दीपावली की तिथि, पूजा समय और इस पर्व से जुडी रोचक पौराणिक कहानियाँ | Deepawali 2023 Lakshmi Puja, Shubh Muhurat and Stories related to it in Hindi
हिंदू धर्म दीपावली एक प्रमुख उत्सव है. जिसे संपूर्ण भारतवर्ष में प्रत्येक भारतवासी बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. प्रत्येक त्यौहार में एक अंतर्निहित भाव छुपा होता है जो उसके महत्व को समझाता है. इसके पीछे कोई ना कोई कहानी जरूर होती है. अधर्म पर धर्म की विजय और अंधकार पर रोशनी की विजय का प्रतीक यह त्यौहार संपूर्ण मानव जाति के जीवन में खुशियां लेकर आता है. एक माह पूर्व ही लोग इस त्यौहार की तैयारियों में लग जाते है. यहां सिर्फ हिंदू धर्म का ही त्यौहार ना होकर संपूर्ण भारतवासियों का त्यौहार है. विभिन्न धर्मों के लोग यह त्यौहार मनाते हैं.
दीपावली के त्यौहार और उसका महत्त्व हर व्यक्ति जनता है, इस त्यौहार को अँधेरे पर उजाले की जीत के तरह मनाया जाता है. इस दिन सभी माता लक्ष्मी की पूजा करते है और आशा करते है कि माता लक्ष्मी उनके घर में पधारेंगी. इसीलिए पूजा का मुहूर्त सही होना बहोत जरुरी है. शुभ मुहूर्त में की गई पूजा घर में खुशियाँ और वैभव लेकर आती है, इसीलिए पूजा मुहूर्त जानना बहुत ही आवश्यक है.
दीपावली तिथि और लक्ष्मी पूजा मुहूर्त (Deepawali Puja Shubh Muhurat 2023)
दीपावली 2023 तिथि | 12 नवंबर 2023 |
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त | शाम 5:39 से 7:35 बजे तक |
अवधि | 1 घण्टा 56 मिनट |
प्रदोष काल | शाम 05:29 से 8:08 बजे तक |
वृषभ काल | शाम 05:39 से 07:35 बजे तक |
अमावस्या तिथि आरंभ | 12 नवंबर 2023 को 5:27 बजे तक |
अमावस्या तिथि समाप्त | 13 नवंबर 2023 को 4:18 बजे तक |
प्रकाश के त्यौहार दीपावली का महत्व (Deepawali Puja Ka Mahatva)
प्रकाश पर्व दीपावली सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु नेपाल, सिंगापुर, मलेशिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद और दक्षिण अफ्रीका में भी मनाई जाती है. दीपावली का त्यौहार 5 दिनों तक मनाया जाता है.
इस दिन लोग एक दूसरे से मिलते हैं और उन्हें मिठाइयां बांटते हैं. पूरे भारत में लोग इस दिन घरों में दिए जलाते हैं. इस दिन सभी घरों में माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है. और पूजन के बाद बच्चे पटाखे आदि जलाते हैं.
पाँच दिनों के इस उत्सव में प्रथम दिवस धनतेरस का होता है. इस दिन भगवान लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. इसी दिन से दीपावली का महापर्व शुरू होता है.
द्वितीय दिन नरक चतुर्दशी होती है. इस दिन सभी लोग सूर्योदय के पूर्व स्नान करते हैं. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था.
तीसरे दिन दीपावली का मुख्य पर्व होता हैं. इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता हैं. बच्चे फटाके फोड़कर बहुत ही खुश होते हैं. इस दिन सभी एक दुसरे से मिलकर उन्हें दीपावली की शुभकामनाये देते हैं.
चौथे दिन गोवर्धन और धोक पड़वा के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन सभी अपनों से बड़ों के घर जाकर आशीर्वाद लेते हैं. और इस दिन गौमाता की भी पूजा की जाती हैं.
पाँचवे दिन भाईदूज होती हैं. यह भाई-बहन का त्यौहार हैं. इस दिन बहन अपने भाई को अपने घर पर बुलाती हैं. यह दीपावली उत्सव का अंतिम दिन होता हैं.
दीपावली मनाने को लेकर पौराणिक कथाएं (Stories of Deepawali)
पहली कथा
भगवान श्रीराम त्रेता युग में रावण को हराकर जब अयोध्या वापस लौटे थे. तब प्रभु श्री राम के आगमन पर सभी अयोध्यावासियों ने घी के दीयें जलाकर उनका स्वागत किया था. इसीलिए 5 दिनों के उत्सव दीपावली में सभी दिन सभी घरों में दिए जलाए जाते हैं.
दूसरी कथा
पौराणिक प्रचलित कथाओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने आताताई नरकासुर का वध किया था. इसलिए सभी ब्रजवासियों ने दीपों को जलाकर खुशियां मनाई थी.
तीसरी कथा
एक और कथा के अनुसार राक्षसों का वध करने के लिए माता पार्वती ने महाकाली का रूप धारण किया था. जब राक्षसों का वध करने के बाद महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे. और भगवान शिव के स्पर्श मात्र से ही उनका क्रोध समाप्त हो गया था. इसी की स्मृति में उनके शांत रूप माता लक्ष्मी की पूजा इस दिन की जाती है.
चौथी कथा
दानवीर राजा बलि ने अपने तप और बाहुबल से संपूर्ण देवताओं को परास्त कर दिया था और तीनों लोको पर विजय प्राप्त कर ली थी. बलि से भयभीत होकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इस समस्या का निदान करें. तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर महाप्रतापी राजा बलि से सिर्फ तीन पग भूमि का दान मांगा. राजा बलि तीन पग भूमि दान देने के लिए राजी हो गए. भगवान विष्णु ने अपने तीन पग में तीनों लोको को नाप लिया था. राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया था. उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाई जाती है.
पांचवी कथा
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह बादशाह जहांगीर हकीकत से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे. इसलिए सिख समाज भी इसे त्यौहार के रूप में मनाता है. इतिहासकारों के अनुसार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन प्रारंभ हुआ था.
छटी कथा
सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही हुआ था. इसलिए सभी राज्यवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी.
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