तथा महान बनने के लिए सत्संगति परमावश्यक है.
सत्संगति का प्रभाव
मनुष्य पर उसके वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है. मनुष्य के साथ साथ पशु तथा वनस्पतियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है. मनुष्य को जिस संगति में रखा जाएगा उसका प्रभाव मानव पर अवश्य पड़ता है. स्वाति की एक बूंद विसंगति पाकर उन्हीं के अनुरूप परिवर्तित हो जाती है. सीप के संपर्क में आने पर मोती. भाव यह है कि सत्संगति अपना प्रभाव अवश्य दिखाती है. जिस प्रकार पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति कहीं से कहीं पहुंच जाता है महानता के उच्चतम पर आसीन हो जाता है किंतु यदि कोई काजल की कोठरी में जाता है तो उस पर काजल का कोई ना कोई चिन्ह अंकित होना स्वाभाविक है. सत्संगति से व्यक्ति महान बनता है तथाकुसंगति उसे क्षुद्र बनाती है. कुसंगति के कारण मानव को पग पग पर मानहानि उठानी पड़ती है. लोहे के साथ पवित्र अग्नि भी लौहार के हथौड़े द्वारा पीटी जाती है. प्रख्यात आलोचक पंडित रामचंद्र शुक्ल के अनुसार कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है.
सत्संगति के लाभ
सत्संगति के अनेक लाभ है. सत्संगति मनुष्य को सन्मार्ग की ओर ले जाती है. इससे दुष्ट प्रवृति के व्यक्ति भी श्रेष्ठ बन जाते हैं. पापी पुण्यात्मा और दुराचारी सदाचारी हो जाते हैं. संतों के प्रभाव से आत्मा के मलिन भाव दूर हो जाते हैं तथा वह निर्मल बन जाती है. सज्जनों के पास शुद्ध मन तथा ज्ञान का विशाल भंडार होता है. उनके अनुभवों से मूर्ख व्यक्ति भी सुधर जाते हैं. सदपुरुषों की संगति से मनुष्य के दुर्गुण दूर होकर उसमें सद्गुणों का विकास होता है. उनके में भी आशा और धैर्य का संचार होता है. सज्जनों के कारण उनका भी गाया जाता है. कबीर का कथन है-
कबीरा संगत साधु की हरै और की व्याधि.
संगत बुरी असाधु की आठो पहर उपाधि.
सत्संगति के प्रभाव से मनुष्य में ऐसे चरित्र का विकास होता है कि वह अपना और संसार का कल्याण कर सकता है सत्संगति कुछ ही समय में व्यक्ति की जीवन दिशा को बदल देती है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है-
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी की पुनि आध,
तुलसी संगत साधु की, काटे कोटि अपराध
सत्संगति आत्म संस्कार का महत्वपूर्ण साधन है. बुद्धि की जड़ता को दूर करके वाणी में सत्यता लाती है, सम्मान तथा उन्नति का विस्तार करती है तथा कीर्ति का दिशाओं में विस्तार करती है. कांच भी सोने के आभूषण में जोड़कर मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है. महान पुरुषों का साथ सदैव लाभकारी होता है. कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद भी मोती जैसी दिखाई देती है. संत कवि तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है- “ बिनु सत्संग विवेक ना होई”. सत्संगति व्यक्ति को अज्ञान से ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, जड़ता से चेतन ने की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, ईर्ष्या से सौहार्द की ओर तथा अविद्या से विद्या की ओर ले जाती है.
जो विद्यार्थी अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहते हैं, उनका चरित्र श्रेष्ठ होता है एवं उनके सभी कार्य उत्तम होते हैं. उनसे समाज एवं राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ती है.
कुसंगति से हानियां
कुसंगति से लाभ की आशा करना व्यर्थ है. कुसंगति से मानव का विनाश निश्चित है. कुसंगति के प्रभाव से मनस्वी पुरुष भी अच्छे कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं. कुसंगति के कारण चाह कर भी अच्छा कार्य नहीं कर पाते. कुसंगति में पड़कर अनेक व्यसन सीख जाते हैं. इससे उनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. उनकी प्रगति के मार्ग रुक जाते हैं. मस्तिष्क विवेकहीन हो जाता है. वे अनुशासन हीन हो जाते हैं. गलत दृष्टिकोण के कारण ऐसे विद्यार्थी पतन के गर्त में गिर जाते हैं. देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व तथा कर्तव्य को भूल जाते हैं. मंथरा की संगति के कारण कैकई ने राम को वन में भेजने का कलंक अपने माथे पर लिया. महाबली भीष्म, द्रोण, दानवीर कर्ण जैसे महान पुरुष दुर्योधन, दुशासन आदि की संगति के कारण पथभ्रष्ट हो गए थे. गंगा सागर में मिलती है तो वह अपनी पवित्रता खो बैठते हैं.
उपसंहार
महाकवि तुलसीदास के अनुसार- “शठ सुधरहि सत्संगति पाए”. सज्जनों के साथ रहकर दुराचारी भी अपने दुश्मनों को त्याग देता है. विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का अत्यंत महत्व है. विद्यार्थी जीवन ही संपूर्ण जीवन की आधार शिला है. इस समय विद्यार्थी पर जो अच्छे बुरे संस्कार पड़ जाते हैं, वे जीवन भर छूटते नहीं हैं. अतः युवकों को अपनी सत्संगति की ओर विशेष सावधान रहना चाहिए. विद्यार्थियों की निर्दोष तथा निर्मल बुद्धि पर कुसंगति का वज्रपात ना हो पाए, यह देखना अभिभावकों का भी कर्तव्य है. वास्तव में सत्संगति वह पारस है, जो जीवन रूपी लोहे को कंचन बना देती है. मानव जीवन की सर्वांगीण उन्नति के लिए सत्संग अति आवश्यक है. इसके माध्यम से हम अपने लाभ के साथ साथ अपने देश के लिए उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेगे.
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