हिन्दू धर्मं में श्वानों (कुत्तों) का उल्लेख और उनसे जुडी कहानियाँ | Importance of Dog in Hindu Mythology

हिन्दू धर्मं में श्वानों(कुत्तों) का महत्व, उल्लेख और उनसे जुडी कहानियाँ | Importance and Stories of Dog in Hindu Mythology in Hindi

क्या आप जानते है रामायण और महाभारत में कहा श्वान का उल्लेख मिलता हैं. इतिहास, प्रकृति और मानवता का ऐसा संगम बहुत कम ही देखने को मिलता हैं. आइये जानते हैं श्वानो से जुडी हिन्दू धर्म से जुडी पौराणिक कथाओ के बारे में

श्वान(कुत्ता, Dog)

जिसे हम आम भाषा कुत्ता कहते हैं, इंसान का सबसे सच्चा और वफादार साथी माना जाता हैं. श्वान बड़े ही आज्ञाकारी होते हैं. भारतीय पौराणिक ग्रंथो में भी श्वान का कई जगह पर प्रमुखता से उल्लेख मिलता हैं.

कुत्ते से जुडी पहली कहानी

रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार रावण वध के बाद रामराज्य में हर रोज महल के बाहर से किसी फरयादी को न्याय के लिए राजा के पास ले जाने की जिम्मेदारी लक्ष्मण की थी. एक दिन लक्ष्मण को महल के बाहर एक भौकता हुआ जख्मी फरयादी श्वान नजर आया हैं. वह उसे महल के अंदर ले गया. श्वान ने श्रीराम से शिकायत की बगैर किसी दोष के सर्वान्शिध नाम के ब्राह्मण ने उसे मारा. ब्राह्मण को महल में बुलाने पर उसने सफाई दी कि भिक्षा मांगते समय श्वान रास्ते में बैठा और ना हटने पर उसने गुस्से से श्वान को पीटा. ब्राह्मण ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और नरक से बचने के लिए सजा की मांग की.

भगवान श्रीराम के सलाहकार और मंत्री शास्त्रों में मनाही की वजह से किसी ब्राह्मण को सजा नहीं देना चाहते थे. तब उसी श्वान ने सुझाव दिया की ब्राह्मण को कलंजय के आश्रम का प्रमुख बना दिया जाये. ब्राह्मण सजा के बदले इनाम पाकर खुसी से कलंजय के लिए रवाना हो गया. मंत्री ऐसा इन्साफ देखकर हैंरान थे.

तब श्वान ने उन्हें बताया कि मैं अपने पिछले जन्म में कलंजय का प्रमुख था और नियमित रूप से देवों की पूजा अर्चना करता था. अपने सेवको का ख्याल रखता था, सभी प्राणियों से नम्रता से पेश आता था लेकिन इसके बावजूद किसी अनजानी गलती के कारण उसे इस जन्म में उसे श्वान का रूप प्राप्त हुआ. उसने कहा जब मुझ जैसे सदाचारी को श्वान का जन्म मिला. तो इस गुस्सेल और निर्दयी ब्राह्मण का क्या होगा. जिसने बिन गलती के मुझे डंडे से मारा. काबिलियत के बगैर इस पद को स्वीकार करने से उसका तथा उसके आने वाली पीढ़ी का बुरा होगा. इस तरह यह इनाम नहीं बल्कि सजा ही हैं. इतना कहकर वह श्वाव काशी चला गया जहां उसने मृत्यु पर्यन्त भूखा रहने की तपस्या की.

कुत्ते से जुडी दूसरी कहानी

इसी तरह महाभारत में भी श्वानों के बारे में उल्लेख मिलता हैं. महाभारत के प्रथम खंड आदि पर्व के अनुसार अभिमन्यु के पौत्र राजा जन्मेजय एक यज्ञ का आयोजन किया. उसी वक्त वहाँ आये श्वान को जन्मेजय के भाइयो ने दुत्कारा और मारकर भगा दिया. इंद्र की एक मादा श्वान सरमा थी. यज्ञ में पहुँचा श्वान उसी सरमा का पुत्र था. बिना की दोष के अपने पुत्र का अपमान होने पर वह यज्ञ स्थल पर पहुँची और जन्मेजय को अनहोनी का श्राप दिया.

महाभारत में एक और श्वान का उल्लेख है. अर्जुन के पौत्र परीक्षित को राज्य सोपकर युधिष्ठिर अपने भाई और द्रोपदी के साथ स्वर्ग की ओर चल पड़े. एक श्वान भी उनके साथ लगातार चलता रहा. रास्ते में एक-एक कर सारे भाई और द्रोपदी मरे गए. सिर्फ युधिष्ठिर और श्वान ही स्वर्ग तक पहुँचने में सफल हुए क्योकिं पाप और असत्य से वे हमेशा दूर रहते थे. लेकिन युधिष्ठिर के साथ आये श्वान को देखकर इंद्रा ने उन्हें चेतावनी दी कि स्वर्ग में केवल अकेले ही जा सकते हैं. क्योकिं श्वान का स्वर्ग में प्रवेश मना हैं. पूरे सफ़र में श्वान युधिष्ठिर के साथ था इसलिए युधिष्ठिर ने श्वान के बगैर स्वर्ग में जाने से मना कर दिया. तब इंद्र ने हार मानकर कहा कि वे उनकी परीक्षा ले रहे थे और बताया की वो श्वान दरअसल धर्म ही हैं जिसका साथ युधिष्ठिर ने जीवन भर नहीं छोड़ा. इस घटना का सांकेतिक अर्थ यह है कि इंसान का धर्म ही अंत तक उसका साथ देता हैं.

कुत्ते से जुडी तीसरी कहानी

इसके अलावा और भी कुछ श्वानो का उल्लेख हिन्दू पौराणिक कथाओ में मिलता हैं. जैसे मृत्यु के देवता यमराज के पास श्याम और सबल नाम के दो श्वान थे. जो यमलोक के द्वार पर पहरा देते थे. इन दोनों के चार आँखे थी. ये दोनों सरमा के पुत्र थे. इसलिए इन्हें सरमेय भी कहा जाता हैं. ये वो ही सरमा हे जिसने यज्ञ के समय जन्मेजय को श्राप दिया था. शिव जी रोद्र स्वरुप कालभैरव का वाहन भी एक श्वान हैं. इसी तरह ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अवतार भगवान् दत्तात्रेय के साथ भी चार श्वान नजर आते हैं. जिन्हें चार वेदों का प्रतीक माना जाता हैं.

मतलब यह हैं कि सिर्फ आधुनिक जगत में ही नहीं बल्कि पौराणिक कथाओ में भी एक साथी और एक पहरेदार के रूप में श्वान द्वारा की गयी वफादारी नजर आती हैं.

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