सफला एकादशी (2024) का महत्व, पूजा और कथा-कहानी | Saphala Ekadashi Ka Mahatva (Significance), Puja and Story in Hindi
हिन्दू धर्मं के पंचांग के अनुसार हर वर्ष में कुल 24 यानी हर माह में दो एकादशी आती है. हर एकादशी का एक विशेष नाम और महत्व होता हैं. वर्ष में अधिकमास या मलमास होने पर एकादशी की संख्या 26 पहुँच जाती हैं. इसी क्रम में पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. अग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह सफल एकादशी दिसंबर और जनवरी माह में आती हैं.
इस एकादशी का हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व और स्थान हैं. इस वर्ष सफल एकादशी 07 जनवरी 2024 रविवार और दिसम्बर 26, 2024, बृहस्पतिवार के दिन आएगी.
सफला एकादशी की तारीख (Saphala Ekadashi Date) | 07 जनवरी 2024 |
वार (Day) | रविवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) | 07 जनवरी 2024 को रात 12 बजकर 41 मिनट पर |
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) | 08 जनवरी 2024 को रात 12 बजकर 46 मिनट पर |
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Paran Time) | 06:39 से 08:59 (08 जनवरी 2024) |
सफला एकादशी का महत्व (Saphala Ekadashi Ka Mahatva)
हिन्दू धर्मं के अनुसार हर एकादशी का एक विशेष महत्व होता हैं. पौष माह की कृष्ण एकादशी का महत्व जानने के लिए पांडव ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं “हे केशव पौष कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपा करके मुझे इस एकादशी के बारे में कुछ बताये”
युधिष्ठिर की बात सुनकर कृष्ण कहते हैं “धर्मराज! मैं तरह-तरह के महायज्ञ, धार्मिक अनुष्ठान और दान धर्मं से प्रसन्न नहीं होता हूँ. जितना मैं एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता हूँ. इसलिए एकादशी का व्रत पूरी भक्ति भाव के साथ अवश्य करना चाहिए. पौष माह की कृष्ण एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. इस एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैं.”
जिस तरह नागों में शेषनाग, यज्ञों में अश्वमेध और पक्षियों में गरुड़, देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं उसी प्रकार सभी तरह के व्रतों में एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ हैं जो मानव सदैव एकादशी के पर्व पर भगवान विष्णु की पूजा पाठ और पूरे विधान के साथ व्रत रखता हैं उस पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रखती हैं.
सफला एकादशी की पूजा विधि (Saphala Ekadashi Puja Vidhi)
- सफला एकादशी के दिन प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व जल्द उठाकर घर की साफ़ सफाई करके और स्नान कर ले.
- साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर घर के पूजा स्थल पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की साथ में पूजा करे.
- सबसे पहले मूर्तियों को गंगाजल से स्नान करवाए उसके बाद वस्त्रों के रूप में कलावा अर्पित करें.
- स्नान प्रक्रिया के बाद रोली और अक्षत टिका कर फूलों की माला चड़ाए.
- भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को मीठे का भोग लगाये जिसके बाद नारायण की लक्ष्मी माता के साथ आरती करे.
- यदि संभव हो तो रात्रि जागरण करें और भगवान का भजन-कीर्तन करें.
- एक दिन पश्चात द्वादशी तिथि पर सुबह सवेरे उठकर दैनिक कार्यों (जैसे स्नान, भोजन) से निवृत होकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं. फिर दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
सफला एकादशी की कथा (Saphala Ekadashi Story)
चम्पावती नगरी में एक समय महिष्मान नाम के शासक का शासन चल रहा होता हैं. राजा से प्रजा बेहद सुखी और समृद्ध थी लेकिन राजा का पुत्र महापापी था. सदैव बुरे काम में लिप्त रहता और भोग-विलास में पिता के धन को नष्ट करता रहता. ब्राह्मण और वैष्णव का भी तिरस्कार करता. राजा का पुत्र होने के कारण उसे रोकने की हिम्मत किसी मैं भी नहीं होती थी. जब राजा को अपने पुत्र के कुकर्मों को ज्ञात होता हैं तो वह उसे महल और राज्य दोनों से बाहर कर देता हैं.
महल से निकाले जाने के बाद उसके पापों में और भी वृद्धि हो जाती हैं. भोजन की व्यवस्था करने के लिए लोगों के घरों में चोरी करना शुरू कर देता हैं. प्रजा उसके कर्मों से बुरी तरह भयभीत रहने लगती हैं. राजा का पुत्र होने के कारण कोई भी उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाता हैं. आखिरकार राज्य के नागरिक और कर्मचारी उसे जंगल की ओर खदेड़ देते हैं.
वन में वह सोचता लगता हैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? क्या खाऊ? वह वन में जानवरों का शिकार करके एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष के नीचे रहने लगता हैं. लोग वृक्ष की भगवान के समान पूजा करते थे. उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था. इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे.
कुछ समय पश्चात शीतकाल के समय पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन राजकुमार पूरी तरह वस्त्रहीन होने के कारण सारी रात्रि सो नहीं सका. उसके हाथ-पांव ठंड के अकड़ गए. सूर्योदय होते-होते उसकी हिम्मत टूट गयी और वह मूर्छित हो गया.
सूर्य की ऊष्मा पाकर अगले दिन एकादशी के दिन उसकी मूर्च्छा दूर हुई. भोजन की तलाश में वह दिनभर भूखे प्यासे भटकता रहा. उसमे इतनी भी शक्ति नहीं बची थी कि वह शिकार कर सके. अंतः वह पेड़ से गिरे एक फल को उठाकर पीपल के पेड़ के पास पहुंचा. उस रात वह वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- “हे भगवन! अब आपके ही अर्पण है ये फल. आप ही तृप्त हो जाइए.” वह रात उसको खुद के द्वारा किये गए कर्मो की आत्मग्लानि होती हैं. रात्रि भर भगवान का नाम लेकर रात काटता हैं. उसके इस उपवास और जागरण से हरि अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए. दूसरे दिन प्रात: एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया.
उसी समय आकाशवाणी होती हैं, “हे राजपुत्र! हरि की कृपा से तेरे द्वारा किये गए सभी पाप नष्ट हो गए. अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर.” ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके “भगवान आपकी जय हो” कहकर अपने पिता के पास गया.
पुत्र राजा के समक्ष क्षमा मांगता हैं उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया. अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा. उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परमभक्त हो गया. वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ.
इसीलिए ऐसा कहा जाता हैं जो मनुष्य सच्ची भक्ति भाव के साथ सफला एकादशी का पवित्र पर्व करता हैं भगवान विष्णु उसके सभी पाप हर मुक्ति प्रदान करते हैं. इस सफला एकादशी के महत्व की कथा को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है. जो इस व्रत की नहिन जानते हुए भी नहीं करता हैं वह पशु समान हैं.
एकादशी पर क्या ना करे?
एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन वर्जित हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार माँ कालका के क्रोध से बचने के लिए ऋषि मेधा ने शरीर का त्याग कर धरती के अन्दर समाहित हो गए थे. जिस दिन ऋषि मेधा ने शरीर का त्याग किया वह एकादशी का ही दिन था. जिसके बाद वह चावल और जौ से रूप में पुनः उत्पन्न होते हैं. इसी कारण इस दिन चावल और जौ को जीव का अवतार माना जाता हैं. इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा जैसी तामसिक चीजों का सेवन न करें.
सफला एकादशी की आरती (Saphala Ekadashi Aarti)
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
वर्ष में आने वाली अन्य एकादशी की सूची और महत्व:
सफला एकादशी | पुत्रदा एकादशी | षट्तिला एकादशी | जया एकादशी |
विजया एकादशी | आमलकी एकादशी | पापमोचनी एकादशी | कामदा एकादशी |
वरूथिनी एकादशी | मोहिनी एकादशी | अपरा एकादशी | निर्जला एकादशी |
योगिनी एकादशी | देवशयनी एकादशी | कामिका एकादशी | पुत्रदा एकादशी |
अजा एकादशी | पद्मा एकादशी | इंदिरा एकादशी | पापांकुशा एकादशी |
रमा एकादशी | देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी | उत्पन्ना एकादशी | मोक्षदा एकादशी |