स्वामी विवेकानन्द के अमृत वचन | Swami Vivekanand Amrit Vachan in Hindi

स्वामी विवेकानंद के सुप्रसिद्ध अनमोल वचन | Swami Vivekanand Famous Quotes (Amrit Vachan), Suvichar, Thoughts, Vichar in Hindi

(अमृत वचन – Amrit Vachan)

स्वामी विवेकानद ने कहा
“लुढ़कते पत्थर में काई नहीं लगती वास्तव में वे धन्य है जो शुरू से ही जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लेते है. जीवन की संध्या होते होते उन्हें बड़ा संतोष मिलता है कि उन्होंने निरूद्देश्य जीवन नहीं जिया तथा लक्ष्य खोजने में अपना समय नहीं गवाया. जीवन उस तीर की तरह होना चाहिए जो लक्ष्य पर सीधा लगता है और निशाना व्यर्थ नहीं जाता.”

स्वामी विवेकानंद ने कहा
जिस उद्देश्य एवं लक्ष्य कार्य में परिणत हो जाओ, उसी के लिए प्रयत्न करो. मेरे साहसी महान बच्चों काम में जी जान से लग जाओ अथवा अन्य तुच्छ विषयों के लिए पीछे मत देखो स्वार्थ को बिल्कुल त्याग दो और कार्य करो.

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा
जब कभी भारत के सच्चे इतिहास का पता लगाया जायेगा. तब यह संदेश प्रमाणित होगा कि धर्म के समान ही विज्ञान दर्शन संगीत साहित्य गणित ललित कला आदि में भी भारत समग्र संसार का आदि गुरु रहा है.

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा
हम हिन्दू चाहे जिस नाम से पुकारे जाते हो, कुछ सामान विचार सूत्रों से बंधे हुवे हैं, अब वह समय आ गया है कि अपने तथा अपने हिन्दू जाति के कल्याण के लिए अपने आपस के झगड़ो एवं मतभेदों को त्यागकर हम एक हो जाएँ.

स्वामी विवेकानन्द
जब कोई मनुष्य अपने पूर्वजों के बारे में लज्जित होने लगे, तब समझ लेना उसका अंत हो गया. मैं यद्धपि हिन्दू जाति का नगण्यघटक हूँ, किन्तु मुझे अपने धर्म पर गर्व है, अपने पूर्वजों पर गर्व है. मैं स्वयं को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव करता हूँ.

स्वामी विवेकानन्द
लोग जीते जी ही मुर्दे हो रहे हैं. हमारे देश के लिए इस समय आवश्यकता है, लोहे कि तरह ठोस मांस पेशियां और मजबूत स्नायु वाले शरीरों की. आवश्यकता है इस तरह इच्छा-शक्ति सम्पन्न होने की, ताकि कोई भी उसका प्रतिरोध करने में समर्थ न हो.

स्वामी विवेकानन्द
भारत में हमारे विकास पथ में दो बड़ी बाधाएं है, सनातन परम्पराओं की कमजोरियाँ और यूरोपीय सभ्यता की बुराइयाँ. मैं दोनों में से सनातन परम्पराओं की कमजोरियाँ अपनाना पसंद करूँगा.

स्वामी विवेकानन्द
एक लक्ष्य निर्धारित कीजिये, उस लक्ष्य को ही अपना जीवन बनाइये. उस पर हमेशा विचार कीजिये, उसको पूरा करने का ही स्वप्न देखिये. उस लक्ष्य के लिए ही जियें और अन्य सभी बातों को छोड़ दें. सफलता का यही मार्ग है.

स्वामी विवेकानन्द
आगामी पचास वर्षों में हमारा केवल एक ही विचार केन्द्र होगा और वह है, हमारी महान मातृ-भूमि भारत. हमारा भारत, हमारा राष्ट्र केवल यही हमारा देवता है. वह अब जाग रहा है, हर जगह जिस के हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं, जो सब वस्तुओं में व्याप्त है. इस महान देवता की पूजा में सब देवों की पूजा है.

स्वामी विवेकानन्द
जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है.

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