जिस प्रकार भगवान शिव का वाहन नंदी, श्री विष्णु का गरुड़, श्री कार्तिकेय का मोर, माँ दुर्गा का सिंह तथा श्रीगणेश का वाहन मूषक यानी चूहा है, उसी प्रकार माँ सरस्वती का वाहन हंस है. माँ सरस्वती को विद्या, बुद्धि तथा कला की देवी माना जाता है. इस बात का उल्लेख देवी की द्वादश नामावली में मिलता है-
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी॥
अर्थात : सरस्वती का पहला नाम भारती, दूसरा सरस्वती, तीसरा शारदा और चौथा हंसवाहिनी है. यानी हंस उनका वाहन है.
जानने की उत्सुकता होती है कि आखिर हंस माँ सरस्वती का वाहन क्यों है? सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यहां वाहन का अर्थ यह नहीं है कि देवी उस पर विराजमान होकर आवागमन करती हैं. यह तो एक संदेश है, जिसे हम आत्मसात करके अपने जीवन को कल्याण की ओर ले जा सकते हैं. हंस को विवेक का प्रतीक माना जाता है. संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का उल्लेख है. इसका अर्थ होता है- दूध का दूध और पानी का पानी करना. यह क्षमता हंस में विद्यमान होती है-
– भामिनीविलास 1/13
इसका अर्थ है कि हंस में ऐसा गुण होता है कि वह दूध और पानी को अलग अलग कर सकता है
श्वेत रंग है पवित्रता और शांति का प्रतीक
हंस का रंग श्वेत (शुभ्र) होता है. यह रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है. शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्रता आवश्यक है. पवित्रता से श्रद्धा और एकाग्रता आती है. शिक्षा की परिणति ज्ञान है. ज्ञान से हमें सही और गलत या शुद्ध और अशुद्ध की पहचान होती है. यही विवेक कहलाता है. मानव जीवन के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, इसलिए सनातन परम्परा में जीवन का पहला चरण शिक्षा प्राप्ति का है, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा गया है. जो पवित्रता और श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति करेगा, उसी पर सरस्वती की कृपा होगी.
हंस के इस गुण को हम अपनी जिंदगी में अपना लें तो कभी असफल नहीं हो सकते. सच्ची विद्या वही है जिससे आत्मिक शांति प्राप्त हो. सरस्वती की पूजा-उपासना का फल ही हमारे अंत:करण में विवेक के रूप में प्रकाशित होता है. सरस्वती का वाहन हंस हमें यही संदेश देता है कि हम पवित्र और श्रद्धावान बन कर ज्ञान प्राप्त करें और अपने जीवन को सफल बनाएं.
एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक
शास्त्रों में वर्णित हंस-हंसनी के प्रेम की कथाओं को आज विज्ञान ने भी सहमति दी है. हंस एकनिष्ठ प्रेम का प्रतीक है क्यूंकि हंस अपना जोड़ा एक ही बार बनाते हैं. हमारी परंपरा में भी हंस के इस प्रेम को मनुष्य के लिए आदर्श माना गया है. यदि उनमें से किसी एक की मौत हो जाती है तो दूसरा उसके प्रेम में अपना जीवन बिता देता है, पर दूसरे को अपना जीवन साथी नहीं बनाता.
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