हिन्दू धर्मं में चन्द्रमा की उत्पत्ति से जुडी कहानियाँ | Birth of Moon in Hindu Mythology in Hindi | chandrama Ke Janam Se Judi Kahaniyan
हिन्दू धर्म में चन्द्रमा को भी देवता माना गया है. चन्द्रमा बहुत ही सुन्दर, चमकीला एवं आकर्षक है. चन्द्रमा के जन्म संबंधी कहानी पुराणों में भिन्न-भिन्न मिलती है. ज्योतिष और वेदों में चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है. वैदिक साहित्य में सोम का का विस्तृत वर्णन मिलता है और चन्द्रमा को भी प्रमुख देवता में स्थान मिलता है. जिस प्रकार हम अग्नि, इंद्र, सूर्य आदि देवों की स्तुति करते है उसी प्रकार सोम की स्तुति की जाती है और इसके लिए मन्त्रों की भी रचना ऋषियों द्वारा की गई है.
विभिन्न पुराणों के अनुसार चन्द्र की उत्पत्ति (Birth of Moon in Hindu Mythology)
मत्स्य एवम अग्नि पुराण के अनुसार
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना करने का विचार किया तो उन्होंने सर्वप्रथम अपने मानसिक संकल्प के द्वारा मानस पुत्रों की रचना की थी. उन्ही में से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ जिससे दुर्वासा,दत्तात्रेय व सोम तीन पुत्र की प्राप्ति हुई. इन तीनो पुत्रो में से सोम को ही चन्द्र कहा गया है.
पद्म पुराण के अनुसार
पद्म पुराण में चन्द्र के जन्म के लिए अन्य वृतान्त बताया गया है. इसमें बताया गया है की ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी थी. और उसी आज्ञा से अभिप्रेरित होकर महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप प्रारम्भ किया. इसी तप काल में एक दिन महर्षि अत्रि के नेत्रों से जल की कुछ बहुत प्रकाशमय बूंदें टपक पड़ी थीं. अभी दिशाओ ने स्त्री रूप में आकर उन बूंदों को पुत्र प्राप्ति की कामना से ग्रहण कर लिया. और उन बूंदों के फलस्वरूप उनके उदर में गर्भ स्थित हो गया.
गर्भ स्थित होने पर भी दिशाएं उस प्रकाशमान गर्भ को धारण नही रख सकीं और त्याग दिया. दिशाओ द्वारा त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप उत्पन्न कर दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए. सभी देवताओं,ऋषियों व गन्धर्वों आदि ने उनकी स्तुति की. चन्द्रमा के ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधयों की उत्पत्ति हुई. चन्द्रमा को ब्रह्मा जी ने नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया है.
स्कन्द पुराण के अनुसार
जब देवता तथा दैत्यों ने क्षीर सागर समुद्र का मंथन किया था तो उस समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले थे. चंद्रमा को उन्हीं चौदह रत्नों में से एक माना जाता है. चन्द्रमा को लोक कल्याण हेतु, समुद्र मंथन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया. किन्तु एक ग्रह के रूप में चन्द्र की ब्रह्मांड में उपस्थिति मंथन से पूर्व भी सिद्ध होती है.
स्कन्द पुराण के माहेश्वर खंड में गर्गाचार्य ने समुद्र मंथन का मुहूर्त निकालते हुए देवों से कहा था कि इस समय सभी ग्रह अनुकूल हैं. और चंद्रमा से गुरु का शुभ योग है. देवो से कहा था की तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए चन्द्र बल उत्तम है. गंर्गाचार्य ने कहा था की यह गोमन्त मुहूर्त तुम्हें सफलता देने वाला है. अतः यह संभव है कि चंद्रमा के भिन्न-भिन्न अंशों का जन्म विभिन्न कालों में हुआ हो. ऐसा भी माना जाता है की चन्द्र का विवाह दक्ष प्रजापति की नक्षत्र रुपी 27 कन्याओं से हुआ है, जिनसे अनेक प्रतिभाशाली पुत्र प्राप्त हुए. और इन्हीं 27 नक्षत्रों के भोग से एक चन्द्र मास पूर्ण होता है.
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