संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व की जानकारी | Sankashti Chaturthi vrat vidhi, pooja vidhi, vrat katha in hindi
हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी(Sankashti Chaturthi) के रूप में मनाया जाता हैं. लेकिन मुख्य संकष्टी चतुर्थी पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमांत पंचांग के अनुसार पौष के महीने में मानते है. इस तिथि को तिल चतुर्थी या माघी चतुर्थी भी कहा जाता है. इस चतुर्थी व्रत का महिलाएं पूरे वर्ष भर बेसब्री से इंतज़ार करती है. इस चतुर्थी के दिन मुख्य रूप से गणेश जी की पूजा की जाती हैं. पूरे भारत वर्ष में इस चतुर्थी को एक पर्व के रूप से मनाया जाता है.
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
कथा-1
एक बार शिव पार्वती एक नदी तट पर बैठे थे. तभी माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड खेलने की इच्छा व्यक्त की. भगवान शिव भी चौपड खेलने के लिए राजी हो गए परन्तु उस समय उन दोनों के अलावा कोई भी उपस्थित नहीं था. जो चौपड़ के उनके खेल में फैसला कर सके. माता पार्वती ने मिट्टी और घास की मूर्ति का निर्माण किया और उनमें प्राण डाल दिए. जिसके बाद माता पार्वती ने उस बालक से कहा तुम खेल का फैसला करना. खेल प्रारंभ होने के तीन-चार खेलों तक माता पार्वती की विजय हुई. लेकिन अगली ही बारी में माता पार्वती की जीत हुई परन्तु बालक ने भूलवश भगवान शिव का नाम ले लिया.
जिससे माता पार्वती ने क्रोधित होकर एक पैर से अपाहिज होने का श्राप दे दिया. फिर बालक ने माता पार्वती से क्षमा मांगी और इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा. तब माता पार्वती ने कहा की संकष्टी चतुर्थी(Sankashti Chaturthi) के दिन महिलाएं यहाँ पूजन करने के लिए आती हैं, तुम उनसे इस व्रत के बारे में जानकारी लेना और पूरी भक्ति के साथ यह व्रत करना. बालक ने माता पार्वती के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के व्रत के बारे में जाना और विधिवत व्रत रखा. व्रत करने के बाद गणेश जी उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. बालक ने अपने पैर ठीक करने और माता-पिता के पास वापस जाने का वरदान माँगा. भगवान गणेश तथास्तु बोलकर बालक की सारी मनोकामना पूरी कर देते हैं.
कथा-2
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) की दूसरी कथा भगवान विष्णु के विवाह से जुड़ी हुई हैं. भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी से विवाह करने जा रहे थे. सभी देवी-देवता इस विवाह से हर्षोत्साहित थे. इस शुभ अवसर पर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिए गए. भगवान शिव और पार्वती को शादी का निमंत्रण दिया गया. लेकिन भगवान विष्णु गणेश जी को न्योतना भूल गए उन्होंने सोचा कि गणेश शिव के पुत्र है तो वह भी विवाह में आ ही जायेंगे. इस बात से गणेश जी नाराज हो गए और विवाह में ना जाने का फैसला कर लिया.
कुछ समय पश्चात् विवाह का शुभ अवसर आ गया. विवाह के समय हर कोई प्रसन्न था लेकिन सभी के मन में एक चिंता थी कि गणपति जी विवाह में नजर नहीं आ रहे हैं. सब यह सोच रहे थे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा.
बारात सके समय आखिरकार सभी देवतों ने यह बात भगवान विष्णु से पूछ ही ली. विष्णु जी कहते है मैंने गणेश को न्योता नहीं दिया लेकिन उनके पिता भोलेनाथ के पास न्योता गया था. यदि उन्हें आना होता तो वह जरुर पधार जाते. और वे यदि आते तो उनके लिए सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू की व्यवस्था करनी पड़ती. वैसे भी किसी और पर इतना खाना अच्छा नहीं होता. यह गणपति नहीं आयेंगे तो कोई बात नहीं होगी.
विष्णु जी की यह बात कहीं से गणेशजी के मूषक ने सुन ली. जैसे ही विष्णु जी की बारात निकलने लगी मूषक ने आकर जमीन खोदकर पोली कर दी. जैसे ही पोली जमीन पर विष्णु जी का रथ निकला, रथ मिटटी में धंस गया. लाख कोशिश करने के बाद भी रथ को निकलना संभव नहीं हो पा रहा था. रथ के पहियें जैसे धरती ने जकड लिए थे.
तभी वहां नारद मुनि प्रकट होते हैं और भगवान विष्णु से कहते हैं, “आपने गणेश जी अपमान करके अच्छा नहीं किया. विवाह में गणेश को महत्व सबसे पहले होता हैं. यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपके ऊपर से यह संकट टल सकता हैं”. विष्णु को भी नारद मुनि की बार समझ आ गई. भगवान विष्णु ने स्वयं जाकर गणेश जी का पूजन, आदर-सत्कार किया और अपने कथन पर माफ़ी मांगी.
विष्णु के यह करने से गणेश जी प्रसन्न हुए और मिट्टी में धंसे पहिये बहार निकल गए लेकिन मिट्टी में धंसे होने के कारण रथ के पहियों की हालात ख़राब हो गयी थी. तब वहीँ काम कर रहे खाती को रथ की मरम्मत करने के लिए बुलाया गया. खाती ने “श्री गणेशाय नमः” और गणपति की वंदना करते हुए देखते ही देखते सभी पहिये ठीक कर दिए.
तब खाती सभी देवी-देवताओं से कहता हैं यदि आपने भगवान गणेश को विवाह का न्योता सर्वप्रथम दे दिया होता तो आपके ऊपर यह संकट कभी भी नहीं आता. मैं तो मुर्ख हूँ लेकिन तब भी गणेश का नाम सभी कार्य से पूर्व लेता हूँ. लेकिन आप देवी-देवता यह कार्य कैसे भूल गए. गणपति हर कष्टों को दूर रखते हैं. आप भी गणेश की का नाम लेकर बारात को प्रस्थान करिए आप पर किसी भी तरह का संकट नहीं आएगा.
यह कहते हुए बारात अपने गव्यंत स्थान के लिए निकल पड़ी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए. इस प्रकार गणपति जी ने भगवान विष्णु के सभी कष्ट हर लिये. इसलिए उन्हें संकष्टी गणेश अर्थात संकटों को हरने वाला कहा गया.
वर्ष 2024 के लिए संकष्टी चतुर्थी तिथि की सूची (Sankashti Chaturthi 2024 Date and Time )
तारीख | वार |
29 जनवरी | सोमवार |
28 फरवरी | बुधवार |
28मार्च | गुरुवार |
27 अप्रैल | शनिवार |
26 मई | रविवार |
25 जून | मंगलवार |
24 जुलाई | बुधवार |
22 अगस्त | गुरुवार |
21 सितम्बर | शनिवार |
20अक्टूबर | रविवार |
18 नवम्बर | सोमवार |
18 दिसंबर | बुधवार |
संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि और नियम (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi aur Niyam)
- सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर लें. इस दिन पूरा दिन उपवास रखा जाता है, शाम की पूजा के बाद भोजन ग्रहण करते है. उसके बाद गणेश जी की मूर्ती विराजमान करे.
- श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें.
- सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमाओं का दूध और गंगा जल से अभिषेक करे और नई पोशाक पहनाएं.
- कलश पर मेहँदी, रोली, कुमकुम, अबीर, गुलाल, चावल और नाडा चढ़ाकर पूजन प्रारंभ करे.
- उसके बाद गणेश जी को मेहँदी, रोली, कुमकुम, अबीर, गुलाल, चावल और नाडा चढ़ाएं.
- कथा के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देने की परंपरा हैं. चन्द्रमा को जल के छीटे देकर कुमकुम और चावल चढ़ाएं.
- इस दिन महिलाएं रात्रि में चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपना उपवास खोलती हैं.
- यदि चंद्रमा उदय होता हुआ नहीं दिख रहा हो तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्ध्य देकर उपवास को खोला जा सकता हैं.
- विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नम:’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नम:’ की एक माला (यानी 108 बार गणेश मंत्र का) जाप अवश्य करें.
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