वरुथिनी एकादशी (2024) की पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा | Varuthini Ekadashi Puja Vidhi, Mahatva Shubh Muhurat, Aarti and Story in Hindi
वरुथिनी एकादशी जिसे बरूथनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. आमतौर पर चैत्र या वैशाख महीने के दौरान एकादशी पर आती है. इस दिन प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं और भक्त विशेष रूप से भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करते हैं.
वरुथिनी एकादशी 2024 तिथि और समय (Varuthini Ekadashi Date and Timings)
हिन्दू पंचांग के अनुसार वरुथिनी एकादशी चैत्र या वैशाख के माह ने आती हैं. वर्ष 2024 में यह एकादशी 4 मई, शनिवार को हैं.
तारीख (Date) | 30 अप्रैल 2024 |
वार (Day) | सोमवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) | 03 मई 2024 को रात 11:24 से |
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) | 04 मई 2024 को रात 08:38 तक |
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) | 5 मई को सुबह 05:36:47 से सुबह 08:17:15 तक |
वरुथिनी एकादशी का महत्व (Varuthini Ekadashi Significance)
भावपुराण में वरुथिनी एकादशी का संदर्भ दिया गया है. भगवान कृष्ण वरुथिनी एकादशी की प्रासंगिकता राजा युधिष्ठिर को बताते हैं क्योंकि उनका उल्लेख है कि इस शुभ दिन पर मनुष्य-जानवर खुद को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर सकते हैं. इसी तरह कोई भी व्यक्ति जो जीवन के लिए खतरनाक बीमारी से पीड़ित है अगर वे वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं तो वे ठीक हो सकते हैं.
जरूरतमंदों को दान देने से वरुथिनी एकादशी पर भाग्य का साथ मिलता है. जिन वस्तुओं का दान किया जा सकता है उनका विस्तृत विवरण भावपुराण में सूचीबद्ध किया गया है. क्रमशः वरूथिनी एकादशी पर भक्तों को घोड़ा, हाथी, भूमि, तिल दान करने से भाग्य में वृद्धि होगी.
यदि कोई व्यक्ति वरूथिनी एकादशी पर दान करने का निर्णय लेता है, तो पूर्वजों और परिवार के सदस्यों को लाभ होगा. हिंदू पौराणिक कथाओं में आमतौर पर यह माना जाता है कि विवाह में कन्यादान करना सबसे बड़ा दान है. अगर भक्त पूर्ण धार्मिक उत्साह के साथ वरुथिनी एकादशी पर उपवास करते हैं, तो सौ कन्यादान का लाभ मिलता है.
वरूथिनी एकादशी पूजन विधि (Varuthini Ekadashi Puja Vidhi)
सभी एकादशियों की तरह भक्त भी वरुथिनी एकादशी का व्रत रखते हैं. कुछ भक्त इस दिन निर्जला उपवास भी रखते हैं. दशमी के एक दिन पहले व्रत रखने वाले को केवल एक समय भोजन करना चाहिए.
व्रत फिर एकादशी से ‘द्वादशी’ (12 वें दिन) तक जारी रहता है. वरुथिनी एकादशी पर चावल, छोले, काले चने, दाल, सुपारी, सुपारी, शहद और मांसाहारी भोजन खाने पर सख्त मनाही है. एकादशी पर बेल धातु के बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए.
भगवान विष्णु के अवतार, वामन की पूजा वरुथिनी एकादशी के दिन की जाती है. भक्त इस दिन के लिए विशेष पूजा व्यवस्था करते हैं और इसे और अधिक फलदायी बनाने के लिए कुछ विशिष्ट नियमों का पालन करते हैं.
वरुथिनी एकादशी के दिन, नींद, क्रोध, जुआ, शरीर पर तेल लगाने और दूसरों के लिए किसी भी बीमार भावना को बढ़ावा देने से दूर रहना चाहिए. यौन क्रिया और हिंसा से पूरी तरह बचना चाहिए.
वरुथिनी एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीमद भगवत गीता जैसे पवित्र ग्रंथों को पढ़ना एक अच्छा माना जाता है. भक्त भगवान विष्णु के सम्मान में भजन सुनने और गाने के लिए अपना समय बिताते हैं.
वरूथिनी एकादशी पर दान करना बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि यह सौभाग्य लाता है. इस पवित्र दिन पर दान की जाने वाली कुछ वस्तुओं में तिल, भूमि, हाथी और घोड़े शामिल हैं.
वरुथिनी एकादशी कथा (Varuthini Ekadashi Story)
किंवदंतियों के अनुसार एक बार, उज्जैन के समीप मंधाता नाम के एक राजा ने शासन था. वह अपने समय का बहुत प्रसिद्ध शासक था और उसे पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान और दयालु व्यक्ति माना जाता था. उनका विवाह यादव नरेश शाह बिन्दू की बेटी बिन्दुमती से हुआ था. उसके साथ उसके तीन बेटे मुचकुंद, अंबरीषा और पुरु कुटसा और 50 बेटियां थीं. उनकी सभी बेटियों की शादी सौभरी संत के साथ हुई थी.
एक दिन जब वह ध्यान मग्न होकर भगवान् विष्णु की तपस्या कर रहे थे. तभी एक जंगली भालू आया और उनका पैर खा लिया. लेकिन उन्होंने ध्यान के नियम को नहीं तोड़ा और भगवान विष्णु से क्रोधित होने के बजाय प्रार्थना करना शुरू कर दिया. उस स्थान पर भगवान विष्णु प्रकट हुए.
भगवान ने अपने चक्र से भालू को मार डाला. राजा बहुत परेशान हुआ कि भालू ने उसका पैर खा लिया. भगवान ने उन्हें मथुरा जाने और वरुथिनी एकादशी पर अपने वराह अवतार की पूजा करने के लिए कहा. प्रभु ने उससे कहा कि इस व्रत के परिणाम से वह अपना अंग वापस पा लेगा तो राजा ने पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन किया और अपने अंग को वापस पा लिया.
इस व्रत का पालन करने से दुःख में लोग सुख प्राप्त करते हैं. राजा के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं. इस व्रत का फल सूर्य ग्रहण के दिन दान करने के फल के बराबर होता है. इस दिन उपवास करने से व्यक्ति को धरती पर सुख मिलता है और मृत्यु के बाद भी और अंत में व्यक्ति को मोक्ष मिलता है.
वरुथिनी एकादशी की आरती (Varuthini Ekadashi Aarti)
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
वर्ष में आने वाली अन्य एकादशी की सूची और महत्व:
सफला एकादशी | पुत्रदा एकादशी | षट्तिला एकादशी | जया एकादशी |
विजया एकादशी | आमलकी एकादशी | पापमोचनी एकादशी | कामदा एकादशी |
वरूथिनी एकादशी | मोहिनी एकादशी | अपरा एकादशी | निर्जला एकादशी |
योगिनी एकादशी | देवशयनी एकादशी | कामिका एकादशी | पुत्रदा एकादशी |
अजा एकादशी | पद्मा एकादशी | इंदिरा एकादशी | पापांकुशा एकादशी |
रमा एकादशी | देवउठनी (देवोत्थान) एकादशी | उत्पन्ना एकादशी | मोक्षदा एकादशी |