हिन्दू धर्मं में घोड़ों का महत्व, हयग्रीव अवतार और उनसे जुडी कहानियाँ | Importance, Hayagriva Avatar and Stories of Horse in Hindu Mythology
मनुष्य से जुड़ें संसार के सबसे प्राचीन पालतू प्राणियों में से एक घोडा हैं. जिसने सदियों से मनुष्यों की किसी न किसी रूप में सेवा की हैं. उसे सामान ढ़ोने, सवारी करने या फिर बग्गी में जोड़कर गाड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा हैं. घोडा बेहद तेज गति से दौड़ने वाला बड़ा ही ताकतवर प्राणी हैं. उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि इंजन और अन्य मशीनों की शक्ति नापने वाले यूनिट का नाम (HORSE POWER) यानि अश्वशक्ति रखा गया हैं. और मनुष्य के इतने काम का यह प्राणी हमारी पौराणिक कथाओ में भी कई स्थानों पर विभिन्न स्वरूपों में नजर आता हैं.
इसमें सबसे प्रमुख अश्व (घोडा) जिसका नाम उच्चै श्रवा हैं. इसका जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था. यह मंथन के समय निकली 14 वस्तुओ में से एक था. उच्चै श्रवा का मतलब हैं कि लम्बे कान और जोर से हिनहिनाना. यह सात सिर वाला श्वेत रंग का उड़ने वाला घोडा हैं. उच्चै श्रवा को इंद्र का वाहन भी माना जाता हैं. कुछ जगह पर उसे असुरो के राजा बलि का भी वाहन बताया जाता हैं. ये वही उच्चै श्रवा हैं जिसकी पूंछ के रंग को लेकर सांपो की माता कद्रू और गरूड की माता विनता के बीच शर्त लगी थी.
एक और देव जिसका संबंध घोड़ों से है, वह हैं सूर्यदेव. सूर्य का एक पहिये वाला विशेष रथ हैं जिसका सारथि हैं गरुड़ के बड़े भाई अरुण. इस रथ को गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति नाम के सात घोड़े खींचते हैं. ये सातों घोड़े सूर्य को तेजी से एक जगह से दूसरी जगह जाने में मदद करते हैं. इन सात घोड़ो को सूर्य के प्रकाश में छिपे सात रंगों का प्रतीक माना जाता हैं. वैसे तो घोड़ो का संबंध भगवान् विष्णु के दो अवतारों कल्कि और हयग्रीव से भी हैं. कल्कि का मतलब गंदगी का विनाशक हैं. ऐसी मान्यता हैं कि कल्कि महायुग (कलयुग) के अंत में आएगा और सृष्टी को अगले सतयुग में ले जायेगा. कल्कि को देवदत्त नाम के पंखो वाले सफ़ेद घोड़े पर दिखाया जाता हैं.
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हयग्रीव अवतार(Hayagriva Avatar)
हयग्रीव अवतार का रंग और वस्त्र सफ़ेद हैं और वह कमल पर विराजमान हैं. इसे अन्धकार पर ज्ञान की विजय का प्रतीक माना जाता हैं. हयग्रीव वैष्णव सम्प्रदाय के एक प्रमुख देव थे. धार्मिक विषयों के अध्ययन के पहले इनका आशीर्वाद लिया जाता हैं. श्रावण महीने की पूर्णिमा और नवरात्री के नौवे दिन हयग्रीव की खास पूजा की जाती हैं.
हयग्रीव के स्वरूप में उनका सिर घोड़े का और शरीर मनुष्य का हैं. इनके चार हाथ हैं जिसमे दाहिना हाथ ज्ञान देने वाली मुद्रा में होता हैं. जिसमे माला भी होती हैं. जबकि बाएं हाथ में ज्ञान की पुस्तके हैं. जबकि बाकि दो हाथो में शंख और सुदर्शन चक्र हैं. हयग्रीव के मंदिर तमिलनाडू के तिरुअन्तपुरम और मैसूर के परकल मठ हैं. तमिलनाडु के श्रीरंगम मंदिर में मौजूद कई देवो की मूर्तियों में से एक मूर्ती हयग्रीव की भी हैं.
अश्वमेघ यज्ञ में घोड़े का महत्व (Ashwamedha Yajna and Horse)
पौराणिक काल में राजा-महाराजा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए घोड़ो का इस्तेमाल करते थे. घोड़ो के इस्तेमाल से मतलब वे अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करते थे. इसके अंतर्गत यज्ञ ख़त्म होने पर एक घोड़े को सजाकर और धार्मिक विधियों के बाद उसे छोड़ा जाता था. यह घोडा जिस किसी भी राज्य तक जाता उस पर यज्ञ करने वाले राजा का अधिकार माना जाता था. किसी दुसरे राज्य के द्वारा वह घोडा अगर रोका जाता हैं. तो वह यज्ञ करने वाले राजा की श्रेष्ठता को चुनौती दे रहा होता हैं.
रामायण में भी इसी तरह के एक अश्वमेघ यज्ञ का उल्लेख मिलता हैं. प्रभु श्रीराम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के बाद एक घोडा छोड़ा गया था. उस घोड़े को जंगल में रह रहे उनके ही पुत्र लव-कुश ने पकड़ लिया था. और दोनों अकेले ही राम की सेना को चुनौती देते हैं. पौराणिक कथाओं के अलावा युद्ध में भी घोड़ों का महत्व था. एक सामान्य सैनिक से लेकर राजा तक घोड़ो कि सवारी करते थे. घोड़ों की तेजी और वफ़ादारी की मिसाल हैं इतिहास के प्रसिद्ध चेतक. जिसने अपने राजा महाराणा प्रताप के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. आज भी भारतीय सेना के रेजिमेंटो में घुड़सवार सैनिक होते हैं.
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