रोहिंग्या मुसलमान कौन है ?
रोहिंग्या मुसलमान सुन्नी इस्लाम को मानने वाले लोग हैं। ऐसा मन जाता है की बौद्ध बहुल देश म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमान 1400 ई. के आस-पास से बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान (रखाइन) प्रांत में रह रहे हैं। इनके पुरखे अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में आश्रय दिया था।
क्या है शांत बौद्धों का भी इन्हें खतरा मानने का इतिहास ?
मानवाधिकारवादी बुद्धिजीवी चाहे कितना ही प्रलाप क्यों न कर लें किंतु वास्तविकता से परिचय भी आवश्यक है जो ये है की रोहिंग्या मुसलमान अपनी बुरी स्थिति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। ये लोग मूलतः बांग्लादेश के रहने वाले हैं । आरोप है कि जिस तरह लाखो बांग्लादेशी भारत में घुस कर रह रहे हैं, उसी प्रकार ये भी रोजी-रोटी की तलाश में बांग्लादेश छोड़कर बर्मा में उस समय घुस गए। 1962 से 2011 तक बर्मा में सैनिक शासन रहा। इस अवधि में रोहिंग्या मुसलमान चुपचाप बैठे रहे किंतु जैसे ही वहां लोकतंत्र आया, रोहिंग्या मुसलमान बदमाशी पर उतर आए।
जून 2012 में बर्मा के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती से बलात्कार किया। जब स्थानीय बौद्धों ने इस बलात्कार का विरोध किया तो रोहिंग्या मुसलमानों ने संगठित होकर बौद्धों पर गंभीर हमला बोल दिया। जिसमे कई बौद्धों की मौत हो गयी | इस हमले से आमतौर पर शांत रहने वाले बौद्ध अपने सरंक्षण के लिए संगठित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या अधिक थी।
रोहिंग्या मुसलमानों ने बर्मा में रोहिंग्या रक्षा सेना का निर्माण करके अक्टूबर 2016 में बर्मा के 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी तथा कई पुलिस चौकियों पर हमले किए। इसके बाद से बर्मा की पुलिस रोहिंग्या मुसलमानों को बेरहमी से मारने लगी और उनके घर जलाने लगी इस कारण बर्मा से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन का नया सिलसिला आरम्भ हुआ। तब से दोनों समुदायों के बीच हिंसा का जो क्रम आरम्भ हुआ, वह आज भी जारी है।
भारत में रोहिंग्या समस्या और क्यों है खतरा ?
भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध आप्रवासी बताते हुए उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है | उन्होंने कहा कि बहुत से रोहिंग्या मुसलमान, आंतकवादी समूहों से जुड़े हैं जो जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात क्षेत्र में अधिक सक्रिय हैं. इन क्षेत्रों में इनकी पहचान भी की गई है. सरकार ने आशंका जताई है कि कट्टरपंथी रोहिंग्या भारत में बौद्धों के खिलाफ भी हिंसा फैला सकते हैं. खुफिया एजेंसियों का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि इनका संबंध पाकिस्तान और अन्य देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से है और ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं.” सवाल जो सबके मन में आता है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में ही शरण क्यों चाहिए ?
बांग्लादेश जब उनकी मदद कर रहा है तो वे भारत में आने को क्यों आतुर हैं? निस्संदेह सुन्नी होने की वजह से हिन्दुस्तानी मुसलमानों में उनके प्रति सहानुभूति है। कश्मीर में 10 हज़ार के करीब रोहिंग्या मुसलानों का पहुंच जाना इसी का नतीजा है। मगर, धार्मिक आधार पर यह सहानुभूति क्या जायज है? कश्मीर अशांत है। वहां पत्थर फेंकने की नौकरी आसानी से मिल जाती है। मिलिटेंट और उन्हें समर्थन देने वाले सीमा पार के देश उन्हें पत्थर फेंकने की नौकरी देते हैं। ज़ाहिर है की सुरक्षा एजेंसीओ के अनुसार ये खतरा है और समस्या को भयावह रूप दे देंगे |
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर में जिन हिन्दुओं को विस्थापित होना पड़ा है उन्हें दोबारा वहां बसाए जाने का वहीं के कश्मीरी मुसलमान विरोध कर रहे हैं। ऐसे में वहां रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी बनाकर रखने पर हिन्दू-मुसलमान तकरार और गम्भीर रूप धारण करेगा। आखिर ऐसी आफत को हिन्दुस्तान क्यों मोल ले? सिर्फ इसलिए कि भारत में जीने-खाने के बेहतर प्रबंध हो सकते हैं अगर रोहिंग्या भारत की तरफ रुख करेंगे तो यहां रहने वालों के बीच संसाधानों की जो मारामारी है, स्पर्धा है, जीने का संकट है, राजनीतिक व्यवस्था है उस पर भी दबाव पड़ेगा। इस दबाव को नहीं देखना भी अमानवीयता ही कही जाएगी। वर्तमान संकट का हल ढूंढ़ते हुए भविष्य के लिए बड़े संकट की आफत मोल लेना कहीं से बुद्धिमानी नहीं है |
सवाल ये भी है की दुनिया में 32 केवल इस्लामिक देश होने क बावजूद भी रोहिंग्या मुस्लिम को भारत हे क्यों शरण दे ? यूनाइटेड नेशन भारत पर हे क्यों इन्हें शरण देने का दबाव बनाना चाहता है, किसी इस्लामिक देश पर क्यों नहीं ?