भारत में दीपावली और उसे साथ आने वाले त्योंहारों के महत्व से जुडी जानकारियां और कथा | Importance of Diwali Festival in Hindi
भारत एक त्योहारों का देश हैं. यहाँ जितने त्यौहार सालभर में मनाये जाते हैं उतने शायद ही किसी देश में मनाये जाते होंगे. दीपावली एक हिन्दू त्यौहार हैं और इसे साल का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता हैं. इस त्यौहार को अधर्म पर धर्म की विजय और अंधकार पर रोशनी की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन से जुडी इतिहास में बहुत सारी कहानियाँ हैं. इस त्यौहार की तैयारी करने के लिए लोग एक महीने पहले से ही जुट जाते हैं और घरों में सफाई का, रंग-रोगन का और खरीददारी का काम करते हैं.
दीपावली का महत्व (Importance of Diwali Festival and Significance )
ऐसी मान्यता है दीपावली बुराई के अँधेरे पर अच्छाई के प्रकाश का प्रतिक है, इसीलिए दीपावली पर दिए जलाने से अँधेरा यानि बुराई समाप्त होती है, और ये दिए लोगों के बीच प्रार्थना, प्यार, अच्छाई और पवित्रता से भरा एक अद्भुत वातावरण बनाते हैं, जिससे समाज में सकारात्मकता आती है. दिवाली का त्यौहार सभी के दिलों को पवित्रता की रोशनी और एक खुशनुमा, करुणामय माहोल बनाता है.
- दिवाली भी देने और माफ करने का उत्सव है. दिवाली में लोगो के लिए अन्याय और द्वेष को भूल और क्षमा करने का प्रतिक है. इस त्यौहार पर लोग हर जगह खुलके, उत्सव और मित्रता की मिठास बाटते हैं.
- दिवाली एक नई और कायाकल्प आत्मा के जन्म का प्रतीक है. दिवाली के दौरान एक खुश और ताज़ा दिमाग, दुसरे व्यक्ति को एक स्वस्थ, नैतिक व्यक्ति के रूप में बदलाव करने के लिए प्रेरित करता है, जो अपने काम में अधिक कुशल होगा, और आध्यात्मिक रूप से भी उन्नत होगा.
- Diwali एक ऐसा उत्सव है जो हर कोने, धर्म और जाति के लोगों को एकजुट करता है. सरल मुस्कान और दयालु, मिलनसार हृदय कठोर से कठोर हृदय को भी पिघला देता है. यह एक ऐसा समय होता है जब लोग खुशी-खुशी एक-दूसरे को गले लगाते हैं और एक-दूसरे के गले लगते हैं.
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिवाली हमारे भीतर की रोशनी को रोशन करती है. दिवाली की रोशनी हमारी सभी अंधेरी इच्छाओं, अंधेरे विचारों को नष्ट करने में मदद करती है. यह त्यौहार एक गहरी, आंतरिक रोशनी और आत्म-प्रतिबिंब के समय का भी प्रतीक है.
दिवाली का पावन पर्व भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में भी मनाया जाता हैं. दीपावली का त्यौहार मुख्य रूप से 5 दिनों का होता हैं. जिसकी शुरुआत धनतेरस के साथ होती हैं. दीपावली के उत्सव के हर दिन का एक महत्व हैं. जिसके कारण इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं.
1. धनतेरस
दीपावली त्यौहार की शुरुआत धनतेरस से होती हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता हैं इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. देश में इस दिन लोग अपनी दूकान और व्यवसाय वाली जगह पर माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. इस दिन पर सोना खरीदने का महत्व भी हमारे पुराणों में बताया गया हैं.
2. रूपचौदस
इस त्यौहार का दूसरा दिन रूपचौदस का होता हैं. इस दिन महिलाएं बेसन से बने उबटन का उपयोग कर अपने रूप को निखारती हैं इसीलिए इसे रूपचौदस कहा जाता हैं. इस दिन से जुडी अन्य कहानियाँ भी हैं जिसके अनुसार इस दिन को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता हैं कि कार्तिक माह कि कृष्ण चतुर्दशी पर विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है. इस त्यौहार के बारे में और विस्तार से जानकारी लेने के लिए आप हमारा यह आर्टिकल पढ़ सकते हैं.
3. दीपावली
दीपावली का त्यौहार इस क्रम में तीसरे दिन पर आता हैं. यह त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता हैं. यह एक मात्र ऐसा हिन्दू त्यौहार हैं जो कि अमावस के दिन मनाया जाता हैं. इस दिन लोग माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं और उन्हें मिठाइयां बांटते हैं. पूरे भारत में लोग इस दिन घरों में दिए जलाते हैं. पूजन के बाद बच्चे पटाखे आदि जलाते हैं.
पहली कथा
भगवान श्रीराम त्रेता युग में रावण को हराकर जब अयोध्या वापस लौटे थे. तब प्रभु श्री राम के आगमन पर सभी अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाकर उनका स्वागत किया था. इसीलिए 5 दिनों के उत्सव दीपावली में सभी दिन सभी घरों में दिए जलाए जाते हैं.
दूसरी कथा
पौराणिक प्रचलित कथाओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने आताताई नरकासुर का वध किया था. इसलिए सभी ब्रजवासियों ने दीपों को जलाकर खुशियां मनाई थी.
तीसरी कथा
एक और कथा के अनुसार राक्षसों का वध करने के लिए माता पार्वती ने महाकाली का रूप धारण किया था. जब राक्षसों का वध करने के बाद महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे. और भगवान शिव के स्पर्श मात्र से ही उनका क्रोध समाप्त हो गया था. इसी की स्मृति में उनके शांत रूप माता लक्ष्मी की पूजा इस दिन की जाती है.
चौथी कथा
दानवीर राजा बलि ने अपने तप और बाहुबल से संपूर्ण देवताओं को परास्त कर दिया था और तीनों लोको पर विजय प्राप्त कर ली थी. बलि से भयभीत होकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इस समस्या का निदान करें. तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर महाप्रतापी राजा बलि से सिर्फ तीन पग भूमि का दान मांगा.
राजा बलि तीन पग भूमि दान देने के लिए राजी हो गए. भगवान विष्णु ने अपने तीन पग में तीनों लोको को नाप लिया था. राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया था. उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाई जाती है.
पांचवी कथा
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह बादशाह जहांगीर हकीकत से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे. इसलिए सिख समाज भी इसे त्यौहार के रूप में मनाता है. इतिहासकारों के अनुसार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन प्रारंभ हुआ था.
छटी कथा
सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही हुआ था. इसलिए सभी राज्यवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी.
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4. गोवर्धन पूजा
चौथे दिन गोवर्धन और धोक पड़वा के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन सभी अपनों से बड़ों के घर जाकर आशीर्वाद लेते हैं. और इस दिन गौमाता की भी पूजा की जाती हैं.
5. भाईदूज
दीपावली के उत्सव का अंतिम दिन भाईदूज का होता हैं. यह भाई-बहन का त्यौहार हैं. इस दिन बहन अपने भाई को अपने घर पर बुलाती हैं. और उसकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं. भाई अपनी बहन को इस त्यौहार पर उपहार भेट करता हैं. इस पर्व से जुडी एक कथा भी हिन्दू पुराणों में मौजूद हैं. जिसके अनुसार सूर्यपुत्र यमराज और उनकी बहन यमुना में अपार स्नेह था. यमुना यम से बार-बार निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा. कार्तिक शुक्ला का दिन आया. यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया.
दीपावली तिथि और शुभ मुहूर्त (Diwali 2022)
दिनांक | 12 नवंबर 2023 (रविवार) |
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त | शाम 05 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर शाम 07 बजकर 35 मिनट तक |
अमावस्या तिथि आरंभ | शाम 05 बजकर 27 मिनट से (12 नवंबर) |
अमावस्या तिथि समाप्त | दोपहर 04 बजकर 18 मिनट तक (13 नवंबर) |
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