षटतिला एकादशी (2024) की पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा | Shattila Ekadashi Puja Vidhi, Mahatva Shubh Muhurat, Aarti and Story in Hindi
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में कुल 24 एकादशी होती हैं अधिकमास और मलमास होने पर यह संख्या 26 तक पहुँच जाती हैं. हिंदी धार्मिक मान्यताओं में हर एकादशी का एक विशेष महत्व और कहानी हैं. माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं. यह माह भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता हैं. इस दिन श्री हरि की उपासना और पूजा करके तमाम मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं. इस दिन कुंडली के दुर्योग भी नष्ट किये जा सकते हैं. इस वर्ष षटतिला का पर्व अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 6 फरवरी 2024 को सोमवार के दिन आने वाली हैं.
षटतिला एकादशी की तिथि और समय (Shattila Ekadashi Date & Timings in 2024)
तारीख (Date) | 6 फरवरी 2024 |
वार (Day) | मंगलवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) | 5 फरवरी को शाम 5.24 बजे से |
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) | 6 फरवरी को शाम 4.07 बजे तक |
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Paran Time) | 07:06:01 से 09:17:48 तक 7, फरवरी को |
षटतिला एकादशी व्रत का महत्व (Significance of Shattila Ekadashi)
माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर व्रत रखने का विशेष महत्व हैं. इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं. इस दिन सच्चे मन से साथ भगवान श्री हरि की पूजा अर्चना करना चाहिए. हरि मानव से सभी पापों को नष्ट कर जीवन में सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
षटतिला एकादशी व्रत विधि (Shattila Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)
षटतिला एकादशी के दिन को बेहद ही पवित्र माना जाता हैं. यह माह मनुष्य को अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अहंकार, क्रोध, लोभ और लालच का त्याग करना चाहिए. माघ माह की एकादशी की पूजा और व्रत विधि अन्य एकादशी की तुलना में भिन्न हैं. इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं और उनका स्मरण करते हुए तिल से बने गोबर के 108 उपले बनाने चाहिए. उपले बनाने का कार्य एकादशी से पूर्व कर लेना चाहिए.
- एकादशी के दिन सुबह प्रातः काल उठकर स्नान करके पूजा करने बैठना चाहिए.
- पद्म पुराण के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान हरि की चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए.
- उसके बाद भगवान विष्णु नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूज कर अर्घ्य देना चाहिए.
- इस दिन को प्रकार के व्रत किये जा सकते हैं निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को करना चाहिए. अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए.
- एकादशी के दिन 108 बार “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए तिल से बने उपलों की हवन में आहुति देना चाहिए.
- इस पर्व पर रात्रि में जागरण करने का भी विशेष महत्व हैं.
- एकादशी के अगले दिन ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए.
षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Khatha)
एक समय की बात हैं नारद ऋषि तीनों लोकों के भमण करते हुए अंत में भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुँचते हैं. वैकुण्ठ में भगवान विष्णु निद्रा में लीन रहते हैं. नारद मुनि लक्ष्मीपति को प्रमाण करते हुए और अपनी षटतिला एकादशी के प्रति जिज्ञासा व्यक्त करते हुए भगवान विष्णु से पूछते हैं “हे कमलनयन! षट्तिला एकादशी का क्या महत्व हैं? इसे क्यों किया जाता हैं और इसे करने से कैसा पुण्य प्राप्त होता हैं.”
देवर्षि की विनती सुन भगवान विष्णु अपने नयन खोलते हैं और कहते हैं “हे नारद! मैं तुम्हे सत्य घटना बताता हूँ. इसे ध्यानपूर्वक सुनो.”
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह पूर्ण श्रद्धा के साथ सदैव मेरे लिए व्रत किया करती थी. उसका मुझ पर अटूट विश्वास था. एक बार की बात हैं उसने एक माह तक अटूट व्रत किया. व्रत करने से उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था. व्रत करने से उसकी आत्मा शुद्ध हो गयी थी लेकिन गरीबी और कंजूसी प्रवृत्ति वश कभी भी वह ब्राह्मणों और देवताओं को भोग और दान नहीं दिया करती थी. ब्राह्मणी को वैकुण्ठ तो प्राप्त हो जाता लेकिन उसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया था इससे इसकी तृप्ति होना कठिन था.
ब्राह्मणी को उसके व्रत का फल मिले इसके लिए मैं उसके द्वार पर भिक्षुक का वेश धर के गया और भिक्षा की याचना करने लगा. भिक्षुक को देख ब्राह्मणी पूछती हैं “महाराज यहाँ पर आप किस लिए आये हो?” भिक्षुक के अवतार में हरि कहते हैं “मुझे भिक्षा चाहिए”. ब्राह्मणी ने बिना सोचे समझे भिक्षा में एक मिट्टी का ढेला भिक्षापात्र में डाल दिया. मैं भिक्षा में मिट्टी का ढेला लेकर वैकुण्ठ आ गया.
कुछ समय बाद ब्राह्मणी मृत्युलोक छोड़ स्वर्ग में आ गई. ब्राह्मणी को मिट्टी का बना पात्र दान करने से स्वर्ग में सुन्दर महल प्राप्त हुआ लेकिन महल में अन्न जैसी कोई भी सामग्री मौजूद नहीं थी. विचलित मन के साथ ब्राह्मणी मेरे पास आती हैं और कहने लगी कि “हे भगवन! मैंने आपके अनेकों व्रत किये हैं आपकी पूजा अर्चना की हैं लेकिन यहाँ भी मेरे घर में अन्न के एक दाना नहीं हैं इसका क्या कारण हैं”
ब्राह्मणी की इस बात पर मैंने कहा “यह सब अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. व्रत जितना पुण्य, दान करने से भी आता हैं.” ब्राह्मणी को अपनी गलती का अहसास हो गया और इस समस्या का समाधान माँगा.
हरि ने बताया “पहले तुम अपने महल जाओ वहां पर कुछ देवस्त्रियाँ आएँगी. पहले उनसे षटतिला एकादशी के महत्व, पुण्य और विधि के बारे में सुनना और तभी महल का द्वार खोलना” मेरी बात सुनकर ब्राह्मणी तुरंत अपने घर की ओर प्रस्थान करती हैं और देवस्त्रियाँ के आने का इंतज़ार करने लगती हैं.
देवस्त्रियाँ जब ब्राह्मणी के महल आती हैं तो ब्राह्मणी कहती हैं “तुम मुझे देखने आई हो पहले तुम षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो” उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ. जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया. देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है. देवस्त्री के कहे अनुसार ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया. इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया.
इसीलिए हे नारद षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को सभी इन्द्रियों पर काबू कर मोह, लालच, क्रोध और इर्षा को त्याग कर षट्तिला एकादशी का व्रत और तिलादी का दान करना चाहिए. जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.
षटतिला एकादशी की आरती (Shattila Ekadashi Aarti)
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
आने वाली षटतिला एकादशी की जानकारी (Upcoming Shattila Ekadashi from 2024 to 2025)
वर्ष | दिनांक | वार | एकादशी (शुरुआत) | एकादशी (समाप्त) |
2020 | 20 जनवरी | सोमवार | 02:51 पूर्वाह्न (20 जनवरी) | 02:05 पूर्वाह्न (21 जनवरी) |
2021 | 7 फरवरी | रविवार | 06:26 पूर्वाह्न (7 फरवरी) | 04:47 पूर्वाह्न (8 फरवरी) |
2022 | 28 जनवरी | शुक्रवार | 02:16 पूर्वाह्न (28 जनवरी) | 11:35 अपराह्न (28 जनवरी) |
2023 | 18 जनवरी | बुधवार | 06:05 अपराह्न (17 जनवरी) | 04:03 अपराह्न (18 जनवरी) |
2024 | 6 फरवरी | मंगलवार | 05:24 अपराह्न (5 फरवरी) | 04:07 अपराह्न (6 फरवरी) |
2025 | 25 जनवरी | शनिवार | 07:25 अपराहन (24 जनवरी) | 08:31 अपराहन (25 जनवरी) |
वर्ष में आने वाली अन्य एकादशी की सूची और महत्व:
सफला एकादशी | पुत्रदा एकादशी | षट्तिला एकादशी | जया एकादशी |
विजया एकादशी | आमलकी एकादशी | पापमोचनी एकादशी | कामदा एकादशी |
वरूथिनी एकादशी | मोहिनी एकादशी | अपरा एकादशी | निर्जला एकादशी |
योगिनी एकादशी | देवशयनी एकादशी | कामिका एकादशी | पुत्रदा एकादशी |
अजा एकादशी | पद्मा एकादशी | इंदिरा एकादशी | पापांकुशा एकादशी |
रमा एकादशी | देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी | उत्पन्ना एकादशी | मोक्षदा एकादशी |