गेहूं की फसल को कीट से कैसे बचाएं | Gehu ko kido se bachane ke upay

गेहू की फसल को कीड़ों (घुन, दीमक, चूहों, गुजिया) से बचाने के उपाय | Gehu ko kido se bachane ke upay | Save Wheat Crop From Pests in Hindi

जैसा की हम जानते हैं गेहूं हमारी सभी फसलो में एक प्रमुख फसल हैं, गेहूं एक ऐसा अनाज हैं जिसकी आवश्यकता हमे प्रतिदिन रोटी, चपाती के रूप में हमारे भोजन में होती हैं जो कि हमे बाज़ार में आसानी से उपलब्ध हो जाता हैं यह हमारे किसान भाइयों की मेहनत होती हैं जो हमे भोजन के रूप में प्राप्त होती हैं किसान भाईयों को गेहूं की पैदावार हेतु फसल की बहुत देख-रेख करनी होती हैं. तो आज हम गेहूं की फसल से सम्बन्धित कुछ मुख्य बातें जानेंगे. जैसे गेहूं की पैदावार के पूर्व और बुआई के पश्चात की सावधानियां.

गेहूँ की फसल को कीट से कैसे बचाएं (Gehu ko kido se bachane ke upay)

गेहूं की फसल का इनसे करें बचाव

दीमक

दीमक पौधों की जड़ो पर हमला करते हैं जिससे उसकी जड़े कमजोर हो जाती हैं और पौधे आसानी से उखड जाते हैं जिसकी रोकथाम के लिए खेतों में खाद के लिए कच्ची गोबर का प्रयोग ना करे केवल सड़ी हुई गोबर ही डाले. फिप्रोनिल 5 एफ. एस. के. 6 मि.ली. 1 किलो बीज की दर के हिसाब से बीज का शोधन कर बीज को छाया में सुखा कर बीज की बुआई करे.

चूहा

चूहा पूरी फसल को नष्ट कर देता हैं चूहे खड़ी फसल को जड़ो से काट कर नुकसान पहुंचाता हैं इनकी रोकथाम के लिए खेतों में 100 ग्रा. बेरियम कार्बोनेट, 870 ग्रा. गेहूं का आटा, 15 ग्रा. शक्कर तथा सरसों का तेल 25 ग्रा. इन सभी सामग्री को मिला कर खेतों में आवश्यकता पड़ने पर 2 से 3 बार छिडके.

गुजिया

गुजिया यह कीट जमीन की दरारों में छिपे होते हैं तथा यह उग रहे नवजात पौधों को सतह से काटकर नुक़सान पहुंचाते हैं इन्हें रोकने के लिए खेतों में सिचांई के पूर्व क्लोरपाइरीफास 20, ई.सी.के. 5 मि.ली., 1 किलो ग्रा. बीज की दर से शोधन कर बुआई करे और यदि बुआई कर दी हैं तो सिचांई के समय 5 लीटर क्लोरपाइरीस और 20 ई.सी. का प्रयोग करे.

माहू

माहू यह जंतु छोटे व कोमल शरीर वाले होते हैं यह पत्तियों और पुष्पों का रस चूस कर इन्हें कमजोर करते हैं यदि खेतों में माहू का प्रकोप दिखाई दे तो ऐसे में थायोमिथेक्सा 25, डब्लू एस.जी. के. 100 मि.ली. हेक्टेयर के हिसाब से 500 से 600 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें, यह छिडकाव 15 दिन में पुनः करे साथ ही ध्यान रखे की छिडकाव करने के समय मौसम अनुकूल हो अर्थात् बारिश या तेज़ हवाओ का मौसम ना हो.

गेहूं की फसल के रोग (Gehu Ki Fasal Ke Rog)

गेहूं की फसल में होने वाले रोग मुख्य पाँच प्रकार के होते हैं

  1. रतवा रोग
  2. कालिमका रोग
  3. झुलसा रोग
  4. सेहू रोग
  5. पहाड़ी बंट

गेहूं की फसल के रोग व उपचार (Gehu Ko Rog se Bachane Ke Upay)

  1. रतवा रोग
  2. गेहूं की फसल में होने वाला एक रोग मुख्य रूप से रतवा हैं जिसे रष्ट, रतऊ व गरुई के नाम से भी जाना जाता हैं यह रोग फसल को झुलसा देता हैं या जला देता हैं यह तीन प्रकार का होता है

    1. काला
    2. भूरा
    3. सफ़ेद

    भूरा रतवा मुख्य रूप से यु.पी. में देखा जाता हैं यदि रतवा फसल के प्रारम्भ में हो, तो यह फसल को नष्ट कर देता हैं और यदि मध्य में हो तो यह फसल को बहुत प्रभावित करता हैं जिससे फसल में कमी आती हैं.

    उपचार:- इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों का बुआई के पूर्व में उपचार करें, बुआई समय पर करें तथा संतुलित उर्वरको का प्रयोग करें. बुआई के पश्चात रोग की शंका होने पर प्रोपीकोनाज़ोल 500 मि.ली. हेक्टेयर को 800 से 1000 ली. पानी में मिला कर छिड़काव करे.

  3. कालिमका रोग
  4. कालिमका रोग जिसे दुसरे शब्दों में लूस स्मट या करनाल बंट भी कहा जाता हैं व साधारण बोली में कायमा कहा जाता हैं यह रोग गेहूं की फसल में जहाँ दाने आते हैं वहाँ दिखाई देता हैं यह प्रारम्भ में गेहूं की बाली पर भूरे रंग के चूर्ण की तरह दिखाई देता हैं और इसमें दाने भी नही आते हैं. रोग के बढ़ने पर यह चूर्ण काले रंग का हो जाता हैं.

    उपचार:- इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों का बुआई के पूर्व शोध करे तथा यह रोग दिखाई पढने पर जब फसल लगभग 25 फीसदी बढ़ चुकि हो, तब इसमें 500 मि.ली. प्रोपिकोनाज़ोल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 100ली. पानी मिला कर छिड़काव करे.

  5. पत्र झुलसा
  6. पत्र झुलसा जिसे चूर्णी फफूंदी भी कहा जाता हैं, यह रोग फफूंद के कारण होने वाला रोग हैं यह रोग मुख्य रूप से फसल के मध्य में होता हैं जिसमे पत्तो का रंग भूरा हो जाता हैं तथा यह एक पत्ते से दुसरे पत्ते में फैलता हैं तथा यह रोग सफ़ेद पाउडर की तरह दिखाई पढ़ता हैं जो शुरुआत में निचली पत्तियों पर तथा बाद में तनो एवं बालियों पर दिखाई पड़ता हैं.

    उपचार :- टेनुकोनाज़ोल 250, ई.सी.के. 500मि.ली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500ली. पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करें.

  7. सेहु रोग :-
  8. सेहु रोग को ईयर कॉकेल भी कहा जाता हैं इस रोग में पत्तियाँ और बालियाँ टेडी हो जाती हैं यह सुत्रकृमि के कारण होती हैं और यह रोह होने पर दानो की जगह गाठें बन जाती हैं.

    उपचार :- सेहु रोग होने का कारण मुख्यतः बीज की खराबी होती हैं जिसके लिए बीज को बुआई के पूर्व ही 10 % नमक के पानी के घोल में डाले तथा जो बीज पानी की सतह पर तेर रहे हैं उन्हें निकाल कर फेक दे और जो बीज निचे बेठ गए हैं उन्हें 2-3 पानी से धो कर छाव में सुखा ले तत्पश्चात बीज की बुआई करें, किन्तु कई बार सावधानियाँ रखने पर भी फसल में सेहु रोग हो रहा हैं तो इसका कारण ज़मीन की खराबी हो सकती हैं, जिसके लिए या तो मिट्टी का सही उपचार करे या 2-3 साल तक खेत में बुआई ना करें |

  9. पहाड़ी बंट :-
  10. इस रोग के होने पर फसल में पौधों की बालियों पर काले रंग की गांठे हो जाती हैं तथा बालियाँ फेली हुई दिखाई देती हैं साथ ही इसमें सड़ी हुई मछली की तरह दुर्गन्ध आती हैं.

    उपचार :- इस रोग के उपचार के लिए बीजों का शोधन करें.

इस प्रकार यदि सावधानी पूर्वक बीजों व फसल की देख-रेख करेंगे तो फसल को होने वाले रोगो से आप बचा लेंगे और फसल उत्पादन अधिक मात्रा में हो सकेगा.

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